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सिखों के नौवें गुरु तेगबहादुरजी का शहीदी पर्व...

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गुरु तेगबहादुरजी का शहीदी पर्व... 
 

 
सिखों के नौवें गुरु हैं श्री गुरु तेगबहादुर। जिन्होंने धर्म व मानवता की रक्षा करते हुए हंसते-हंसते अपने प्राणों की कुर्बानी दी। 
 
एक समय की बात है। औरंगजेब के दरबार में एक विद्वान पंडित आकर गीता के श्लोक पढ़ता और उसका अर्थ सुनाता था, पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था।
 
एक दिन पंडित बीमार हो गया और औरंगजेब को गीता सुनाने के लिए उसने अपने बेटे को भेज दिया किंतु उसे उन श्लोकों के बारे में बताना भूल गया जिनका अर्थ वहां नहीं करना था। 
 
उसके बेटे ने जाकर औरंगजेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया जिससे औरंगजेब को यह स्पष्ट हो गया कि हर धर्म अपने आपमें एक महान धर्म है। पर औरंगजेब खुद के धर्म के अलावा किसी और धर्म की प्रशंसा नहीं सुन सकता था। उसके सलाहकारों ने उसे सलाह दी कि वह सबको इस्लाम धारण करवा दे। 
 
औरंगजेब को यह बात समझ में आ गई और उसने सबको इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दिया और कुछ लोगों को यह कार्य सौंप दिया। 
 
उसने कहा कि सबसे कह दिया जाए कि इस्लाम धर्म कबूल करो या मौत को गले लगाओ। जब इस तरह की जबरदस्ती शुरू हो गई तो अन्य धर्म के लोगों का जीना मुश्किल हो गया। 
 

 
इस जुल्म के शिकार कश्मीर के पंडित गुरु तेगबहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस तरह ‍इस्लाम धर्म स्वीकारने के लिए दबाव बनाया जा रहा है और न करने वालों को तरह-तरह की यातनाएं दी जा रही हैं। हमारी बहू-बेटियों की इज्जत को खतरा है। जहां से हम पानी भरते हैं वहां हड्डियां फेंकी जाती है। हमें बुरी तरह मारा जा रहा है। कृपया आप हमारे धर्म को बचाइए। 
 
जिस समय यह लोग समस्या सुना रहे थे उसी समय गुरु तेगबहादुर के नौ वर्षीय सुपुत्र बाला प्रीतम (गुरु गोविंदसिंह) वहां आए और पिताजी से पूछा- पिताजी यह लोग इतने उदास क्यों हैं? आप इतनी गंभीरता से क्या सोच रहे हैं?
 
गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों की सारी समस्या बताई तो बाला प्रीतम ने कहा- इसका निदान कैसे होगा? गुरु साहिब ने कहा- इसके लिए बलिदान देना होगा। बाला प्रीतम ने कहा कि आपसे महान पुरुष मेरी नजर में कोई नहीं है, भले ही बलिदान देना पड़े पर आप इनके धर्म को बचाइए। 
 
उसकी यह बात सुनकर वहां उपस्थित लोगों ने पूछा- अगर आपके पिता जी बलिदान दे देंगे तो आप यतीम हो जाएंगे और आपकी मां विधवा हो जाएगी। बालक ने कहा कि अगर मेरे अकेले के यतीम होने से लाखों लोग यतीम होने से बच सकते हैं और अकेले मेरी मां के विधवा होने से लाखों मां विधवा होने से बच सकती है तो मुझे यह स्वीकार है।
 
फिर गुरु तेगबहादुर ने उन पंडितों से कहा कि जाकर औरंगजेब से कह ‍दो ‍अगर गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धारण कर लिया तो हम भी कर लेंगे और अगर तुम उनसे इस्लाम धारण नहीं करा पाए तो हम भी इस्लाम धारण नहीं करेंगे और तुम हम पर जबरदस्ती नहीं कर पाओगे। औरंगजेब ने इस बात को स्वीकार कर लिया।
 
गुरु तेगबहादुर दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में स्वयं चलकर गए। वहां औरंगजेब ने उन्हें तरह-तरह के लालच दिए। किंतु बात नहीं बनी तो उन पर बहुत सारे जुल्म किए। उन्हें कैद कर लिया गया, उनके दो शिष्यों को मारकर उन्हें डराने की कोशिश की, पर गुरु तेगबहादुर टस से मस नहीं हुए। 
 
उन्होंने औरंगजेब को समझाइश दी कि अगर तुम जबरदस्ती करके लोगों को इस्लाम धारण करने के लिए मजबूर कर रहे हो तो यह जान लो कि तुम खुद भी सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि तुम्हारा धर्म भी यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म किया जाए।
 
औरंगजेब को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु साहिब के शीश को काटने का हुक्म दे दिया और गुरु साहिब ने हंसते-हंसते अपना शीश कटाकर बलिदान दे दिया। इसलिए गुरु तेगबहादुरजी की याद में उनके शहीदी स्थल पर एक गुरुद्वारा स‍ाहिब बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा शीश गंज साहिब है।
 
हिन्दुस्तान और हिन्दू धर्म की रक्षा करते हुए शहीद हुए गुरु तेगबहादुरजी को प्रेम से कहा जाता है- 'हिन्द की चादर, गुरु तेगबहादुर।'
 
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