वर्षभर में एक बार अर्थात उनकी मृत्यु तिथि को जल, तिल, जौ, कुश और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध संपन्न करके और गौग्रास देकर एक, तीन या पांच ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से यह ऋण उतर जाता है।
अत: सरलता से साध्य होने वाले इस कार्य की हमें उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। इसके लिए जिस मास की जिस तिथि को माता-पिता आदि का देहावसान हुआ हो, उस तिथि पर श्राद्ध आदि करने के अलावा आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में जब श्राद्ध लगे हों उसी तिथि को श्राद्ध, तर्पण, गौग्रास और ब्राह्मणों को भोजन कराना आवश्यक है।
इससे पितृगण प्रसन्न होते हैं। लेकिन यदि तिथि ज्ञात न हो तो समस्त पितृ गण की उपस्थिति वाले अंतिम दिन उनके लिए प्रार्थना करनी चाहिए। और विधिविधान से श्राद्ध करना चाहिए।
सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करने से किसी भी प्रकार का पितृ ऋण हो उससे मुक्ति मिलती है। लेकिन श्राद्ध और तर्पण सुनियोजित ढंग से करना आवश्यक है।