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UNGA80 : मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को वैश्विक एजेंडे में शीर्ष प्राथमिकता

UN
गुरुवार, 25 सितम्बर 2025 (18:21 IST)
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को इस वर्ष यूएन महासभा की आधिकारिक बैठक में मुख्य विषय बनाया गया है। इस बैठक में विश्व नेताओं से ऐसे सिद्धान्तों पर सहमति की उम्मीद है, जो पीड़ितों की मदद के लिए वैश्विक कार्रवाई को बढ़ावा देंगे। मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा पहले भी उठता रहा है, लेकिन इस बार इसे शीर्ष प्राथमिकता दी जाएगी। बैठक में हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह और श्वसन रोग जैसे ग़ैर संक्रामक रोगों (NCDs) की रोकथाम और नियंत्रण पर भी चर्चा होगी। 
 
ये बीमारियाँ अब भी दुनिया में मौत और विकलांगता की सबसे बड़ी वजह हैं। चूँकि बहुत से लोगों में मानसिक एवं शारीरिक समस्याएँ साथ-साथ होती हैं, इसलिए देखभाल के लिए एकीकृत दृष्टिकोण बेहद ज़रूरी है।
 
चुनौती का स्तर
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) में ग़ैर-संक्रामक रोग और मानसिक स्वास्थ्य की कार्यवाहक निदेशक डॉक्टर देवोरा केस्टेल का कहना है, पहली बार हमें यह बताने का मौक़ा मिल रहा है कि एक अरब से ज़्यादा लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे हैं। अवसाद सबसे आम समस्या है, उससे पीड़ित केवल नौ प्रतिशत लोगों को ही सहायता मिलती है।
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जबकि मनोविकृति (Psychosis) से पीड़ितों में से केवल 40 प्रतिशत को ही मदद मिल पाती है। इससे स्पष्ट है कि देशों को और बेहतर सेवाएँ विकसित करनी होंगी, ताकि देखभाल आसानी से उपलब्ध हो सके। अनेक देशों में यौन हिंसा को, युद्ध के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया है। जिससे बहुत सी महिलाएँ मानसिक समस्याओं से जूझ रही हैं।
 
जहाँ सेवाएँ मौजूद भी हैं, वहाँ अक्सर लागत, दूरी या अन्य स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ाव की कमी के कारण वे पहुँच से बाहर रहती हैं। कलंक भी एक बड़ी बाधा है, जिसकी वजह से मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोग मदद लेने से कतराते हैं। बैठक में अपनाए जाने वाले राजनैतिक घोषणा-पत्र का मक़सद, ज्ञान साझा करने और वित्त पोषण बढ़ाने को प्रोत्साहित करना है। 
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डॉक्टर देवोरा केस्टेल ने कहा, सदस्य देशों ने ऐसे मुद्दों पर ज़ोर देने का फ़ैसला किया है जो सभी ग़ैर संक्रामक रोगों से जुड़े हैं, और कुछ ऐसे भी जो विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित हैं- जैसे कि बच्चों व युवाओं का मानसिक स्वास्थ्य, आत्महत्या रोकथाम और समुदाय स्तर पर सेवाओं का विकास।
 
मानसिक और शारीरिक बीमारियों के बीच स्पष्ट सम्बन्ध
ग़ैर संक्रामक रोगों (NCDs) के बढ़ने के बड़े कारण हैं- तम्बाकू और शराब का सेवन, शारीरिक गतिविधि की कमी, हानिकारक आहार और वायु प्रदूषण। साथ ही, समय पर जाँच, इलाज और देखभाल सेवाओं की कमी भी इन्हें और बढ़ाती है।
 
डॉक्टर देवोरा केस्टेल के अनुसार मानसिक और शारीरिक बीमारियों के जोखिम कारक काफ़ी हद तक एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होनें कहा, इनसे बचाव के लिए नियमित व्यायाम, सन्तुलित आहार और तम्बाकू-शराब का सेवन छोड़ना - दोनों ही तरह की बीमारियों की रोकथाम के लिए प्रभावी हैं। उन्होंने कहा कि नेताओं द्वारा ठोस कार्रवाई करने का उचित समय यही है। हमने पिछले कुछ वर्षों में मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत पर बहुत बातें सुनी हैं। अब ज़रूरत है ठोस प्रतिबद्धता की।
 
नेताओं को समझना होगा कि ऐसे उपाय और तंत्र मौजूद हैं जिनसे मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक सबकी पहुँच सुनिश्चित की जा सकती है- चाहे वह स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देना हो या उपचार व देखभाल में व्यक्ति-केन्द्रितदृष्टिकोण अपनाना, जिसमें उन लोगों की भी स्पष्ट भूमिका हो जिन्हें इसका प्रत्यक्ष अनुभव है। टकरावों और युद्धों से ग्रस्त क्षेत्रों में बहुत से बच्चे भी मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे हैं।
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आगामी संयुक्त राष्ट्र उच्चस्तरीय बैठक मानसिक स्वास्थ्य और ग़ैर संक्रामक रोगों (NCDs) को मज़बूती को वैश्विक एजेंडे में लाने का अवसर है। डॉक्टर केस्टेल ने भी माना कि यह घोषणा पत्र कोई जादुई दस्तावेज़ नहीं होगा, लेकिन यह एक नई राह दिखा सकता है, देशों को एकजुट कर सकता है और साबित कर सकता है कि सुलभ एवं न्यायपूर्ण मानसिक स्वास्थ्य देखभाल, दुनिया के हर कोने में सम्भव है।
 
घोषणा पत्र में क्या बिन्दु प्रस्तावित होंगे
घोषणा पत्र के मसौदे में दी गई कुछ प्राथमिक दिशाएँ इस प्रकार हैं :
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल : सर्वजन के लिए रोकथाम, जाँच और उपचार जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना।
 
आवश्यक दवाएँ और स्वास्थ्य तकनीकें : यह गारंटी देना कि वे सुरक्षित, प्रभावी और उच्च गुणवत्ता वाली हों।
टिकाऊ वित्त पोषण : ख़ासतौर पर निम्न व मध्यम आय वाले देशों के लिए।
 
ग़ैर संक्रामक रोगों (NCDs) व मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में कई समान ख़तरे और इलाज की ज़रूरतें होती हैं। इन्हें स्वीकार करना और इनसे प्रभावित लोगों की आवाज़ को और मज़बूत बनाना ज़रूरी है।
 
अन्तर क्षेत्रीय सहयोग : स्वास्थ्य केवल दवाओं पर नहीं, बल्कि पोषण, पर्यावरण, क़ानून और अर्थव्यवस्था पर भी निर्भर करता है।
 
बाहरी कारणों पर क़ाबू : जैसे कि वायु प्रदूषण, अस्वस्थ भोजन का प्रचार, तम्बाकू सेवन का प्रसार और प्रतिकूल सामाजिक व आर्थिक हालात। वैश्विक जागरूकता बढ़ाना।

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