Dharma Sangrah

नगर भ्रमण से आने के बाद कहां जाते हैं भगवान महाकाल?

Webdunia
महाकालेश्वर की शाही सवारी के लिए जिला प्रशासन मुस्तैद
 
विश्व प्रसिद्ध भगवान महाकालेश्वर की सोमवार को निकलने वाली परंपरागत शाही सवारी में शामिल लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा एवं सुविधा के मद्देनजर जिला प्रशासन ने व्यापक स्तर पर तैयारियों को अंतिम रुप दिया।
 
महाकालेश्वर मंदिर में श्रावण महोत्सव डेढ माह तक मनाया जाता है। इसके अन्तर्गत यहां प्राचीनकाल से श्रावण एवं भादौ महीने के प्रत्येक सोमवार को सवारी निकालती है। 
 
इसी क्रम में सोमवार 3 सितंबर को अंतिम एवं शाही सवारी निकाली जाएगी जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होंगे और इसका मार्ग भी थोड़ा लंबा होगा। 
        
देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख भगवान महाकालेश्वर को यहां महाराजाधिराज के रुप में मानते हैं। इस शाही सवारी के धार्मिक महोत्सव में सवारी मार्ग को प्रतिवर्ष दुल्हन की तरह सजाया जाता है। कालों के काल महाकालेश्वर की शाही सवारी के स्वागत लिए जगह जगह मंच बनाए जाते है। जहां हजारों क्विंटल प्रसाद का भी वितरण किया जाता है। सवारी के दौरान सम्पूर्ण शहर हर हर महादेव, जय जय महाकाल सहित कई तेजस्वी नारों से गूंज उठता है।
       
 
श्रावण और भादौ मास की इस विलक्षण सवारी में देश-विदेश से नागरिक शामिल होते हैं। मान्यता है कि उज्जैन में प्रतिवर्ष निकलने  वाली इस सवारी में राजा महाकाल, प्रजा की दुख-तकलीफ को सुनकर उन्हें दूर करने का आशीर्वाद देते हैं। 
 
 सबसे पहले भगवान महाकाल के राजाधिराज रूप को उनके विशेष कक्ष से आमंत्रित कर उनका विधिविधान से आह्वान किया जाता है।

तत्पश्चात् उनसे विशेष श्लोक, मंत्र और आरती के साथ अनुग्रह किया जाता है कि वे अपने नगर के भ्रमण के लिए चलने को तैयार हों।

भगवान महाकाल के राजा रूप प्रजा का हालचाल जानने निकलते हैं तब उन्हें उपवास होता है। अत: वे फलाहार ग्रहण करते हैं। विशेष कर्पूर आरती और राजाधिराज के जय-जयकारों के बीच उन्हें चांदी की नक्काशीदार खूबसूरत पालकी में प्रतिष्ठित किया जाता है।

यह पालकी इतने सुंदर फूलों से सज्जित होती है कि इसकी छटा देखते ही बनती है। भगवान के पालकी में सवार होने और पालकी के आगे बढ़ने की बकायदा मुनादी होती है।

तोपों से उनकी पालकी के उठने और आगे बढ़ने का संदेश मिलता है। पालकी उठाने वाले कहारों का भी चंदन तिलक से सम्मान किया जाता है। आ रही है पालकी, राजा महाकाल की के नारों से मंदिर गूंज उठता है। 
 
भगवान की सवारी मंदिर से बाहर आने के बाद गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है और सवारी रवाना होने के पूर्व चौबदार अपना दायित्व का निर्वाह करते हैं और पालकी के साथ अंगरक्षक भी चलते हैं।
     
जब शहर की परिक्रमा हर्षोल्लास से संपन्न हो जाती है और मंदिर में भगवान राजा प्रवेश करते हैं तो उनका फिर उसी तरह अनुष्ठानिक आह्वान किया जाता है कि सफलतापूर्वक यह सवारी संपन्न हुई है अत: हे राजाधिराज आपके प्रति हम विनम्र आभार प्रकट करते हैं। 
 
इस बार शाही सवारी के साथ 3 सितंबर को जन्माष्टमी भी है अत:जिला प्रशासन ने बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए व्यापक इंतजाम किए हैं। 
 
