सिंहस्थ : आकर्षण का केन्द्र रहेंगे उज्जैन के प्रमुख दर्शनीय स्थल

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-अनिल चन्देलकर

सिंहस्थ-2016 महाकुंभ में आने वाले देश-विदेश के श्रद्धालुओं के लिए उज्जैन के प्रमुख मन्दिर एवं पर्यटन स्थल आकर्षण का केन्द्र रहेंगे। यहां आने वाले श्रद्धालु इन मन्दिरों एवं स्थलों पर जाकर मन की शान्ति एवं आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

 
इन दर्शनीय स्थलों एवं पर्यटन स्थलों में श्री महाकालेश्वर मन्दिर सर्वोपरि है। महाकालेश्वर मन्दिर भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में स्वयंभू दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर का प्रमुख स्थान है। यह मन्दिर अनादिकाल से उज्जैन में स्थित है। 18वी शताब्दी में राणौजीराव शिन्दे के दीवान श्री रामचन्द्र बाबा ने मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था। 



नागचंद्रेश्वर महादेव महाकालेश्वर मन्दिर के शिखर पर नागचंद्रेश्वर महादेव की मूर्ति स्थापित है, जो वर्ष में एक बार नागपंचमी के त्योहार पर दर्शनार्थियों के लिए खोला जाता है। 

बड़ा गणेश मन्दिर महाकाल प्रवचन हॉल के सामने बड़े गणेश का मन्दिर है, जिसमें भगवान गणेश की भव्य मनोहारी प्रतिमा स्थापित है। 


हरसिद्धि मन्दिर शिव पुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति के हवन कुण्ड से शिव द्वारा सती को उठाकर ले जाने एवं भारत के विभिन्न स्थानों पर सती के अंग गिरने का आख्यान है। जिन 52 स्थानों पर सती के अंग गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाए। 



उज्जैन के हरसिद्धि मन्दिर के स्थल पर सती की कोहनी गिरने से सिद्ध शक्तिपीठ माना गया है और यह मां हरसिद्धि के रूप में प्रसिद्ध हुआ है। 

गोपाल मन्दिर महाराजा दौलतराव की महारानी बायजाबाई ने मन्दिर बनवाकर इसमें गोपालकृष्ण की मूर्ति स्थापित की। काले पाषाण, संगमरमर एवं रजत दरवाजों का यह मन्दिर ऐतिहासिक महत्व का है। मन्दिर में गोपालकृष्ण एवं राधाजी की आकर्षक प्रतिमाएं हैं। 



चौबीस खंबा माता मन्दिर यह मन्दिर अतिप्राचीन है। यहां 12वी शताब्दी का शीलालेख लगा है, जिसमें अनहीलपट्टन के राजा ने व्यापारियों को लाकर यहां बसाया था1 यहां महालया एवं महामाया दो देवियों की मूर्तियां हैं। 

गढ़कालिका मन्दिर यह मन्दिर भर्तृहरि गुफा के समीप है। स्कन्द पुराण के अनुसार उज्जैन शक्ति के चौबीस स्थानों में से एक माना गया है। शक्ति संगम में जिसका उल्लेख है, वह गढ़कालिका है। महाकवि कालिदास के तप से प्रसन्न होकर गढ़कालिका ने उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिया और देवी के आशीर्वाद से ही कालिदास को विद्वतता एवं कवित्व की प्रतिभा प्राप्त हुई। 

कालभैरव पुराणों में उल्लेखित अष्टभैरवों में कालभैरव प्रमुख हैं। भगवान शिव के तृतीय नेत्र से उत्पन्न कालभैरव शैव धर्म के कापालिक एवं अघोर सम्प्रदाय से प्रमुख रूप से पूजे जाते हैं। कालभैरव प्रतिमा चमत्कारिक है। मूर्ति के मुख में छिद्र नहीं है, फिर भी मूर्ति को मद्यपान कराते समय मद्यपात्र खाली हो जाता है। 

सिद्धवट मन्दिर भारतवर्ष के प्रसिद्ध पंचवट-गया में बोधिवट इलाहाबाद में, अक्षयवट वृंदावन में बंशीवट, नाशिक में पंचवट तथा उज्जैन में सिद्धवट विशेष पवित्र माने गए हैं। हिन्दू समाज में इस स्थल पर मृत्यु उपरान्त क्रियाकर्म का गया-तीर्थ के समान महत्व है। 

मंगलनाथ मन्दिर अंकपात के निकट शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। पौराणिक परम्परा अनुसार उज्जैन मंगल ग्रह की जन्मभूमि है। ऐसा माना जाता है कि मंगलनाथ के ठीक ऊपर आकाश में मंगल ग्रह स्थित है।





