कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िए क्यों नहीं लेते एक दूसरे का नाम?

WD Feature Desk
शुक्रवार, 4 जुलाई 2025 (18:13 IST)
why kanwariyas are called bhole: हर साल सावन का महीना आते ही देशभर के शिवभक्त “हर-हर महादेव” और “बोल बम” के जयकारों के साथ कांवड़ यात्रा पर निकल पड़ते हैं। ये श्रद्धालु विभिन्न नदियों से गंगाजल लेकर लंबी और कठिन यात्रा तय करते हैं और अंत में शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। इस यात्रा में आस्था, संकल्प और भक्ति का जबरदस्त संगम देखने को मिलता है।
 
लेकिन इस यात्रा के दौरान एक बात और जो अक्सर लोगों का ध्यान खींचती है, वह यह है कि कांवड़ यात्रा पर निकले श्रद्धालु यानी कांवड़िए एक-दूसरे को नाम से नहीं पुकारते। ऐसा क्यों होता है? क्या यह महज धार्मिक परंपरा है या इसके पीछे कोई गहरी आस्था और रहस्य भी छिपा है? आइए जानते हैं विस्तार से।
 
कावड़ यात्रा के दौरान नाम न लेने की परंपरा
कांवड़ यात्रा एक तप, एक व्रत और एक विशेष भक्ति यात्रा मानी जाती है। इस यात्रा के दौरान कांवड़िए अपने सांसारिक जीवन से दूरी बना लेते हैं। वे भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, जहां हर सांस शिव के नाम में डूबी होती है। ऐसे में एक-दूसरे को नाम से पुकारना उन्हें सांसारिकता की ओर लौटने जैसा प्रतीत होता है। वे इस यात्रा परभगवान शिव की भक्ति में लीन होना चाहते हैं, इसलिए वे इस दौरान केवल "बोल बम", "जय शिव", "बम-बम भोले" जैसे शिव नामों का ही उच्चारण करते हैं।
 
यह केवल एक आस्था नहीं बल्कि एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया भी है, जब व्यक्ति अपने व्यक्तिगत परिचय और पहचान को पीछे छोड़कर स्वयं को समर्पित आत्मा के रूप में स्वीकार करता है।
 
समानता की भावना
नामों के त्याग का एक और बड़ा कारण है, समता का अनुभव। चाहे कोई गांव से हो या शहर से, धनी हो या गरीब, जब सब “बोल बम” बन जाते हैं, तो उनके बीच का हर फर्क मिट जाता है। यह परंपरा समाज में एकता, सहयोग और समानता को मजबूत करती है। हर कांवड़िया एक-दूसरे का भाई बन जाता है, बिना किसी पहचान, जाति या वर्ग के।
 
नाम त्यागने का तात्पर्य
कांवड़ यात्रा में नाम का त्याग अहंकार के त्याग का प्रतीक है। नाम व्यक्ति की पहचान और अहं का वाहक होता है, लेकिन जब कोई व्यक्ति “बम” बनकर यात्रा करता है, तो वह अपना अहं छोड़ चुका होता है।
 
वह अब केवल एक साधक होता है, शिव का सेवक। इसीलिए यात्रा में न कोई बड़ा होता है, न छोटा; न कोई नेता, न अनुयायी; सब बराबर, सब शिव के नाम पर एक। इसलिए जब कोई साथी पीछे छूट जाता है या मदद की जरूरत होती है, तो आवाज आती है,"बम, रुको", "बोल बम, संभालो", "जय भोले, साथ चलो", कोई नाम नहीं, सिर्फ शिव का नाम।
 
शिवभक्ति का अनुशासन
लोकमान्यता के अनुसार, कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िए शिव की सेवा में होते हैं, और इस दौरान वे स्वयं को किसी सामान्य मनुष्य की तरह नहीं देखते। कई धार्मिक ग्रंथों और किंवदंतियों में उल्लेख है कि इस यात्रा के दौरान श्रद्धालु शिवगण बन जाते हैं। ऐसी मान्यता भी है कि किसी का नाम लेने से उसका "तप" टूट सकता है या उसका संकल्प कमजोर हो सकता है। नाम लेने से उस व्यक्ति की "माया" जाग सकती है, वह घर, परिवार या सांसारिक जिम्मेदारियों की ओर ध्यान देने लगे। इसी कारण, नामों का त्याग यात्रा के मूलभूत नियमों में से एक माना गया है।

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