Mahashivratri 2020 : कितने हजार वर्ष पूर्व हुए थे भगवान शंकर, जानिए पौराणिक और पुरातात्विक प्रमाण

अनिरुद्ध जोशी
ॐ नम: शिवाय। माता सती और पार्वती के पति भगवान शंकर कब हुए थे। कितने हजार वर्ष पूर्व हुए थे और क्या है उनके पौराणिक एवं पुरातात्विक प्रमाण? आओ जानते हैं इस संबंध में कुछ खास।
 
 
पौराणिक प्रमाण-
-जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्म 599 ईस्वी पूर्व हुआ था। उनके 250 वर्ष पूर्व भगवान पार्श्वनाथ हुए थे। मतलब आज से 2869 वर्ष पहले पार्श्वनाथ हुए। पार्श्वनाथ के समय शिव की पूजा होती थी।
 
-भगवान श्रीकृष्ण का जन्म 3112 ईस्वी पूर्व हुआ था। मतलब आज से 5132 वर्ष पहले कृष्ण हुए थे। उनके काल में भी शिव की पूजा होती थी।
 
- भगवान श्रीराम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। मतलब आज से 7134 वर्ष पहले राम हुए थे। उनके काल में भी शिव की पूजा होती थी। उन्होंने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की थी।
 
- माथुर ब्राह्मणों के इतिहास अनुसार श्रीराम के पूर्वज वैवस्वत मनु का काल 6673 ईसा पूर्व का है जिनके काल में जल प्रलय हुई थी। मतलब 8693 वर्ष पहले उनके अस्तित्व था। उनके काल में भी शिव और विष्णु की पूजा होती थी।
 
- सम्राट ययाति का उल्लेख वेद और पुराणों में मिलता है। अनुमानित रूप से 7200 ईस्वी पूर्व उनका अस्तित्व था। इसका मतलब 9220 वर्ष पूर्व वे हुए थे। उनके काल में भी ब्रह्मा, विष्णु और शिव की पूजा का प्रचलन था। ययाति प्रजापति ब्रह्मा की 10वीं पीढ़ी में थे।
 
- माथुरों के इतिहास के अनुसार स्वायंभुव मनु लगभग 9057 ईस्वी पूर्व हुए थे। संभवत: इससे पूर्व हो सकते हैं। मतलब 11007 वर्ष पूर्व या लगभग 12 हजार वर्ष पहले। उनके काल में भी शिव की पूजा होती थी।
 
- लगभग 12 से 13 हजार ईस्वी पूर्व प्रजापति ब्रह्मा के होने की बात कही जाती है। मतलब 15 हजार वर्ष पूर्व। इससे पूर्व ब्रह्मा और भी कई हुए हैं। उनके काल में भी शिव की पूजा का प्रचलन था।
 
- पौराणिक इतिहास में भगवान नील वराह के अवतार का काल लगभग 16 हजार ईस्वीपूर्व का माना गया है। मतलब 18 हजार वर्ष पूर्व। वराह कल्प के प्रारंभ में भी शिव थे।
 
- हिन्दू धर्म की पुन: शुरुआत वराह कल्प से ही मानी जाती है जो कि 13800 विक्रम संवत पूर्व प्रारंभ हुआ था। इसके पूर्व महत् कल्प, हिरण्य गर्भ कल्प, ब्रह्म कल्प और पद्म कल्प बीच चुके हैं।
 
पुरातात्विक प्रमाण-
- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में ऐसे अवशेष प्राप्त हुए हैं जो शिव पूजा के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। सिंधु घाटी से नंदी और शिवलिंग का पाया जाता इसका प्रमाण है। आईआईटी खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों के नए शोधानुसार मुताबिक यह सभ्यता 8000 साल पुरानी थी।
- पुरातात्विक निष्कर्षों के अनुसार प्राचीन शहर मेसोपोटेमिया, असीरिया, मिस्र (इजिप्ट), सुमेरिया, बेबीलोन और रोमन सभ्यता में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के सबूत मिले हैं।
 
- आयरलैंड के तारा हिल में स्थित एक लंबा अंडाकार रहस्यमय पत्थर रखा हुआ है, जो शिवलिंग की तरह ही है। इसे भाग्यशाली (lia fail stone of destiny) पत्थर कहा जाता है। कहते हैं कि मक्का का संग-ए-असवद भी एक शिवलिंग ही है जो बहुत ही प्राचीन है।
 
- हाल ही में सद्गुरु जग्गी वासुदेव तुर्की गए हुए थे। वहां उन्होंने एक रूमी के मकबरे के बाहर गार्डन में एक अजीब तरह का गोल पत्थर देखा। बाद में उन्होंने उसकी खोज की तो पता चला कि वह 4700 वर्ष पुराना शिवलिंग है।
 
- भारत में हजारों वर्ष पुराने सैंकड़ों शिवलिंग हैं जिनकी मंदिरों में पूजा अर्चना हो रही है। 12 ज्योतिर्लिंग के शिवलिंग इसका उदाहरण हैं। इसके अलावा नदी के तटों और शहरों से दूर-दराज के क्षेत्र में हजारों वर्ष पूर्व बने शिव मंदिर आज भी विद्यमान हैं।
 
- अरब के मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी और इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। इस्लाम से पहले मध्य एशिया का मुख्य धर्म पीगन था। मान्यता अनुसार यह धर्म हिंदू धर्म की एक शाखा ही थी जिसमें शिव पूजा प्रमुख थी।
 
- ईरान को प्राचीन काल में पारस्य देश कहा जाता था। इसके निवासी अत्रि कुल के माने जाते हैं। अत्रि ऋषि भगवान शिव के परम भक्त थे जिनके एक पुत्र का नाम दत्तात्रेय है। अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस चले गए थे, जहां उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया।
 
- विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल की शुरुआत 4500 ईस्वी पूर्व से मानी है। इस मान से लिखित रूप में आज से 6520 वर्ष पूर्व पुराने हैं वेद। इससे पहले हजारों वर्ष तक वेद वाचिक परंपरा में ही रहे। मतबल पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी को वेद कंठस्थ कराकर वेदों के ज्ञान को जिंदा बनाए रखती थी। वेदों में भगवान शिव का उल्लेख मिलता है।
 
- अंत में भगवान शिव को आदिदेव, आदिनाथ और आदियोगी कहा जाता है। आदि का अर्थ सबसे प्राचीन प्रारंभिक, प्रथम और आदिम। शिव आदिवासियों के देवता हैं।
 
- शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। कहते हैं कि शिव ने इन शिष्यों का लगभग 40 हजार वर्ष पूर्व तैयार किया था। ॐ नम: शिवाय।
 
- वेबदुनिया संदर्भ ग्रंथ

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