शिवजी की स्तुति : पार्वती पति हर-हर शम्भो

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पार्वती पति हर-हर शम्भो... 

 
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जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा-कर करतार हरे,

जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि, सुख-सार हरे

जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर जय-जय प्रेमागार हरे,

जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे,

निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

 


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जय रामेश्वर, जय नागेश्वर वैद्यनाथ, केदार हरे,

मल्लिकार्जुन, सोमनाथ, जय, महाकाल ओंकार हरे,

त्र्यम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे,

काशी-पति, श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,

नील-कण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृत्युंजय अविकार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥


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जय महेश जय जय भवेश, जय आदिदेव महादेव विभो,

किस मुख से हे गुणातीत प्रभु! तव अपार गुण वर्णन हो,

जय भवकारक, तारक, हारक पातक-दारक शिव शम्भो,

दीन दुःख हर सर्व सुखाकर, प्रेम सुधाकर की जय हो,

पार लगा दो भव सागर से, बनकर करूणाधार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥


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जय मनभावन, जय अतिपावन, शोकनशावन,शिव शम्भो

विपद विदारन, अधम उदारन, सत्य सनातन शिव शम्भो,

सहज वचन हर जलज नयनवर धवल-वरन-तन शिव शम्भो,

मदन-कदन-कर पाप हरन-हर, चरन-मनन, धन शिव शम्भो,

विवसन, विश्वरूप, प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥


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भोलानाथ कृपालु दयामय, औढरदानी शिव योगी,

सरल हृदय,अतिकरुणा सागर, अकथ-कहानी शिव योगी,

निमिष मात्र में देते हैं,नवनिधि मन मानी शिव योगी,

भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी शिव योगी,

स्वयम्‌ अकिंचन,जनमनरंजन पर शिव परम उदार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥


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आशुतोष! इस मोह-मयी निद्रा से मुझे जगा देना,

विषम-वेदना, से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना,

रूप सुधा की एक बूँद से जीवन मुक्त बना देना,

दिव्य-ज्ञान- भंडार-युगल-चरणों को लगन लगा देना,

एक बार इस मन मंदिर में कीजे पद-संचार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥


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दानी हो, दो भिक्षा में अपनी अनपायनि भक्ति प्रभो,

शक्तिमान हो, दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो,

त्यागी हो, दो इस असार-संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो,

परमपिता हो, दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो,

स्वामी हो निज सेवक की सुन लेना करुणा पुकार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥


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तुम बिन ‘बेकल’ हूँ प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे,

चरण शरण की बाँह गहो, हे उमारमण प्रियकन्त हरे,

विरह व्यथित हूँ दीन दुःखी हूँ दीन दयालु अनन्त हरे,

आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमंत हरे,

मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे।

पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ॥


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समाप्त

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