Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

सर्वपितृ अमावस्या : दर्श अमावस्या और आश्‍विन अमावस्या भी कहते हैं इस तिथि को, जानिए 10 बातें

हमें फॉलो करें सर्वपितृ अमावस्या : दर्श अमावस्या और आश्‍विन अमावस्या भी कहते हैं इस तिथि को, जानिए 10 बातें
, बुधवार, 6 अक्टूबर 2021 (11:30 IST)
6 अक्टूबर 2021 बुधवार को आज श्राद्ध पक्ष की सर्वपितृ अमावस्या है। इसे दर्श अमावस्या भी कहते हैं। आओ जानते हैं इस अमावस्या की 10 खास बातें।
 
 
1. सर्वपितृ अमावस्या पितरों को विदा करने की अंतिम तिथि होती है। 15 दिन तक पितृ घर में विराजते हैं और हम उनकी सेवा करते हैं फिर उनकी विदाई का समय आता है। इसीलिए इसे 'पितृविसर्जनी अमावस्या', 'महालय समापन' या 'महालय विसर्जन' भी कहते हैं। आश्‍विन माह में आने के कारण इसे आश्‍विन अमावस्या भी कहते हैं।
 
2. दर्श अमावस्या के दिन चांद पूर्ण रूप में अदृश्य रहता है। इस दिन पितरों के साथ ही चंद्रदेव की पूजा का भी महत्व है। ऐसा करने से समृद्धि और सौभाग्य में वद्धि होती है। इन्हें भावनाओं और दिव्य अनुग्रह का स्वामी माना गया है।
 
3. यह अमावस्या हमें अर्थ अंधेरे में भी चमकते रहने की शिक्षा देती है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने परिवारवालों को आशीर्वाद देते हैं। इस दिन व्यक्ति को पितृदोष से मुक्ति प्राप्त होती है।
 
4. इस दिन तर्पण और पिंडदान का फल दोगुना हो जाता है।
 
5. इस दिन तर्पण और पिंडदान के बाद पंचबलि कर्म और 16 ब्राह्मण भोज करना ने महत्व है। ऐसा नहीं कर सकते हों तो पंचबलि कर्म के साथ ही अमान्य दान दें। 
 
6. इस दिन संध्या के समय दीपक जलाएं और पूड़ी व अन्य मिष्ठान उचित स्थान पर रखें। ऐसा इसलिए करना चाहिए ताकि पितृगण भूखे न जाएं और दीपक की रोशनी में पितरों को जाने का रास्ता दिखाएं। मान्यता है कि इस दिन सभी पितर आपके द्वार पर उपस्थित हो जाते हैं। 
 
7. सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करने का विधान भी है। 
8. सर्वपितृ अमावस्या पर पीपल की सेवा और पूजा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। स्टील के लोटे में, दूध, पानी, काले तिल, शहद और जौ मिला लें और पीपल की जड़ में अर्पित कर दें।
 
9. इस दिन समस्त कुल, परिवार तथा ऐसे लोगों को भी जल दिया जाता है, जिन्हें जल देने वाला कोई न हो।
 
10. पिता के श्राद्ध का अधिकार उसके बड़े पुत्र को है लेकिन यदि जिसके पुत्र न हो तो उसके सगे भाई या उनके पुत्र श्राद्ध कर सकते हैं। यदि कोई नहीं हो तो उसकी पत्नी श्राद्ध कर सकती है। श्राद्ध का अधिकार पुत्र को प्राप्त है। लेकिन यदि पुत्र जीवित न हो तो पौत्र, प्रपौत्र या विधवा पत्नी भी श्राद्ध कर सकती है।  पुत्र के न रहने पर पत्नी का श्राद्ध पति भी कर सकता है। हालांकि जो कुंआरा मरा हो तो उसका श्राद्ध उसके सगे भाई कर सकते हैं और जिसके सगे भाई न हो, उसका श्राद्ध उसके दामाद या पुत्री के पुत्र (नाती) को और परिवार में कोई न होने पर उसने जिसे उत्तराधिकारी बनाया हो, वह व्यक्ति उसका श्राद्ध कर सकता है। यदि सभी भाई अलग-अलग रहते हों तो वे भी अपने-अपने घरों में श्राद्ध का कार्य कर सकते हैं। यदि संयुक्त रूप से एक ही श्राद्ध करें तो वह अच्छा होता है। यदि कोई भी उत्तराधिकारी न हो तो प्रपौत्र या परिवार का कोई भी व्यक्ति श्राद्ध कर सकता है।  श्राद्ध करने का अधिकार सबसे पहले पिता पक्ष को, पिता पक्ष नहीं है तो माता पक्ष को और माता पिता का पक्ष नहीं है तो पुत्री पक्ष के लोग श्राद्ध कर सकते हैं। यदि यह भी नहीं है तो उत्तराधीकारी या जिन्होंने सेवा की वह श्राद्ध कर सकता है। श्राद्ध उसे करना चाहिए जो श्रद्धापूर्वक यह करना चाहता है और जिसके मन में मृतक की मुक्ति हो ऐसी कामना है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

7 अक्टूबर 2021, गुरुवार से शारदीय नवरात्रि आरंभ, 9 दिनों में 4 चीजें जरूर लाएं खरीदकर