गोविंद सिंह ने कभी भी जमीन, धन-संपदा, राजसत्ता-प्राप्ति या यश-प्राप्ति के लिए लड़ाइयां नहीं लड़ीं। उनकी लड़ाई होती थी अन्याय, अधर्म एवं अत्याचार और दमन के खिलाफ। युद्ध के बारे में वे कहते थे कि जीत सैनिकों की संख्या पर निर्भर नहीं, उनके हौसले एवं दृढ़ इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। जो नैतिक एवं सच्चे उसूलों के लिए लड़ता है, वह धर्मयोद्धा होता है तथा ईश्वर उसे विजयी बनाता है।
गुरुजी की लड़ाई सिद्धांतों एवं आदर्शों की लड़ाई थी और इन आदर्शों के धर्मयुद्ध में जूझ मरने एवं लक्ष्य-प्राप्ति हेतु वे ईश्वर से वर मांगते हैं- 'देहि शिवा वर मोहि, इहैं, शुभ करमन ते कबहू न टरौं।'
इतिहास में गुरु गोविंद सिंह एक विलक्षण क्रांतिकारी संत व्यक्तित्व है। गुरु गोविंद सिंह जी ने समूचे राष्ट्र के उत्थान के लिए संघर्ष के साथ-साथ निर्माण का रास्ता अपनाया। सती प्रथा, बाल विवाह, बहु विवाह, लड़की पैदा होते ही मार डालने जैसी बुराइयों के खिलाफ आवाज बुलंद की।
वे एक महान कर्मप्रणेता, अद्वितीय धर्मरक्षक, ओजस्वी वीर रस के कवि के साथ ही संघर्षशील वीर योद्धा भी थे।