एक आध्यात्मिक लक्ष्य तथा विश्वव्यापी सहानुभूति के अभाव में, पाश्चात्य राष्ट्रों की भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए अदम्य पिपासा, उनके बीच ईर्ष्या तथा घृणा में अभिवृद्धि करके, अंत में उनके सर्वनाश का साधन हो सकती है।
स्वामी विवेकानंद मानवता के प्रेमी थे। वे मानव को ही ईश्वर की सर्वोच्च अभिव्यक्ति मानते थे और वही ईश्वर विश्व में सर्वत्र सताए जा रहे थे। इस प्रकार अमेरिका में उनका दोहरा मिशन था। भारतीय जनता के पुनरुत्थान हेतु वे अमेरिकी धन, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी की सहायता लेना चाहते थे और बदले में अमेरिकी भौतिक प्रगति को सार्थक बनाने के लिए उन्हें आत्मा का अनंत ज्ञान देना चाहते थे।
स्वामीजी में कोई ऐसा मिथ्याभिमान न था कि वे अमेरिका से सामाजिक उत्कृष्टता के गुर सीखने में संकुचित होते, फिर उन्होंने अमेरिकावासियों का भी आह्वान किया कि वे भारत के आध्यात्मिक उपहार को स्वीकार करने में अपने जातिगत दर्प को आड़े न आने दें। स्वीकृति तथा परस्पर श्रद्धा की अपनी इस नीति पर आधारित, उन्होंने एक ऐसे स्वस्थ मानव समाज का स्वप्न देखा था, जो मानव की देह एवं आत्मा का चरम कल्याण साधने में समर्थ होगी।
धर्म महासभा के बाद का वर्ष स्वामी जी ने मिसीसीपी से अटलांटिक तक के विस्तृत भूभाग में व्याख्यान देते हुए बिताया। डिट्राएट में वे छह महीने रहे, जहां पहले तो वे मिशीगन के भूतपूर्व गवर्नर की विधवा श्रीमती जॉन बेगले के घर मेहमान रहे और बाद में विश्व मेला आयोग के अध्यक्ष टॉमस डब्ल्यू.पामर-का आतिथ्य स्वीकार किया।
टॉमस पामर अमेरिकी संसद के सदस्य तथा स्पेन में अमेरिका के सचिव रह चुके थे। श्रीमती बेगले के मकान पर स्वामी जी के निवास को 'निरंतर आशीर्वाद' कहकर वर्णन किया गया है। कुमारी ग्रीनस्टिडेल ने उनका पहला व्याख्यान डिट्राएट में ही सुना था। परवर्ती काल में वे भगिनी क्रिस्टीनी के रूप में स्वामी जी के सर्वाधिक निष्ठावान शिष्यों में अन्यतम हुई और उन्होंने भगिनी निवेदिता द्वारा भारतीय नारी के शैक्षणिक उन्नयन हेतु कलकत्ता में प्रारंभ किए हुए कार्य में हाथ बं टाया।