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पृथ्वी की नाभि पर स्थित है यह दिव्य ज्योतिर्लिंग जहां काल भी मान लेता है हार, जानिए महाकालेश्वर के अद्भुत रहस्य

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WD Feature Desk

, शनिवार, 12 जुलाई 2025 (13:48 IST)
mystery of mahakaleshwar temple: भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक राजधानी, उज्जैन, जिसे प्राचीन काल में अवंतिका के नाम से जाना जाता था, सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि एक जीवंत इतिहास है। यहाँ क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है भगवान शिव का एक ऐसा धाम, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह स्वयं पृथ्वी की नाभि पर विराजमान है – श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसकी महिमा निराली है। आइए, इस पावन धाम के 10 ऐसे रहस्य और मान्यताएँ जानते हैं, जो इसे और भी अद्वितीय बनाते हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग क्यों है पृथ्वी की नाभि पर  
प्राचीन भारतीय ज्योतिष और खगोल विज्ञान के अनुसार, उज्जैन को पृथ्वी का केंद्र बिंदु माना जाता है। यहाँ से ही कर्क रेखा गुजरती है, और यहीं से प्राचीन काल में समय की गणना की जाती थी। मान्यता है कि भगवान महाकाल स्वयं काल (समय) के अधिपति हैं, और इसलिए यह स्थान कालचक्र का केंद्र भी है। यही कारण है कि उज्जैन को 'पृथ्वी की नाभि' कहा जाता है, जहाँ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के 10 अनसुने रहस्य:
स्वयंभू और दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग: महाकालेश्वर एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो स्वयंभू (स्वयं प्रकट हुआ) है और दक्षिणमुखी भी है। आमतौर पर मंदिरों के शिवलिंग उत्तरमुखी होते हैं, लेकिन दक्षिणमुखी होने के कारण इसे तंत्र-मंत्र और मोक्ष प्राप्ति के लिए विशेष महत्व दिया जाता है।

भस्म आरती का अनूठा विधान: विश्व प्रसिद्ध भस्म आरती यहाँ का सबसे बड़ा रहस्य और आकर्षण है। यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जहाँ भगवान शिव को प्रतिदिन सुबह ताज़ी चिता की भस्म से स्नान कराया जाता है। यह आरती जीवन और मृत्यु के चक्र का प्रतीक मानी जाती है। हालांकि वर्तमान समय में मुर्दे की भस्म के स्थान पर पवित्र पूजन सामग्री की भस्म का उपयोग होता है।

काल के अधिपति महाकाल: मान्यता है कि भगवान महाकाल स्वयं काल (समय) के नियंत्रक हैं। यहाँ आने वाले भक्तों को अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता। कहा जाता है कि महाकाल के दर्शन मात्र से ही जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

महाकाल वन का हिस्सा: उज्जैन को प्राचीन काल में महाकाल वन के नाम से जाना जाता था, जो कई धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के स्थानों से भरा था। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग इस पवित्र वन के केंद्र में स्थित है।

शिप्रा नदी का पवित्र संबंध: मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है, जिसका अपना पौराणिक महत्व है। कुंभ मेले के दौरान यहाँ स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता है।

तंत्र-मंत्र का गढ़: दक्षिणमुखी होने और श्मशान भूमि के निकट स्थित होने के कारण, महाकालेश्वर मंदिर को तंत्र-मंत्र साधना के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहाँ कई तांत्रिक सिद्धियाँ प्राप्त करने आते हैं।

राजा विक्रमादित्य से जुड़ाव: उज्जैन का इतिहास राजा विक्रमादित्य से गहराई से जुड़ा है, जिन्होंने यहाँ न्याय और धर्म का शासन स्थापित किया था। महाकालेश्वर मंदिर उनके शासनकाल में भी अत्यंत पूजनीय था।

शिव-शक्ति का अनूठा संगम: मंदिर परिसर में महाकालेश्वर के साथ-साथ शक्तिपीठ हरसिद्धि माता का मंदिर भी है। यह शिव और शक्ति के एक साथ होने का प्रतीक है, जो जीवन के संतुलन को दर्शाता है।

पुरातत्विक महत्व: मंदिर का वर्तमान स्वरूप मराठा काल में बना है, लेकिन इसके नीचे प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले हैं, जो इसकी हजारों साल पुरानी विरासत को दर्शाते हैं।

गर्भ गृह की अनूठी ऊर्जा: मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करते ही एक अलग ही सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। यहाँ की दीवारों से लेकर हर कोने में एक दिव्य स्पंदन महसूस होता है, जो भक्तों को आध्यात्मिकता की गहराई में ले जाता है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक ऐसा स्थान है जहाँ इतिहास, आध्यात्मिकता और रहस्य एक साथ मिलते हैं। यह हर उस व्यक्ति के लिए एक अनुभव है जो भारतीय संस्कृति और शिव की महिमा को करीब से जानना चाहता है।


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