मा ं के बाद बच्चे की प्रथम पाठशाला शिक्षक ही होते हैं जो उसे एक नए ढा ंचे में ढालकर उसके जीवन के लिए उचित दिशा देते हैं।
शिक्षक कभी अभिभाषक के रूप में, कभी दोस्त, भाई के रूप में या मां या बहन के रूप में होता है। विश्व में अनेक उदाहरण हैं जिसमें गुरु एक बड़े पथ प्रदर्शक के रूप में देखे गए। कई बच्चों के माता-पिता का कर्तव्य गुरु ने निभाया। जिसके कारण वे बच्चे समाज में एक उच्च स्थान, उच्च पद प्राप्त कर पाए हैं।
कई बच्चों की फीस शिक्षकों ने भरी है, यहा ं तक कि घर की छत भी शिक्षक के कारण नसीब हुई है। कई शिक्षक समाज में हुए जिन्होंने अनाथ बच्चों को पालकर उन्हें योग्य बनाया।
परिवार या अभिभावक बच्चे के स्कूल या कॉलेज में एडमिशन के बाद एकदम बेफिक्र हो जाते हैं कि चलो फलां स्कूल, कॉलेज में बच्चा एक अच्छा नागरिक बनकर आएगा। परंतु यह सोच उनकी सचमुच बेमानी हो जाती है। आज का शिक्षक पढ़ाने के अलावा सारे काम करता है (उसमें वे काम शामिल नहीं हैं जो शासन या कॉलेज करवाता है)।
तेजी से बदली देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक परिस्थिति का शिक्षा के क्षेत्र में सीधा असर दिखाई देता है। जिस कारण बहुत से शिक्षक इसे सेवा न मानकर एक व्यवसाय के रूप में लेते हैं।
इसी कारण कोचिंग जैसी प्रथा का विस्तार हुआ है। ऐसा नहीं है कि सभी शिक्षक अतिमहत्वाकांक्षी होते हैं और जोड़तोड़ की राजनीति से वर्चस्व बनाए रखना चाहते हैं। यदि देखा जाए तो ऐसे शिक्षकों की संख्या 20-25 प्रतिशत ही होगी, लेकिन उनके कारण शिक्षा की मानहानि हुई है।
शायद शिक्षक दिवस पर उन्हें अपना आत्मचिंतन करने का अवसर मिले तथा वे यह तय कर सकें कि वे किस तरह की भावी पीढ़ी का निर्माण कर रहे हैं।