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ग़ाज़ा : युद्ध विराम के बावजूद हिंसा जारी, महिलाएं अपने परिवारों का अंतिम सहारा

UN
शुक्रवार, 28 नवंबर 2025 (21:00 IST)
महिला कल्याण के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी- UN Women ने आगाह किया है कि ग़ाज़ा में जारी हिंसा और संसाधनों की कमी के बीच महिलाएं ‘अपने थके हुए हाथों और साहस’ की बदौलत, अपने परिवार के सदस्यों को जीवित रखने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं। यूएन वीमैन की मानवीय कार्रवाइयों की प्रमुख सोफ़िया कैलटॉर्प का कहना है कि ग़ाज़ा में महिलाओं ने यह बार-बार दोहराया कि भले ही युद्ध विराम हो गया है, लेकिन युद्ध अब भी ख़त्म नहीं हुआ है।

उन्होंने कहा, हमलों की संख्या में कमी तो आई है, लेकिन हत्याएं अब भी जारी हैं। उन्होंने यह बात, अपनी हालिया ग़ाज़ा पट्टी की यात्रा के बाद कही। संयुक्त राष्ट्र सहायता समन्वयक कार्यालय (OCHA) ने भी हाल ही में आगाह किया कि ग़ाज़ा पट्टी में, अब भी हिंसा की लगातार ख़बरें आ रही हैं, जिनमें भारी तबाही, विस्थापन समेत अनेक लोगों के हताहत होने के मामले सामने आ रहे हैं।
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यूनीसेफ़ के अनुसार, हमास और इसराइल के बीच,10 अक्टूबर को, युद्ध विराम की घोषणा के बावजूद, ग़ाज़ा में हो रहे हमलों में, औसतन हर दिन 2 बच्चों की मौतें हो रही हैं।
 
जीवन जीने की जद्दोजहद
यूएन वीमैन की पदाधिकारी सोफ़िया कैलटॉर्प ने, जिनीवा में कहा कि उन्होंने ग़ाज़ा पट्टी की यात्रा के दौरान, यह पाया कि आज, ग़ाज़ा में एक महिला होने का अर्थ भूख और डर का सामना करना है, सदमे और दुख में जीना है और अपने बच्चों को गोलियों व सर्द रातों से बचाने की कोशिश करना है।
 
उन्होंने कहा कि ये हालात दिखाते हैं कि महिलाएं उन स्थानों पर अपने परिवारों के लिए अन्तिम सहारा बन गई हैं, जहां अब कोई सुरक्षा नहीं बची है। उन्होंने बताया कि ग़ाज़ा में 57 हज़ार से अधिक महिलाएं अब अपना घर चला रही हैं। उनके पास इस अत्यधिक भयावह स्थिति से लड़ने के अलावा, कोई और चारा नहीं बचा है।
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सोफ़िया कैलटॉर्प ने बताया कि ग़ाज़ा में महिलाओं ने उन्हें दिखाया कि वो कैसे पानी में तरबतर तम्बुओं में रहने को विवश हैं, जिनमें उनके बच्चे, ठंड से कांपते हुए रातें बिता रहे हैं।
 
भोजन का भारी अभाव
ग़ाज़ा में युद्ध विराम के ढाई महीने बाद भी भोजन की भारी कमी बनी हुई है। यहां युद्ध से पहले की खाद्य क़ीमतों की तुलना करें तो इसमें चार गुना उछाल आया है। जैसे कि महज़ एक अंडे की क़ीमत दो डॉलर है और बिना किसी आमदनी के रह रही महिलाओं के लिए खाद्य चीज़ों को ख़रीद पाना बेहद मुश्किल है।
 
सोफ़िया कैलटॉर्प ने अपनी यात्रा के दौरान एक ऐसी महिला से भी मुलाक़ात की, जिसे 2023 में शुरू हुए युद्ध के बाद से अब तक 35 बार विस्थापन का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा, क़रीब 12 हज़ार महिलाएं और लड़कियां युद्ध से जुड़ी दीर्घकालिक अपंगताओं के साथ जीवन बिताने को मजबूर हैं।
 
मानवीय सहायता ज़रूरी
युद्ध की इस भयावहता के बीच, ग़ाज़ा की महिलाओं की ज़रूरत है कि युद्धविराम बना रहे और बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मदद मुहैया करवाई जाए। साथ ही, यह भी आवश्यक है कि महिलाओं के लिए मनो-सामाजिक सहायता तक पहुंच बनाई जाए।
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यूएन वीमैन की अधिकारी ने कहा कि ग़ाज़ा की महिलाएं काम करना चाहती हैं, नेतृत्व करना चाहती हैं और अपने हाथों से, ग़ाज़ा को फिर से बसाना चाहती हैं। उन्होंने कहा, किसी भी महिला या लड़की को सिर्फ़ जीवित रहने के लिए इतना संघर्ष करने के लिए मजबूर नहीं होना चाहिए। हमें ग़ाज़ा में अधिक मानवीय सहायता को व्यवस्थित और सुरक्षित तरीके़ से पहुंचाना होगा, और हमें हत्याएं रोकनी होंगी।

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