फुटबॉल महाकुंभ पर आर्थिक अवसाद की छाया

शरद सिंगी
ब्राजील में विश्व के सबसे लोकप्रिय और रोमांचक खेल फुटबॉल का कुंभ आरंभ हो चुका है। दुनिया के हर देश और हर खेलप्रेमी की एक मुराद होती है कि उसके जीवनकाल में कम कम से एक बार, प्रति 4 वर्षों में होने वाला यह आयोजन उसके देश में हो। फिर ब्राजील की तो बात ही कुछ अलग है।

पांच बार का विश्व विजेता देश, जहां फुटबॉल खेल नहीं धर्म है, देश की धड़कन है। यहां फुटबॉल को खेला नहीं, जिया जाता है। ऐसा देश है जिसने फुटबॉल के खेल को आधुनिक स्तर दिया।
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ब्राजील की ही एक ऐसी अनोखी टीम है, जो पिछले 3 दशकों से जब भी मैदान में उतरती है तो उससे हर बार विजेता बनने की उम्मीद रखी जाती है।

ब्राजील की टीम की कलात्मकता से पूरा संसार मुग्ध है। पेले, रोनाल्डो, काका, रोनाल्डिन्हो जैसे अनेक खिलाड़ियों ने विश्व के खेलप्रेमियों का दिल अपने खेल से जीता है।

फुटबॉल जैसे आक्रामक खेल को कितनी कलात्मकता और ईमानदारी से खेला जा सकता है इसे ब्राजील ने विश्व को दिखाया और सिखाया है। विश्व कप के दौरान ब्राजील में सारे काम रुक जाते हैं और देश जैसे फुटबॉल की धारा में बह जाता है।

ऐसे दीवाने देश में ऐसी दीवानी जनता के बीच विश्व कप का आयोजन किसी परीकथा से कम नहीं होना चाहिए था, किंतु ऐसी कौन-सी नजर लगी कि यहां की आम जनता इस आयोजन का पुरजोर विरोध करने को मजबूर हो गई। बड़ी विचित्र और दुखद स्थिति है।

इस तरह के महाआयोजन पहले अमीर देश ही कर पाते थे। किंतु जैसे-जैसे खेलों का व्यवसायीकरण हुआ और खेल, विज्ञापनों के माध्यम से पैसा कमाने का जरिया बनने लगे तब से विकासशील देशों को भी हौसला मिल गया इन आयोजनों को करने का। इन खेलों के आयोजनों से दूसरे लाभ भी हुए।

उदाहरण के लिए व्यापक पैमाने पर निर्माण कार्य हुआ जिससे शहरों का आधुनिकीकरण हुआ, अर्थव्यवस्था में सहयोग मिला। ऐसे आयोजनों से बाजार में पूंजी का संचार होता है। निर्माण कंपनियों को ठेके मिलने से उनसे जुड़े दूसरे उद्योग और सेवा क्षेत्र में धन का प्रवाह आरंभ होता है।

दुनियाभर से लाखों लोगों के आने से देश में पर्यटन का विकास तो होता ही है, साथ में विभिन्न देशों से आए इतने लोग देश की सामर्थ्य से परिचित होते हैं। विकास के नए दरवाजे खुलते हैं। किंतु दुर्भाग्य कि धन के प्रवाह के साथ भ्रष्ट लोगों का जुड़ना भी प्रारंभ हो जाता है।

भारत के एशियाई खेलों में हुए भ्रष्टाचार को हम भूले नहीं हैं। हाल में हुए रूस में भी शीतकालीन ओलंपिक में बड़े पैमाने पर धन का गबन हुआ था। अब वैसे ही आरोप ब्राजील की आयोजन समिति पर लग रहे हैं।

धन के निवेश से यदि देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होता है तो किसी को आपत्ति नहीं होती किंतु यहां तो धन कुछ लोगों की जेबों में चला गया है।

जाहिर है बुरी तरह आर्थिक तंगी से जूझ रहे नागरिकों को इतना महंगा आयोजन गले नहीं उतर रहा। विकासशील देशों में भ्रष्टाचार कैंसर की तरह फैल रहा है। सत्ता चंद हाथों की गुलाम हो गई है। प्रशासन और राजनीतिक व्यवस्था भ्रष्ट हो चुकी है।

भ्रष्टाचार और अक्षमता के कारण आयोजन की लागत का सरकारी आंकड़ा 66 हजार करोड़ रुपए पार कर गया है। ब्राजील के नागरिक दुखी हैं। हजारों निराश्रय लोगों ने विरोध करते हुए मोर्चा निकाला कि विश्व कप के आयोजन में बढ़ती लागत को रोका जाए और अर्जित धनराशि का उपयोग स्वास्थ्य सेवाओं, यातायात व्यवस्था में सबसिडी, शिक्षा आदि पर खर्च किया जाए।

जनता दोयम दर्जे की शिक्षा संस्थाओं, निम्न स्तर की स्वास्थ्य सेवाओं और बदतर सार्वजनिक परिवहन सेवाओं से त्रस्त है। कहीं खेलों में अवरोध डालने के आह्वान हो रहे हैं तो कहीं बहिष्कार करने की बातें।

किंतु सरकार यह भी जानती है कि ब्राजील का नागरिक बिना फुटबॉल के रह नहीं सकता, फुटबॉल उनका जीवन भी है और कमजोरी भी है। अंततः दिल की बात सुनी जाएगी और जनता अपने डंडे-झंडे छोड़कर स्टेडियम में आ जाएगी।

ब्राजील की राष्ट्रपति डिलिमा रोसेफ ने विश्व कप आरंभ होने के एक सप्ताह पूर्व अपने आलेख में ब्राजील को फुटबॉल की भूमि बताते हुए देश की गौरवशाली जीतों का उल्लेख किया है।

वे लिखती हैं कि फुटबॉल के खेल का जन्म तो इंग्लैंड में हुआ था किंतु इस खेल ने घर बनाया ब्राजील में। अतिउत्साह में उन्होंने ब्राजील की आर्थिक उपलब्धियों का भी जिक्र किया है, जो किसी के गले नहीं उतरता।

ब्राजील की जनता और फुटबॉल टीम का सारा जुनून, सारी ताकत, सारे प्रयत्न एक जगह केंद्रित हैं तो प्रदर्शन तो श्रेष्ठ होना ही है। तीन दशकों से शीर्ष के आस-पास निरंतर बने रहना कोई आसान काम नहीं है, खिलाड़ियों की पीढ़ियां खप जाती हैं। यह दर्शाता है कि ब्राजील के नागरिक कितने जुनूनी और धुन के पक्के हैं।

विश्व कप के उद्घाटन मैच में क्रोएशिया को 3 के मुकाबले 1 गोल से हराकर उन्होंने अपने कौशल और इरादों के संकेत दे दिए हैं। यदि 20 करोड़ ब्राजीलवासी उसी शिद्दत से राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने की ठान लें तो इनको कौन रोक सकता है?

ब्राजील का आम नागरिक एक सम्मानपूर्ण जीवन जीने का अधिकारी है, जो उसे मिलना चाहिए और उनकी संकल्प शक्ति के आगे यह असंभव भी नहीं है।

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