कोच से लेकर फैंस मान रहे हैं थॉमस कप की खिताबी जीत को बैडमिंटन का 83 लम्हा

Webdunia
सोमवार, 16 मई 2022 (15:52 IST)
बैंकाक: भारतीय पुरूष बैडमिंटन टीम के कोच विमल कुमार ने उम्मीद जताई कि एतिहासिक थॉमस कप जीत का इस खेल पर वैसा ही असर हो जैसा 1983 विश्व कप जीत का क्रिकेट पर हुआ था। विश्व चैंपियनशिप के पदक विजेताओं लक्ष्य सेन और किदांबी श्रीकांत के अलावा सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की दुनिया की आठवें नंबर की जोड़ी ने बैंकॉक में खेले गए फाइनल में 14 बार की चैम्पियन इंडोनेशिया को 3-0 से पटखनी देते हुए यादगार जीत दर्ज की।

कुमार इस ऐतिहासिक जीत को बयां नहीं कर पा रहे थे, उन्होंने बैंकाक से कहा, ‘मेरे पास इसे बयां करने के लिए शब्द नहीं हैं। हमें हमेशा उम्मीद थी, लेकिन जिस तरह से खिलाड़ी खेले, उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। यह अद्भुत रहा। हमारा इंडोनेशिया के खिलाफ इतना खराब रिकॉर्ड था और 3-0 से जीतना बेहतरीन था।’

उन्होंने कहा, ‘1983 में जब भारत ने क्रिकेट विश्व कप जीता था, तो उत्साह सातवें आसमान पर था, लेकिन क्रिकेट हमेशा बहुत ही लोकप्रिय खेल था और मैं उम्मीद करता हूं कि बैडमिंटन में अब इस प्रदर्शन से यह खेल भी इतना ही लोकप्रिय हो जाएगा। खेल में हमेशा व्यक्तिगत उपलब्धियां रहीं लेकिन यह टीम प्रदर्शन था और मुझे उम्मीद है कि अब से खेल की लोकप्रियता यहां से बढ़ेगी ही।’

कोच ने इसे भारतीय बैडमिंटन की सबसे बड़ी उपलब्धि करार दिया। उन्होंने कहा, ‘मैं इसे सबसे बड़ी उपलब्धि करार करूंगा। निश्चित रूप से प्रकाश (पादुकोण) और (पुलेला गोपीचंद) गोपी ने ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप जीती, (पीवी) सिंधु जीतीं, सभी महान उपलब्धियां थीं लेकिन बतौर टीम ऐसा प्रदर्शन पहले नहीं आया था। जब आप टीम चैम्पियनशिप जीतते हो, उसे बैडमिंटन देश की जीत कहते हो, इसलिये मैं इसे सर्वश्रेष्ठ करार करूंगा। मैं खुश हूं कि अपने जीवन में मैं इसे देख सका। यह मेरे लिए किसी सपने के सच होने जैसा था।’

गौरतलब है कि 1983 के विश्वकप में भारत फिर एक छोटी टीम आंकी जा रही थी। इससे पहले दो विश्वकप में भारतीय टीम सिर्फ 1 मैच जीत पायी थी। इन दोनों विश्वकप में  श्रीनिवासराघवन वेंकटराघवन कप्तान थे, लेकिन 83 के विश्वकप में कमान कपिल देव के हाथों सौंपी गई।

कपिल ने भारतीय टीम की कमान 1982 में उस समय में संभाली थी, जब क्रिकेट खेलने वाले वेस्‍टइंडिज, इंग्‍लैड जैसे देशों के सामने भारतीय टीम की बिसात बांग्‍लादेश और केन्‍या जैसी टीमों की तरह थी। क्रिकेट प्रेमी तो दूर, कोई भारतीय खिलाड़ी भी उस समय विश्व कप जीतने के बारे में सोच नहीं रहा था। तब कौन जानता था कि कपिल के जांबाज खिलाड़ी इतिहास रचने जा रहे हैं।

जैसे 83 में भारत की नौसिखिया समझी जाने वाली टीम के सामने 75 और 79 की विश्व विजेता वेस्टइंडीज की टीम थी जिसके कप्तान क्लाइव लॉयड थे। इसके अलावा भारत इस सीज़न में सिर्फ चीनी ताइपे के खिलाफ एक मैच हारा था, जबकि 14-बार का चैंपियन इंडोनेशिया एक भी मैच नहीं हारा था और नॉकआउट मुकाबलों में चीन व जापान को हराकर फाइनल में पहुंचा था। इस लिहाज से भी इंडोनेशिया का पलड़ा भारी था।

ऐसा रहा खिताबी जीत का सफर

टीम इंडिया ने ग्रुप सी में रहते हुए शुरूआती 2 मैचों में जर्मनी और कनाडा के सामने 5-0 के स्कोर से एकतरफा जीत हासिल की। तीसरे मैच में चाइनीज ताइपे से 2-3 के स्कोर के चलते हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद क्वार्टर फाइनल्स में मलेशिया को 3-2 से और सेमी फाइनल्स में डेनमार्क को 3-2 से मात देकर बारी आई फाइनल की, जहां भारत का सामना हुआ 14 बार की थॉमस कप विजेता इंडोनेशिया से। जिसमे पहले राउंड में लक्ष्य सेन ने बढ़त दिलाई, दुसरे राउंड को सात्विकसाईराज और चिराग शेट्टी की जोड़ी ने अपने नाम किया और तीसरे राउंड में किदाम्बी श्रीकांत ने एशियाई गोल्ड मेडलिस्ट जोनाथन क्रिस्टी को हराकर पुरे विश्व में भारत का परचम लहरा दिया।

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