ओलंपिक में भाग लेना 'नोबेल प्राइस' जीतने से कम नहीं : ईवा येलर

सीमान्त सुवीर
भारत की सवा सौ अरब जनसंख्या के ज्यादातर लोग रियो ओलंपिक में एक भी पदक न जीत पाने की वजह से हताश, निराश और उदास हैं, उन लोगों के लिए जर्मनी की चीफ टेबल टेनिस कोच ईवा येलर के यह शब्द थोड़ी राहत दे सकते हैं कि ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करना किसी 'नोबेल प्राइस' को जीतने से कम नहीं है। भौतिकी में कितने हजार लोग होंगे, जिनमें से एक को हर साल ये प्राइस मिलता है लेकिन ओलंपिक तो चार साल में एक बार होता है। पदक जीतना उतना मायने नहीं रखता, जितना कि ओलंपिक खेलों के लिए पात्रता हासिल करना। 
रियो ओलंपिक को शुरू हुए एक सप्ताह बीत गया है और पदक तालिका में भारत के आगे 0 का अंक मुंह चिढ़ा रहा है। जब जर्मन कोच से पूछा गया कि लोग अकसर आरोप लगाते हैं कि खिलाड़ी फन के लिए ओलंपिक में जाते हैं और पदक नहीं जीत पाते हैं, तब उन्होंने कहा नहीं..नहीं...ऐसा तो बिलकुल नहीं है। हर खिलाड़ी का सपना होता है कि वह ओलंपिक की पायदान चढ़े..इसके लिए वह तपस्या करता है। ओलंपिक में पदक जीतना गौरव हो सकता है लेकिन मैं यह मानती हूं कि ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करना ही बहुत बड़ी कामयाबी है। ठीक उसी तरह जैसे कोई भौतिक विज्ञानी 'नोबेल पुरस्कार' जीत ले...
 
अंतरराष्ट्रीय टेबल टेनिस फेडरेशन की तरफ से 63 बरस की ईवा येलर 'अभय प्रशाल' में आयोजित रीजनल एशियन होप्स में चीफ कोच की हैसियत से इंदौर आई हुई हैं। येलर का जन्म स्लोवाकिया में हुआ था और 10 बरस की उम्र से ही उन्होंने टेबल टेनिस खेलना शुरू कर दिया था। वे पीएचडी करना चाहती थीं और जर्मन भाषा सीखना चाहती थीं। यही कारण है कि वे स्लोवाकिया छोड़कर अक्टूबर 1977 में जर्मनी के हैडलबर्ग शहर में आ गईं और यहीं की होकर रह गईं। आज उनके पास दो देशों की नागरिकता है और वे जर्मन टेबल टेनिस टीम की कोच के पद पर कार्यरत हैं। 
ईवा येलर ने तीन वर्ल्ड टेबल टेनिस में स्लोवाकिया का प्रतिनिधित्व किया और डबल्स में वे टॉप 8 में रहीं। 1976 में जब उनकी उम्र केवल 23 बरस की थी, तब घुटने की गंभीर चोट के कारण उन्हें खेल से संन्यास लेना पड़ा लेकिन उसके बाद उन्होंने कोचिंग का जो सिलसिला प्रारंभ किया, वह अब भी बदस्तूर जारी है। डबल्स में तीन बार के वर्ल्ड चैंपियन रॉसकॉफ और ओलंपिक पदक विजेता ऑक्टरोव ने ईवा से ही कोचिंग प्राप्त की है। 
ईवा के अनुसार, जर्मनी में 8 लाख लोग टेबल टेनिस खेलते हैं। जर्मनी की पुरुष और महिला टीमों की वर्ल्ड लेवल पर बहुत अच्छी पोजीशन है। उनका मानना है कि टेबल टेनिस बहुत ही टफ खेल है। इस खेल में किसी भी खिलाड़ी को प्लेटफॉर्म पर लाने के लिए कम से कम 10 वर्षों का वक्त लगता है। इसके बाद ही उसे इंटरनेशनल लेवल पर लाना चाहिए। जर्मनी में हम बहुत छोटी उम्र से ही प्रतिभाओं का चयन कर लेते हैं और उनके खेल को तराशते हैं। इसके बाद ही उन्हें इंटरनेशनल टूर्नामेंट में उतारते हैं। टेबल टेनिस में खिलाड़ी को लंबी यात्रा करनी होती है, तभी जाकर उसे कामयाबी हासिल होती है। 
 
ईवा येलर चौथी मर्तबा भारत आई हैं। वैसे वे 1975 में कोलकाता में हुई वर्ल्ड टेबल टेनिस चैंपियनशिप में भी भाग ले चुकी हैं। रीजनल एशियन होप्स में भाग ले रहे भारतीय खिलाड़ियों के बारे में उन्होंने कहा कि उनमें काफी टैलेंट है। उनका मूवमेंट काफी शानदार है लेकिन अब यह खिलाड़ियों पर ही निर्भर करता है कि वे किस तरह मेहनत करते हैं और अपने खेल को आगे बढ़ाते हैं। मैं भारतीय खिलाड़ियों में काफी क्षमता देख रही हूं। 
येलर ने बताया कि मेरी एक बेटी है, जिसकी उम्र 30 बरस की है। वह भी खिलाड़ी है और कई खेलों में हिस्सा लेती है। तीन साल पहले ही मेरे पति का निधन हुआ है और अब मैं बेटी की मां भी हूं और पिता भी। 63 बरस की उम्र में मेरी फिटनेस का राज यह है कि जर्मनी के हैडलबर्ग नामक जिस शहर में मैं रहती हूं, वह पहाड़ियों से घिरा हुआ है। मैं पर्वतारोहण करती हूं। टेबल टेनिस के अलावा स्वीमिंग, कयाकिंग और बास्केटबॉल भी मेरी रुचि रही है। मुझे किताबें पढ़ने का भी शौक है। 
 
इंदौर के रिमझिम बारिश भरे मौसम की कायल हुईं जर्मन कोच ने कहा कि 'अभय प्रशाल' में एक्सीलेंट फैसेलिटी है। मुझे लग रहा था कि यहां पर खाने में मुझे दिक्कत आएगी, लेकिन यहां का लजीज खाना भी लाजवाब है। मैं यहां आकर बेहद खुशी के पल महसूस कर रही हूं। जब यहां से वापस अपने देश लौटूंगी तो मुझे यह शहर बहुत याद आएगा। 

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