शिक्षक दिवस : बदलते वक्त में शिक्षक भी बदले

प्रीति सोनी
शिक्षक....एक ऐसा शब्द, जो जीवन को दिशा देते हुए सुनिश्चित लक्ष्य तक पहुंचने तक के सफर में सबसे अहम योगदान देता है। किसी भी रूप में शिक्षक का महत्व तो शाश्वत ही है। महत्व नहीं बदल सकता, लेकिन हां, शिक्षकों के स्वरूप में जरूर पिछले सालों में अब तक बदलाव आए हैं। 
 
एक आदर्श शिक्षक की कल्पना करें, तो वह अनुशासन के साथ जीने का पाठ पढ़ाता है, तो उदारता के साथ हमें स्वीकारते हुए सुधारता भी है। किसी कुम्हार की तरह वह हमारे मन, मस्तिष्क, विचार और आत्मा को आकार देता है। इसलिए उतने ही अधिकार के साथ गलतियों पर सजा भी देता है, जो कई बार अति आवश्यक भी होती है। परंतु कुल मिलाकर शिक्षक का संपूर्ण कर्तव्य क्षेत्र ही हमारे सफल, शुभ और सुखमय जीवन का हेतु होता है।
 
पिछले कुछ सालों की बात करें, तो बदलते वक्त के अनुसार शिक्षकों ने भी अपने पढ़ाने, व्यवहार करने के तरीकों में बदलाव किया है। स्कूली शिक्षकों ने उन तरीकों को अपने कार्य का हिस्सा बनाया, जिससे विद्यार्थी ज्यादा फ्रेंडली होते हैं या जिन तरीकों से बच्चे आसानी से किसी बात को समझ पाते हैं। इसके अलावा अति अनुशासन की प्रथा को कम कर आवश्यक और स्वस्थ अनुशासन पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिससे बच्चे अनुशासन के डर से झिझक कर न रह जाएं और शिक्षक विद्यार्थी की मर्यादा को बनाए रखते हुए बेझिझक अपनी जिज्ञासाओं को पूछ सकें। 
 
इसका फायदा पढ़ाई एवं अन्य विधाओं में उनके बेहतर प्रदर्शन के रूप में भी दिखाई देता है। वर्तमान में शिक्षक बच्चों की योग्यता, विशेष योग्यता औा कमियों पर भी नजर रखते हैं, और उनकी कला को निखारने का प्रयास करते हैं, ना कि पाठ पढ़ाने की जिम्मेदारी कर इतिश्री कर लेते हैं। 
 
कहीं कॉलेजों में भी शिक्षकों ने युवा होते विद्यार्थ‍ियों के अनुसार ढलने का प्रयास किया है। अब वे क्लास में अनुशासन के साथ पढ़ाते, तो कैंटीन में विदयार्थ‍ियों के साथ हंसते-बोलते, कॉफी पीते भी नजर आ जाते हैं, जो कि एक संतुलन बनाने का प्रयास है। वे जानते हैं, कि बढ़ती जनरेशन को किस तरह से सांचे में रखते हुए साधा जा सकता है। अब ना तो विद्यार्थी उस कड़े अनुशासन के आदि हैं, ना ही शिक्षक उन परंपरागत लबादों को ओढ़ रखना चाहते हैं, तो विद्यार्थी और शिक्षक के बीच बेहतर संचार में बाधक हो।

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