भगवान शिव के परिवार से हुई है सभी धर्मों की उत्पत्ति, कैसे जानिए

WD Feature Desk
शनिवार, 26 जुलाई 2025 (16:54 IST)
भगवान शिव के परिवार में उनकी पत्नी माता पार्वती, पुत्र गणेश और कार्तिकेय के अलावा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। इसके अलावा मनसा, ज्योति, जया, विषहर, शामिलबारी, देव, और दोतलि को भी उनकी पुत्री माना जाता है। असावरी देवी शिवजी की बहन थीं। इसके अलावा उनके सुकेश, जलंधर, अयप्पा, भूमा, खुजा और अंधक नामक पुत्रों का वर्णन भी मिलता है। गणेश जी की 2 पत्नियां जिनके नाम ऋद्धि और सिद्धि हैं। गणेश जी के दो पुत्र शुभ और लाभ हैं और तुष्टि एवं पुष्टि उनके पुत्रों की पत्नियां हैं। गणेश जी के पोतों के नाम आमोद और प्रमोद हैं। गणेशजी की पुत्री का नाम माता संतोषी है। यह सभी उनके परिवार का हिस्सा है। इसके अलावा वासुकि नाग, नंदी, वीरभद्र सहित उनके कई गण भी है। शिवजी देव और असुर दोनों के ही भगवान हैं। उनकी गणों की संज्ञा अनगिनत है। 
 
सप्त ऋषि: शिवजी ने सबसे पहले अपना ज्ञान सप्त ऋषियों और माता पार्वती को दिया था। सप्त ऋषियों ने शिव से ज्ञान लेकर अलग-अलग दिशाओं में फैलाया और धरती के कोने-कोने में शैव धर्म, योग और ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया। इन सातों ऋषियों ने ऐसा कोई व्यक्ति नहीं छोड़ा जिसको शिव कर्म, परंपरा आदि का ज्ञान नहीं सिखाया हो। आज सभी धर्मों में इसकी झलक देखने को मिल जाएगी। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी जिसके चलते आज भी नाथ, शैव, शाक्त आदि सभी संतों में उसी परंपरा का निर्वाह होता आ रहा है। आदि गुरु शंकराचार्य और गुरु गोरखनाथ ने इसी परंपरा और आगे बढ़ाया। शिव के शिष्यों के कारण ही दुनिया में अलग अगल धर्मों की स्थापना हुई है। 
 
सभी के अपने अलग संप्रदाय: इसके अलावा शिव के पारिवार में माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और उनके गणों ने भी संपूर्ण विश्व में अपने धर्म की पताका को लहराया है। शैव, शाक्त, कापालिक, तांत्रिक, नाथ, दिगंबर, गाणपत्य, बैरागी, उदासी आदि भारत में प्रचलित सैकड़ों संप्रदाय सीधे सीधे प्रत्यक्ष रूप से शिव से संबंधित हैं। गणेशजी और कार्तिकेय के कारण दक्षिण भारत में कई संप्रदाय स्थशपित हुए तो माता पार्वती के कारण पूर्वी भारत में शाक्त संप्रदाय और उसकी शाखाओं का विस्तार हुआ। कार्तिकेय ने भारत के बाहर भी शैव धर्म का प्रचार प्रसार दिया था।
 
बौद्ध धर्म और शिव: बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने इस संबंध में कुछ तर्क भी प्रस्तुत किए-पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि इनमें बुद्ध के तीन नाम अति प्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर। 
 
विदेशी संस्कृति में शिव: इसी तरह पश्‍चिम की संस्कृति और धर्म को भी भगवान शिव ने स्पष्ट रूप से प्रभावित किया। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के एक शिष्य ने पश्‍चिम में जाकर ही शिव के धर्म की नींव रखी थी जिसका कालांतर में नाम और स्वरूप बदलता गया। शिव के पुत्र कार्तिकेय के कारण भी कई धर्मों की उत्पत्ति मानी जाती है जिसमें अरब का यजीदी धर्म प्रमुख है। दक्षिण भारत और इंडोनेशिया, बाली आदि द्वीपों पर भी शिव पुत्र कार्तिकेय की पूजा होती है।
 
जैन धर्म में शिव: ऋग्वेद में वृषभदेव का वर्णन मिलता है, जो जैनियों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ कहलाते हैं। इन्हें आदिनाथ भी कहा जाता है और शिव को भी आदिनाथ कहा गया है। माना जाता है कि शिव के बाद मूलत: उन्हीं से एक ऐसी परम्परा की शुरुआत हुई जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगम्बर और सूफी सम्प्रदाय में वि‍भक्त हो गई। फिर भी यह शोध का विषय है। 
 
आदिवासी धर्म के शिव है संस्थापक: शैव, शाक्तों के धर्मग्रंथों में शिव परंपरा का उल्लेख मिलता है। भारत के चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म दुनिया के सभी आदिवासियों का धर्म है।
 
प्राचीन सभ्यता में शिव: भारत ही नहीं विश्व के अन्य अनेक देशों में भी प्राचीनकाल से शिव की पूजा होती रही है। इसके अनेक प्रमाण समय-समय पर प्राप्त हुए हैं। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में भी ऐसे अवशेष प्राप्त हुए हैं जो शिव पूजा के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। दुनिया की अन्य सभ्यताओं में भी शिव की पूजा होने और शिवलिंग के प्रमाण मिले हैं।

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