नई दिल्ली। भारतीय टेनिस को नई ऊँचाईयों पर पहुँचाने वाले लिएंडर पेस ने 1985 में 12 साल की उम्र में जब चेन्नई की अमृतराज टेनिस अकादमी में कदम रखा तो उनका सपना था भारत का सर्वश्रेष्ठ टेनिस खिलाड़ी बनना, ओलिम्पिक पदक जीतना और डेविस कप में सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड रखना।
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और देखिये कि अपने दमखम और कभी हार न मानने के जज्बे के कारण हाल में फ्रेंच ओपन के रूप में न ौवा ँ ग्रैंड स्लैम खिताब जीतने वाले पेस का हर सपना पूरा हुआ। वह निर्विवाद रूप से भारत के सर्वश्रेष्ठ टेनिस खिलाड़ी हैं। उन्होंने 1996 अटलांटा ओलिम्पिक में एकल का काँस्य पदक जीता और डेविस कप में 84 जीत के साथ वह दुनिया के चोटी के दस खिलाड़ियों में शामिल हैं।
हॉकी ओलिम्पियन वेस पेस और भारतीय बास्केटबॉल टीम की कप्तान जेनिफर के घर में 17 जून 1973 को गोवा में जन्में और कोलकाता में पले बढ़े लिएंडर ने टेनिस को समर्पित होने से पहले हर खेल में अपने हाथ आजमाए। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि मैंने प्रत्येक खेल खेला है क्योंकि मैं ओलंपियन परिवार में पैदा हुआ। मैंने हॉकी, बास्केटबाल, क्रिकेट, फुटबॉल, रग्बी, स्कूबा डाइविंग सभी में हाथ आजमाए हैं।
पेस का नाम लोगों की जुबान 1990 में तब चढ़ा था जब उन्होंने विम्बलडन में जूनियर वर्ग का एकल खिताब जीता था। इसके बाद उन्होंने अमेरिकी ओपन में यही कारनामा दिखाया और एक साल बाद पेशेवर टेनिस खिलाड़ी बने।
अपना 36वाँ जन्मदिन मना रहे पेस ने 16 साल की उम्र से भारत की तरफ से डेविस कप में खेलना शुरू किया। उन्होंने अब तक भारत की तरफ से डेविस कप में रिकॉर्ड 115 मैच खेले हैं जिसमें 84 (48 एकल और 36 युगल) में उन्हें जीत मिली जबकि केवल 31 (22 एकल और 9 युगल) में ही उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
इसके अलावा अब तक पाँच युगल और चार मिश्रित युगल सहित नौ ग्रैंड स्लैम एक एटीपी एकल खिताब तथा 40 युगल खिताब जीतने वाले पेस हालाँकि अपने करियर का सबसे यादगार पल उसे मानते हैं जबकि वह अटलांटा में आंद्रे अगासी और सर्गेई ब्रुगएरा के साथ पोडियम पर खड़े थे। उन्होंने कहा तब मेरे गले में काँस्य पदक लटक रहा था और मेरे पिता और पूरा परिवार दर्शकों में शामिल था।
चावल और रसम के शौकीन पेस को अपने करियर में सबसे अधिक दु:ख एथेंस ओलिम्पिक 2004 में हुआ था जब वह और भूपति काँस्य पदक के लिए खेले गए मैच में मैच प्वाइंट गँवाकर हार गए थे। अटलांटा ओलिम्पिक में अपनी उपलब्धि के लिए देश के सर्वोच्च खेल सम्मान 'राजीव गाँधी खेल रत्न' और 'पद्मश्री' से नवाजे गए।
पेस ने अपना एकमात्र एटीपी एकल खिताब 1998 में न्यूपोर्ट में जीता था। इसी वर्ष उन्होंने न्यू हैवन में पीट सैम्प्रास को हराकर तहलका मचा दिया था। वैसे डेविस कप में भी उन्होंने वायने फरेरा, गोरान इवानिसेविच, जिरी नोवाक जैसे दिग्गज खिलाड़ियों को पराजित किया।
पेस अब 36 साल के हो गए हैं। ऐसी उम्र जो किसी भी टेनिस खिलाड़ी के लिए बहुत अधिक मानी जाती है लेकिन हाल में फ्रेंच ओपन में उन्होंने इस तरह का खेल दिखाया जैसे कि वह 25 साल की उम्र में खेला करते थे। उन्होंने लुकास डलूही के साथ मिलकर युगल का खिताब जीता जो रोलाँ गैराँ की लाल बजरी पर उनका तीसरा खिताब था।
पेस ने बाद में कहा यह मेरा तीसरा फ्रेंच ओपन खिताब है और यह विशेष है क्योंकि वहाँ क्ले कोर्ट है और मैं कोलकाता के घास के मैदान पर टेनिस खेल कर बड़ा हुआ हूँ। फ्रेंच ओपन खिताब जीतने केलिए मैंने कड़ी मेहनत की थी।
इससे पहले पेस ने महेश भूपति के साथ 1999 और 2001 में फ्रेंचओपन खिताब जीता था। भूपति के साथ उनकी जोड़ी यादगार रही और उन्होंने 1999 में चारों ग्रैंड स्लैम के फाइनल में जगह बनायी तथा विम्बलडन में भी खिताब जीता। पेस ने तब मिश्रित युगल का खिताब भी अपने नाम किया था।
पेस यदि इस उम्र में भी दमखम से खेलते हैं तो उनकेलिए प्रेरणा का स्त्रोत कोई और नहीं बल्कि लंबे समय तक टेनिस में बने रहने वाली मार्टिना नवरातिलोवा है, जिनके साथ उन्होंने 2003 में ऑस्ट्रेलियाई ओपन और विम्बलडन के मिश्रित युगल खिताब जीते थे। नवरातिलोवा फ्रेंच ओपन फाइनल के दौरान भी उनका हौसला बढ़ाने के लिए दर्शकदीर्घा में मौजूद थी।
एटीपी रैंकिंग में पाँचवें नंबर के युगल खिलाड़ी पेस की निगाह अब विम्बलडन पर होगी। उन्हें पाँच सेट तक खेलने में मजा आता है और विम्बलडन में युगल मुकाबले पाँच सेट तक चलते हैं। (भाषा)