निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्री कृष्णा धारावाहिक के 6 मई के चौथे एपिसोड में भगवान श्रीकृष्ण से नारद कहते हैं कि प्रभु ये कैसी लीला है आपकी? आपने उस पापी के मन में दया का भाव डाल दिया, तो उसके पाप का घड़ा कैसे भरेगा और फिर कैसे उसका संहार होगा? यह सुनकर श्रीकृष्ण मुस्करा देते हैं।
कंस से चाणूर कहता है कि स्वामी आपने ये जो उस बालक को आपने जीता छोड़ दिया यह ठीक नहीं किया। कंस पूछता है क्यों? हमें उससे कोई भय नहीं। हमारी शत्रु तो देवकी की आठवीं संतान है। फिर हम उस बालक की हत्या का पाप अपने सिर क्यूं उठाएं?
तब चाणूर अपना हाथ आगे बढ़ाकर कहता है कि युवराज। इन पांचों अंगुलियों में से पहली कौनसी और पांचवीं कौनसी? ये इस बात पर निर्भर करता है कि ये गिनती आप किस ओर से आरंभ करते हैं। किसी फूल की यदि आठ पंखुड़ियां हो तो उनमें से प्रत्येक पंखुड़ी आठवीं हो सकती है। यह मत भूलिए कि विष्णु देवताओं का पक्षपाती है और उसने अपने विरोधियों को हमेशा छल से मारा है। इस बार उसने माया से आपके मन में ममता का भाव जगा दिया है। युवराज आप इस पहली और आठवीं के मायाजाल से निकलकर देवकी की प्रत्येक संतान का वध कर दीजिए।
चाणूर की यह बात सुनकर कंस घबरा जाता है। उसे चाणूर की बात समझ में आ जाती है। कंस अट्टाहास करता हुआ कहता है कि अब देवकी की कोई संतान जीवित नहीं रहेगी।
इधर, वसुदेव बालक को लेकर देवकी के पास पहुंचते हैं तो देवकी खुश होकर पूछती है। भैया ने छोड़ दिया। वसुदेव कहते हैं हां। तभी कंस वहां आ धमकता है और बालक को देवकी के हाथ से छुड़ा ले जाता है। देवकी रोती रह जाती है और वह ले जाकर उसका वध कर देता है।
फिर वह सैनिकों को आदेश देता है कि ले जाओ इन्हें और यमुना किनारे वाले कारागार में डाल दो। सारे नगर में मगध की सेना तैनात कर दो, जिससे कोई नागरिक उथल-पुथल न कर सके। अक्रूर आदि सभी के महलों को घेर लिया जाए।
देवकी और वसुदेव को कड़े पहरे वाले कारागार में डाल दिया जाता है। यह बात एक दासी जाकर राजा उग्रसेन को बताती है। राजा उग्रसेन क्रोधित होकर प्रहरी से कहते हैं कि सेनापति को तुरंत हमारे पास आने का कहो। सेनापति वीरसेन आते हैं और महाराज को बताते हैं कि मैंने युवराज को आपके सामने उपस्थित होने की सूचना दी है लेकिन वे अभी तक नहीं आए। तब राजा उग्रसेन कहते हैं कि सैनिक भेजकर उसे बंदी बनाकर लाया जाए।
तभी वहां कंस आ धमकता है और कहता है कि अपराधी स्वयं ही आ गया है महाराज। कहिये क्या आज्ञा है?
उग्रसेन कहते हैं कि आज्ञा तुम्हें भरे दरबार में सुनाई जाएगी आज तुम्हें एक बंदी की भांति बंदी ग्रह में रखा जाएगा। दोनों के बीच बालक की हत्या और देवकी एवं वसुदेव को बंदी बनाने को लेकर वाद-विवाद होता है। इसी बीच कंस तलवार निकाल लेता है। यह देखकर उग्रसेन वीरसेन से कहते हैं कि बंदी बना लो इस दुष्ट को।
तब सेनानायक वीरसेन तलवार निकालकर कहता है अपनी तलवार फेंक दो युवराज। सैनिक का काम राजा की आज्ञा का पालन करना होता है। तभी वहां पर कंस की समर्थक सेना आ धमकती हैं और उग्रसेन सहित उनके सैनिकों को घेर लिया जाता है। वीरसेना वीरगति को प्राप्त हो जाता है और राजा उग्रसेन को बंदी बना लिया जाता है।
बाद में राजदरबार में कंस राज सिंहासन पर बैठकर अपने मंत्रियों के साथ चर्चा करता है। चाणूर कहते हैं कि उग्रसेन के जितने भी समर्थक हैं उनका सिर कुचल दिया जाए महाराज और उनके जितने भी सच्चे समर्थक हैं उन्हें उनके महल में ही बंदी बना लिया जाए। तब महाराज के राजपुरोहित, प्रधानमंत्री को भी बंदी बना लिया जाता है।
उधर, यह खबर वसुदेव के पिता को अक्रूरजी सुनाते हैं कि किस तरह मथुरा में अराजका फैल गई और मगथ के सैनिकों ने मथुरा पर अपना नियंत्रण करके राजा उग्रसेना को बंदी बना लिया है। अक्रूरजी कहते हैं कि महाराज आप भी यहां निकल जाएं। तभी सूचना मिलती है कि उनके महल को भी चारों ओर से घेर लिया गया है। राजा अक्रूरजी को गुप्त मार्ग से बाहर निकाल देते हैं।
अक्रूरजी नगर के गुप्त स्थान पर उग्रसेन के समर्थकों से चर्चा करते हैं और कहते हैं कि मैं और मित्रसेन आज ही कुमार वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी को रातोरात यहां से निकालकर गोकुल में नंदराय के पास छोड़ आएंगे। कुमार वसुदेव और नंदरायजी एक ही दादा की संतान हैं। जय श्रीकृष्णा।