अलकायदा के खौफनाक मंसूबे, 2020 में इस्लाम की 'संपूर्ण विजय

राम यादव
गुरुवार, 3 दिसंबर 2015 (13:14 IST)
15 साल पहले, ओसामा बिन लादेन के अल क़ायदा ने इस्लाम को सात चरणों में विश्वविजयी बनाने का बीड़ा उठाया था। इस्लामी ख़लीफ़त 'आईएस' का जन्म अल क़ायदा की ही कोख से हुआ है। जॉर्डन के एक पत्रकार फ़उद हुसैन ने अल क़ायदा की विचारधारा के मुख्य प्रणेता मोहम्मद अल-मकदीसी और कुछ अन्य लोगों के साथ बातचीत के आधार पर एक पुस्तक लिखी थी, जिसे हम हिंदी में ''आतंकवाद का भविष्यः अल-क़ायदा आखिर क्या चाहता है'' कहेंगे। यस्सीन मुशरबाश नाम के एक अरब समीक्षक ने 2005 में इस पुस्तक पर एक समीक्षात्म पुस्तिका लिखी, जिसे समय के साथ भुला दिया गया।

जर्मन पत्रिका 'देयर श्पीगल' ने इन्हीं दिनों इस समीक्षा का सारांश प्रकाशित किया है। 'आईएस'  वास्तव में इस्लाम को विश्वविजयी बनाने की अल कायदा वाली इसी योजना को पूरा करने में लगा है।
योजना का ''जागरण'' नाम का पहला चरण 2000 से 2003 के बीच इस्लामी जगत को यह दिखा कर जगाने के लिए था कि ''हम न्यूयॉर्क में सांप के सिर को एक ज़ोरदार चोट पहुंचायेंगे।'' 11 सिसंबर 2001 के दिन यात्रियों से भरे दो अमेरिकी विमानों का न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दोनों टॉवरों से दिन-दहाड़े टकराना इस चरण की परिणति बना। दूसरे चरण में इस्लामी बिरादरी को यह घुट्टी पिलाई जानी थी कि इस्लाम के विरुद्ध ''पश्चिमी जगत ने षड़यंत्र रच रखा है।''  2007 से 2010 तक चलने वाले ''विद्रोह'' नाम के तीसरे चरण में सीरिया में सरकार गिराने और सत्ता हथियाने की भविष्यवाणी की गई थी। चौथे चरण में मध्यपूर्व की यथासंभव सभी अरब सरकारों को गिरा कर वहां अल क़ायदा का झंडा फ़हराया जाना था।
 
अगले पन्ने पर पढ़िए अल-कायदा की दुनिया फतह करने की योजना के बारे में... 

2020 में इस्लाम की ''संपूर्ण विजय'' : दिसंबर 2010 में 'अरबी वसंत' नाम से कई अरबी देशों में क्रांतियों की जो कड़ी शुरू तो हुई, उस में अल क़ायदा की कोई उल्लेखनीय भूमिका तो नहीं थी, पर इन देशों में पैदा हुई अस्थिरता से उसे लाभ जरूर मिल रहा है। मिस्र, लीबिया और ट्यूनीसिया में उसकी शाक्ति और बढ़ी है। अल क़ायदा की योजना के अनुसार, पांचवें चरण में एक इस्लामी ख़लीफ़त की स्थापना होनी थी।

आज का 'आइएस'  अपने आप को इस्लामी ख़लीफ़त ही तो कहता है। छठें चरण में ग़ैर-इस्लामी जगत के साथ इस्लाम की ''संपूर्ण भिड़ंत'' होने की बात कही गई है। ''एक इस्लामी सेना अल्लाह के बंदों और काफ़िरों के बीच युद्ध'' छेड़ देगी। सातवें चरण के बारे में भविष्यवाणी की गई है कि 2020 में इस्लाम की ''संपूर्ण विजय''  का जयघोष होगा। पत्रकार फ़उद हुसैन ने लिखा है कि इस्लामी आतंकवादी इसी योजना के अनुसार काम कर रहे हैं और यही मान कर चल रहे हैं कि ''डेढ़ अरब मुसलमानों के आगे क़ाफिरों के बचने का कोई मौक़ा नहीं है।''  
  
अब तो मिस्र भी आईएस की पहुंच में आ गया है। इस समय जर्मनी के निवासी, इस्लामशास्त्री और कई पुस्तकों के लेखक हामेद अब्देल समद की मातृभूमि मिस्र ही है। राजधानी काहिरा की एक मस्जिद के इमाम के पुत्र समद अपने आरंभिक दिनों में 'मुस्लिम ब्रदरहुड' के कार्यकर्ता हुआ करते थे।

जर्मन दैनिक 'दी वेल्ट' के साथ एक भेंटवार्त में उन्होंने कहा, ''देखा जाए तो अपनी कथनी और करनी में आईएस ही पैगंबर मुहम्मद की सही संतान है। किसी ने भी पैगंबर मुहम्मद को उतना सही नहीं समझा है जितना सही आईएस ने समझा है। सउदी अरब की धर्मरक्षक पुलिस, इंडोनेशिया के कट्टरपंथियों, नाइजीरिया के बोको हराम, सोमालिया के अल-शहाब और गाज़ा पट्टी के हमास के सांस्कृतिक संदर्भ भले ही भिन्न-भिन्न हों, पर सभी उसी एक पैगंबर और उनके बनाए धर्म की सौगंध खाते हैं।... किसी का सिर कलम करते हुए सभी कुरान को ही साक्षी बनाते हैं।''  

समद का मानना है कि इस्लामी जगत में जब तक यह नहीं मान लिया जाता कि कुरान ''ईश्वरीय वाक्य नहीं, मनुष्य की लिखी पुस्तक है'', और जब तक कुरान से उन आयतों को हटा कर उसका संशोधन नहीं किया जाता, जिनका हवाला देकर आतंकवादी अपने कुकृत्यों का औचित्य सिद्ध करते हैं, तब तक इस्लामी आतंकवाद का अंत नहीं हो सकता। यह काम मुसलमानों को खुद करना होगा। 
 
(यह लेखक के निजी विचार हैं) 
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