महाशिवरात्रि 2022: शिवरात्रि पर शिव मंदिर में शिवलिंग पर जल के अलावा दूध, घी, शहद, दही आदि क्यों अर्पित किए जाते हैं? इसके दो कारण है पहला कारण तो पौराणिक है और दूसरा कारण साइंटिफिक है। आओ जानते हैं हम दोनों ही कारणों को संक्षिप्त में।
पौराणिक कारण : (Mythological reason for offering milk on Shivling):
1. पौराणिक कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन हुआ तो सबसे पहले उसमें से विष निकला। इस विष से संपूर्ण संसार पर विष का खतरा मंडराने लगा। इस विपत्ति को देखते हुए सभी देवता और दैत्यों ने भगवान शिव से इससे बचाने की प्रार्थना की। क्योंकि केवल भगवान शिव के पास ही इस विष के ताप और असर को सहने की क्षमता थी। तब भगवान शिव ने संसार के कल्याण के लिए बिना किसी देरी के संपूर्ण विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। विष का तीखापन और ताप इतना ज्यादा था कि भोले बाबा का कंठ नीला हो गया और उनका शरीर ताप से जलने लगा।
जब विष का घातक प्रभाव शिव और शिव की जटा में विराजमान देवी गंगा पर पड़ने लगा तो उन्हें शांत करने के लिए जल की शीतलता कम पड़ने लगी।उस वक्त सभी देवताओं ने भगवान शिव का जलाभिेषेक करने के साथ ही उन्हें दूध ग्रहण करने का आग्रह किया ताकि विष का प्रभाव कम हो सके। सभी के कहने से भगवान शिव ने दूध ग्रहण किया और उनका दूध से अभिषेक भी किया गया।
तभी से ही शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। कहते हैं कि दूध भोले बाबा का प्रिय है और उन्हें सावन के महीने में दूध से स्नान कराने पर सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
साइंटिफिक कारण : (Scientific reason for offering milk on Shivling)
1. कहते हैं कि शिवलिंग एक विशेष प्रकार का पत्थर होता है। इस पत्थर को क्षरण से बचाने के लिए ही इस पर दूध, घी, शहद जैसे चिकने और ठंडे पादार्थ अर्पित किए जाते हैं।
2. अगर शिवलिंग पर आप कुछ वसायुक्त या तैलीय सामग्री अर्पित नहीं करते हैं तो समय के साथ वे भंगुर होकर टूट सकते हैं, परंतु यदि उन्हें हमेशा गीला रखा जाता है तो वह हजारों वर्षों तक ऐसे के ऐसे ही बने रहते हैं। क्योंकि शिवलिंग का पत्थर उपरोक्त पदार्थों को एब्जॉर्ब कर लेता है जो एक प्रकार से उसका भोजन ही होता है।
3. शिवलिंग पर उचित मात्रा में ही और खास समय पर ही दूध, घी, शहद, दही आदि अर्पित किए जाते हैं और शिवलिंग को हाथों से रगड़ा नहीं जाता है। यदि अत्यधिक मात्रा में अभिषेक होता है या हाथों से रगड़ा जाता है तो भी शिवलिंग का क्षरण हो सकता है। इसीलिए खासकर सोमवार और श्रावण माह में ही अभिषे करने की परंपरा है।