यहां चौरासी महादेव में 43वें महादेव अंगारेश्वर मन्दिर हैं- यहां अतिप्राचीन शिवलिंग स्थापित है, जिसके बारे में जानकारों का कहना है कि यह मंगल ग्रह का उल्का पिण्ड है। मंगल दोष निवारण हेतु यहां भातपूजा का विशेष महत्व है। देश-विदेश के अनेक पर्यटक विशेष पूजन हेतु यहां आते हैं। 

राम जनार्दन मन्दिर- प्राचीन विष्णु सागर के तट पर विशाल परकोटे से घिरा यह मन्दिरों का समूह है। इनमें एक राम मन्दिर एवं दूसरा विष्णु मन्दिर है। इसे सवाई राजा एवं मालवा के सूबेदार जयसिंह ने बनवाया था। 
 
चिन्तामन गणेश मन्दिर उज्जैन से पांच किलो मीटर दूरी पर ये मन्दिर स्थित है। मूर्ति एवं मन्दिर परमारकालीन हैं। मन्दिर में इच्छामन, चिन्तामन एवं चिन्ताहरण गणेश के नाम से तीन प्रतिमाएं हैं। 



त्रिवेणी नवग्रह शनि मन्दिर उज्जैन-इन्दौर मार्ग पर आठ किलो मीटर दूरी पर शिप्रा, खान एवं सरस्वती नदी के संगम पर नवग्रह मन्दिर स्थित है। इसे त्रिवेणी भी कहा गया है। यहां नवग्रहों की शिवलिंग के रूप में पूजा की जाती है। 

नगरकोट की महारानी मन्दिर में प्रतिमा के स्थूल रूप से प्रतीत होता है कि यह नगर के परकोटे की रक्षिका देवी है। अवंतीखण्ड में वर्णित नौ मातृकाओं में से सातवी कोटरी देवी है। दोनों नवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष उत्सव मनाया जाता है। 

चौंसठ योगिनी मन्दिर उज्जैन की नयापुरा बस्ती में चौंसठ योगिनी का मन्दिर है। तंत्र परम्परा में चौंसठ योगिनियों का विशेष महत्व है। यहां अतिप्राचीन प्रतिमाएं हैं। 

चित्रगुप्त धर्मराज मन्दिर राम जनार्दन मन्दिर के निकट कायस्थ समाज का महत्वपूर्ण तीर्थ है। पद्मपुराण के पातालखण्ड के अनुसार चित्रगुप्त ने ब्रह्मा के आदेश से उज्जैन के शिप्रा तट पर नगर कोट में तपस्या की थी। 

सान्दीपनि आश्रम अंकपात सान्दीपनि ऋषि का आश्रम मंगलनाथ रोड पर स्थित है। यहां पर भगवान श्रीकृष्ण, बलराम एवं सुदामा ने अध्ययन किया। कुण्ड के पास खड़े नन्दी की प्रतिमा शुंगकालीन है। श्री वल्लभाचार्य ने इस स्थल पर प्रवचन दिया था। श्री अवन्ति पार्श्वनाथ मन्दिर श्वेताम्बर जैनों का यह मन्दिर शिप्रा तट पर स्थित है। 

भूखीमाता मन्दिर शिप्रा के तट पर कर्कराजेश्वर मंदिर के सामने नदी तट पर भूखी माता का प्राचीन मंदिर स्थित है। पूर्ववर्ती काल में भूखीमाता का नगर में वास था। इस मन्दिर में माता के दो रूप हैं, जिन्हें भूखी (भुवनेश्वरी) माता एवं देवी धूमावती कहते हैं। राजा विक्रमादित्य के काल से चली आ रही नगर देवियों की पूजा में भूखीमाता का प्रमुख स्थान है। 

भर्तृहरि गुफा उज्जैन की सांस्कृतिक परम्परा में भर्तृहरि नरेश, दार्शनिक, तपस्वी एवं लेखक रहे हैं। भर्तृहरि राजा विक्रमादित्य के ज्येष्ठ भ्राता थे। पीर मत्स्येंद्रनाथ भर्तृहरि गुफा के चारों ओर का क्षेत्र प्राचीन उज्जैन क्षेत्र था। पुरातत्वीय उत्खनन से प्राप्त अवशेष इसकी प्राचीनता सिद्ध करते हैं। यहीं पर पीर मत्स्येंद्रनाथ की समाधि है। नौ नाथों के प्रमुख मत्स्येंद्रनाथ थे। नाथ सम्प्रदाय के सन्तों को पीर कहा जाता है। 

चौरासी महादेव मन्दिर उज्जैन के पंचक्रोशी मार्ग में कुल 84 महादेव मन्दिर हैं। इनमें से उज्जैन शहर से बाहर चार द्वारपाल महादेव माने जाते हैं। इसके अलावा उज्जैन में अवन्ति पार्श्वनाथ मन्दिर, वेधशाला, कालियादेह महल, इस्कॉन मन्दिर, चारधाम मन्दिर, प्रशान्तिधाम, मणिभद्रवीर मन्दिर भी दर्शनीय हैं।

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