शाही सवारी निकलने के पूर्व सामाजिक संगठनों एवं अधिकारियों की एक बैठक हुई। शाही सवारी को लेकर जिला एवं पुलिस प्रशासन ने सभी अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए हैं। इस सवारी में जिले के  सम्पूर्ण पुलिस फोर्स के अलावा महिला पुलिस सहित लगभग डेढ़ हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया जाएगा। सवारी के सम्पूर्ण मार्ग के आसपास बैरिकेट्स लगाए गए हैं।
      
सूत्रों के अनुसार सवारी में 64 भजन मंडलियां शामिल होगी.. सभी को क्रम आवंटन जारी कर दिए गए हैं। सवारी ठीक चार बजे मंदिर से रवाना होकर पवित्र क्षिप्रा नदी के रामघाट पहुंचेगी और इसके बाद यह सवारी शहर के प्रमुख मार्गों से होते हुए रात्रि दस बजे मंदिर पहुंचेगी। 

बहुत कम लोग जानते हैं कि जब सवारी मंदिर में आ जाती है उसके बाद राजा रूप धारण किए महाकालेश्वर भगवान कहां जाते हैं। 
 
दरअसल मंदिर वापिस आने के बाद यहां एक बहुत ही खूबसूरत परंपरा निभाई जाती है। भगवान महाकाल अपना व्रत खोलते हैं। उन्हें सुस्वादु व्यंजन से बनी पारंपरिक मालवा थाली परोसी जाती है।

महाकालेश्वर देव को यह भोग लगाने के बाद उनका यह विशेष प्रसाद उनकी पालकी उठाने वाले कहारों को ससम्मान परोस कर खिलाया जाता है।

फिर कलेक्टर, कमिश्नर और शहर के गणमान्य नागरिक तथा वरिष्ठ पुजारियों की उपस्थिति में महाकाल बाबा की जलती मशालों से आरती की जाती है।

क्षण भर के लिए रेशमी पर्दा बंद होता है और भगवान महाकाल अपने विशेष कक्ष में गोपनीय रूप से सम्मान के साथ पंहुचा दिए जाते हैं।

देखने वाले स्तब्ध रह जाते हैं कि अभी तो पालकी में भगवान थे अब कहां गायब हो गए लेकिन यह एक विशेष प्रकार की पूजा होती है जिसे देखने की अनुमति हर किसी को नहीं होती।

आजकल कैमरे के माध्यम से जन जन तक इस पूजा को पंहुचाने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन भगवान जिस कक्ष में विश्राम करते हैं वह देखने की अनुमति किसी को नहीं है।  

ALSO READ: यह है पवित्र कथा महाकालेश्वर की, जानिए कबसे भगवान महाकाल उज्जैन में विराजित हैं

ALSO READ: क्या आप जानते हैं कब से आरंभ हुई महाकाल की सवारी, यहां जानें इतिहास

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Shukra gochar: शुक्र के वृश्‍चिक में मार्गी होने से 4 राशियों पर बरसेगी लक्ष्मी की कृपा! करें मात्र एक उपाय

बुध के मार्गी होने से 3 राशियों को मिलेगी आर्थिक समस्या से मुक्ति

हरिद्वार अर्धकुंभ 2027, स्नान तिथियां घोषित, जानिए कब से कब तक चलेगा कुंभ मेला

Toilet Vastu Remedies: शौचालय में यदि है वास्तु दोष तो करें ये 9 उपाय

Dhanu Rashi 2026: पराक्रम का राहु और अष्टम का गुरु मिलकर करेंगे भविष्य का निर्माण

सभी देखें

धर्म संसार

Lal Kitab Kanya rashi upay 2026: कन्या राशि के जातकों के लिए लाल किताब के अचूक उपाय, शनि से रहना होगा सतर्क

Bhaum Pradosh: भौम प्रदोष का व्रत रखने से कर्ज से मिलेगी मुक्ति, जानिए इसकी कथा

बृहस्पति के मिथुन राशि में गोचर से 4 राशियों का भाग्य चमक जाएगा, 2 जून 2026 तक जो चाहो वो मिलेगा

Aaj Ka Rashifal: आज का दैनिक राशिफल: मेष से मीन तक 12 राशियों का राशिफल (02 दिसंबर, 2025)

02 December Birthday: आपको 2 दिसंबर, 2025 के लिए जन्मदिन की बधाई!

अगला लेख