महान भारतीय फुटबॉलर प्रदीप कुमार बनर्जी कोलकाता मैदान की खुशबू थे

Webdunia
शुक्रवार, 20 मार्च 2020 (19:27 IST)
नई दिल्ली। भारत के महान भारतीय फुटबॉलरों में से एक पीके बनर्जी 60 के दशक में खिलाड़ी के रूप में चमके और फिर 70 के दशक के बेहतरीन कोच 'पीके' या, प्रदीप 'दा' ने जो देश की फुटबॉल के लिए किया, उसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा। 
 
उन्होंने खिलाड़ी के रूप में दो ओलंपिक (मेलबर्न 1956, रोम 1960) और तीन एशियाई खेल (58, 62, 66) में देश का प्रतिनिधित्व किया। एक खिलाड़ी के रूप में 1962 जकार्ता एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक हासिल किया और अपने पहले बड़े टूर्नामेंट में कोच के रूप में 1970 बैंकाक में कांस्य पदक दिलाया। उनकी काबिलियत की कोई बराबरी नहीं कर सकता और आगे भी ऐसा होने की संभावना नहीं है। 
 
पीके सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं थे बल्कि एक ऐसा किरदार थे जिसने बंगालियों को पसंद आने वाली हर चीज को पहचान लिया। अच्छी फुटबॉल, शानदार कहानियां और चिरस्थायी बंधन।
 
उनके खेलने के दिनों की कोई वीडियो रिकार्डिंग नहीं है लेकिन आप जरा कल्पना कीजिए कि एशियाई खेलों के एक चरण में जापान और दक्षिण कोरिया के खिलाफ एक खिलाड़ी गोल दाग रहा है। 
 
उनके प्रिय मित्र और 1962 स्वर्ण पदक विजेता टीम के कप्तान चुन्नी गोस्वामी ने एक साक्षात्कार में कहा था, 'मुझे नहीं लगता कि किसी के शॉट में इतनी ताकत होगी जितनी प्रदीप के शॉट में होती थी। साथ ही मैच के हालात को भांपने की उनकी काबिलियत अदभुत।'
 
मैच परिस्थितियों को पढ़ने की क्षमता के कारण बनर्जी 70 से 90 के दशक में भारत के सबसे महान फुटबॉल कोचों में से एक बन गए थे। संभवत: वह भारत के पहले 'फुटबॉल मैनेजर' थे जब यह पद प्रचलन में नहीं था।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

लीड्स की हार का एकमात्र सकारात्मक पहलू: बल्लेबाजी में बदलाव पटरी पर

ICC के नए टेस्ट नियम: स्टॉप क्लॉक, जानबूझकर रन पर सख्ती और नो बॉल पर नई निगरानी

बर्फ से ढंके रहने वाले इस देश में 3 महीने तक फुटबॉल स्टेडियमों को मिलेगी 24 घंटे सूरज की रोशनी

The 83 Whatsapp Group: पहली विश्वकप जीत के रोचक किस्से अब तक साझा करते हैं पूर्व क्रिकेटर्स

क्या सुनील गावस्कर के कारण दिलीप दोषी को नहीं मिल पाया उचित सम्मान?

अगला लेख