आज मैं चुप रहूंगा, क्योंकि मैं एक शिक्षक हूं...

सुशील कुमार शर्मा
* शिक्षक दिवस 5 सितंबर पर विशेष
 

 
आज शिक्षक दिवस है लेकिन में चुप रहूंगा, क्योंकि मैं शिक्षक हूं। मैं उस संवर्ग की इकाई हूं, जो सत्य का विस्तार करती है, जो अपना खून जलाकर देश के भविष्य को संवारती है। मैं उस चरित्र का हिस्सा हूं जिसके बारे में आचार्य चाणक्य ने कहा था- 'निर्माण और प्रलय उसकी गोद में पलते हैं।'
 
आज मैं चुप रहूंगा, क्योंकि मेरे दायित्व बहुत विस्तृत हैं। समाज को मुझसे अनंत अपेक्षाएं हैं। भारत के विकास का वृक्ष मेरे सींचने से ही पल्लवित होगा। माता-पिता सिर्फ अस्तित्व देते हैं, उस अस्तित्व को चेतनामय एवं ऊर्जावान मैं ही बनाता हूं।
 
आज मैं चुप रहूंगा, क्योंकि मैं विखंडित हूं। मेरे अस्तित्व के इतने टुकड़े कर दिए गए हैं कि उसे समेटना मुश्किल हो रहा है। हर टुकड़ा एक-दूसरे से दूर जा रहा है। इतने विखंडन के बाद भी में ज्ञान का दीपक जलाने को तत्पर हूं।
 
आज मैं चुप रहूंगा, क्योंकि ज्ञान देने के अलावा मुझे बहुत सारे दायित्व सौंपे या थोपे गए हैं, उन्हें पूरा करना है।
 

मुझे रोटी बनानी है।
मुझे चुनाव करवाने हैं।
मुझे लोग गिनने हैं। 
मुझे जानवर गिनने हैं। 
मुझे स्कूल के कमरे-शौचालय बनवाने हैं। 
मुझे माननीयों के सम्मान में पुष्प बरसाने हैं। 
मुझे बच्चों के जाति प्रमाण-पत्र बनवाने हैं। 
मुझे उनके कपड़े सिलवाने हैं।
 
हां, इनसे समय मिलने के बाद मुझे उन्हें पढ़ाना भी है। जिन्न भी इन कामों को सुनकर पनाह मांग ले लेकिन मैं एक शिक्षक हूं, चुप रहूंगा।
 
 

आज आप जो भी कहना चाहते हैं, जरूर कहें। आप कह सकते हैं कि मैं कामचोर हूं। आप कह सकते हैं कि मैं समय पर स्कूल नहीं आता हूं। आप कह सकते हैं कि पढ़ाने से ज्यादा दिलचस्पी मेरी राजनीति में है। 
 
आप कह सकते कि मैं शिक्षकीय गरिमा में नहीं रहता हूं। मेरे कुछ साथियों के लिए आप ये कह सकते हैं, लेकिन मेरे हजारों साथियों के लिए आपको कहना होगा कि वे अपना खून जलाकर भारत के भविष्य को ज्ञान देते हैं। 
 
आप ये भी अवश्य कहें कि अपनी जान की परवाह किए बगैर मैं अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता हूं। आपको कहना होगा कि मेरे ज्ञान के दीपक जलकर सांसद, विधायक, कलेक्टर, एसपी, एसडीएम, तहसीलदार, डॉक्टर, इंजीनियर, व्यापारी, किसान बनते हैं लेकिन मैं चुप रहूंगा, क्योंकि मैं शिक्षक हूं।
 
आज के दिन शायद आप मुझे सम्मानित करना चाहें, मेरा गुणगान करें लेकिन मुझे इसकी न आदत है, न ही जरूरत है। जब भी कोई विद्यार्थी मुझसे कुछ सीखता है, तब मेरा सम्मान हो जाता है। जब वह देशसेवा में अपना योगदान देता है, तब मेरा यशोगान हो जाता है।
 
शिक्षा शायद तंत्र व समाज की प्राथमिकता न रही हो लेकिन वह शिक्षक की पहली प्राथमिकता थी, है एवं रहेगी। साधारण शिक्षक सिर्फ बोलता है, अच्छा शिक्षक समझाता है, सर्वश्रेष्ठ शिक्षक व्यावहारिक ज्ञान देता है लेकिन महान शिक्षक अपने आचरण से प्रेरणा देता है।
 
जिस देश में शिक्षक का सम्मान नहीं होता, वह देश या राज्य मूर्खों या जानवरों का होता है। आज भी ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के चांसलर के सामने ब्रिटेन का राजा खड़ा रहता है। शिक्षक को सम्मान देकर समाज स्वत: सम्मानित हो जाता है, लेकिन मैं आज चुप रहूंगा।
 
आज जो भी कहना है, आपको कहना है। आप जो भी उपदेश, जो भी संदेश, जो भी आदेश देने चाहें, दे सकते हैं। 
 
आपका दिया हुआ मान, सम्मान, गुणगान, यशोगान सब स्वीकार है। 
 
आपका दिया अपमान, तिरस्कार, प्रताड़ना सब अंगीकार है।
 
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