अफगानिस्तान की नब्ज

Webdunia
चार सितंबर 2005 को नेशनल ज्योग्राफी पर प्रसारित डॉक्युमेंट्री फिल्म 'नो बॉर्डर' देखी। जितना स्मृतियों में कैद रहा उसे यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। दरअसल यह फिल्म मीर और उसके दादा की असली कहानी थ ी, जिसमें उनकी दिनचर्या और युद्ध के बीच बिताए दिनों का फिल्मांकन था।

अफगानिस्तान में पिछली दो पीढ़ियों का जीवन युद्ध की वजह से दर-बदर हो गया है। असल में कोई भी मुल्क ईमानदारी से इस देश के आम जीवन को खुशहाल करने में शायद ही रुचि लेता हो। खासकर ता‍‍लिबानियों, पाकिस्तानियों और अमेरिकियों को शायद ही इस मुल्क पर दया आती हो। इनके लिए तो यह कुरुक्षेत्र है। युद्ध की वजह से बामियान के लोग बौद्ध गुफाओं में सुरक्षित रहने लगे तो कुछ खेतों और जंगलों में रहने लगे थे। मुल्क के सारे मकान ध्वस्त हो चुके थे। आज भी वहाँ सब कुछ खंडहर है।

9 /11 के बाद सबमें बड़ी त्रासदी झेली है अफगानिस्तान ने जो आज भी लड़ रहा है अपने आप से..अपनों से।

साब! पहले रुसी आए, हमें लगा की शायद जहालत के दिन खत्म हुए, लेकिन उनका मकसद कुछ और ही था। फिर पाकिस्तान व साऊदी अरब ने मिलकर तालिबान का गठन किया और वह अफगानिस्तान में घुस आए। हमें उनसे बहुत आशा थी। हमने उनका जोरदार स्वागत किया। हम चाहते थे कि इस्लामी हुकूमत आए जिससे शांति आएगी। हमने उनका सहयोग किया और उन्होंने अफगानिस्तान जीत लिया।

हमारे मुल्क पर अरबी और पाकिस्तानी मुजाहिदीनों, जिहादियों का कब्जा हो गया। लेकिन जल्द ही हमारी आशा टूट गई। उन्होंने हमसे कहा कि हम तुम्हें मार देंगे। तुम्हारे बच्चों को भी। हमने उनसे पूछा ‍कि क्यों? क्यों मारना चाहते है आप हमें? हम भी तो अल्लाह वाले हैं। हम भी तो कुरान को मानते हैं। हम भी तो रसूल पर ईमान लाए हैं- क्या हम मुसलमान नहीं हैं? कहने लगे कि नहीं तुम शिया हो। तुम पख्तून हो।

और साब हम इन गुफाओं में कई दिनों से भूखे हैं। यह जो माँस देख रहे हैं आप, कसाई इसे फैंक रहा था हमने कहा हमें दे दो। कहने लगा खराब है। फिर भी हमने उससे ले लिया। यह खराब नहीं है। हमने इसे अच्छे से धोया है। आप थोड़ा खाएँ।

यह जो पहाड़ियाँ देख रहे हैं वहाँ और भी कई गुफाएँ हैं। वहीं कई छोटी और बड़ी मूर्तियाँ हैं जिन्हें तालिबानियों ने तोड़ दिया। अब तो बस खंडहर ही रहे हैं। यहाँ पहले कई विदेशी आते थे इन्हें देखने के लिए जिससे हमें पैसे मिलते थे। यहाँ ढेर सारी मूर्तियाँ और कब्रें हैं इसलिए बामियान को कब्रों का शहर भी कहा जाता है।

अब्बा! यह मूर्तियाँ किसने बनाईं। मीर को झिड़कते हुए उसने कहा- मालूम नहीं! यह तो मेरे दादा के जमाने से ही हैं। जाओ उधर खेलो।

हाँ तो साब मैं कह रहा था कि फिर एक दिन हवाई जहाज उड़ता हुआ देखा। लोग कहने लगे कि अमेरिकी आ गए। तालिबानी हवाई जहाज से बहुत डरते थे। वो, वहाँ उस रेत में छिप जाते थे। लेकिन अमेरिकियों का निशाना अचूक होता था। हमें बहुत मजा आता था। हमनें अपनी पगड़ियाँ बदल दी थीं क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि अमेरिकी हमें तालिबानी समझें। जब तालिबानी इधर से उधर भागते थे तो लोग यह तमाशा मजे से देखते थे। हमारे बच्चों ने पहली दफा हवाई जहाज देखे।

साबजी! अब तालिबानी चले गए हैं। मेरा ये पोता स्कूल जाने लगा है। हमें उम्मीद है कि नई सरकार हमें गुफा से निकालकर नए मकान देगी। उम्मीद है कि अब मेरे बेटे को काम मिलेगा। हमारी गरीबी दूर होगी। ये मीर टीचर बनना चाहता है। इधर आ, अब खेलना छोड़कर पढ़ाई करो, जाओ अम्मी बुला रही है।
- प्रस्तुति : शतायु जोशी

Show comments

वर्कआउट करते समय क्यों पीते रहना चाहिए पानी? जानें इसके फायदे

तपती धूप से घर लौटने के बाद नहीं करना चाहिए ये 5 काम, हो सकते हैं बीमार

सिर्फ स्वाद ही नहीं सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है खाने में तड़का, आयुर्वेद में भी जानें इसका महत्व

विश्‍व हास्य दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

समर में दिखना है कूल तो ट्राई करें इस तरह के ब्राइट और ट्रेंडी आउटफिट

Happy Laughter Day: वर्ल्ड लाफ्टर डे पर पढ़ें विद्वानों के 10 अनमोल कथन

संपत्तियों के सर्वे, पुनर्वितरण, कांग्रेस और विवाद

World laughter day 2024: विश्‍व हास्य दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

फ़िरदौस ख़ान को मिला बेस्ट वालंटियर अवॉर्ड

01 मई: महाराष्ट्र एवं गुजरात स्थापना दिवस, जानें इस दिन के बारे में