Water for human life: निसन्देह स्वच्छ जल, मानवीय जीवन के लिए अमृत समान है। पानी केवल जीवन की ज़रूरत नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के स्वास्थ्य, गरिमा और विकास के अधिकार से जुड़ा है। फिर भी, आज भी दुनिया में अरबों लोग ऐसे हैं, जो सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता से वंचित हैं, जो सामाजिक व आर्थिक प्रगति की राह में सबसे बड़ी बाधा है।
सभी सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की सफलता, लक्ष्य 6 की प्राप्ति पर निर्भर करती है जो के लिए जल और स्वच्छता सुनिश्चित किए जाने पर लक्षित है। सुरक्षित जल और स्वच्छता की उपलब्धता के बिना, स्वास्थ्य, शिक्षा, निर्धनता उन्मूलन और समानता जैसे अन्य लक्ष्यों को हासिल करना असम्भव है।
बढ़ती जनसंख्या, तेज़ी से हो रहे नगरीकरण और कृषि, उद्योग व ऊर्जा क्षेत्रों की बढ़ती मांग के कारण, पानी की ज़रूरत लगातार बढ़ रही है। साल 2024 में भी दुनिया की एक बड़ी आबादी, सुरक्षित पानी और स्वच्छता सेवाओं से वंचित रही। यूएन आंकड़ों के अनुसार, अब भी 2 अरब 20 करोड़ लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं हैं, जबकि 3 अरब 40 करोड़ लोगों के पास सुरक्षित स्वच्छता सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा, 1 अरब 70 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें अपने घर पर बुनियादी स्वच्छता सुविधाएँ भी नसीब नहीं हैं। यह स्थिति केवल स्वास्थ्य संकट को ही नहीं बढ़ाती, बल्कि सामाजिक असमानता और आर्थिक पिछड़ेपन को भी बदतर बनाती है।
यूएन रिपोर्ट के अनुसार, पानी की मांग अब जनसंख्या वृद्धि की रफ़्तार से भी तेज़ी से बढ़ रही है। 2015 से वैश्विक जल दबाव (water stress) 18 प्रतिशत पर स्थिर है, और हर 10 में से एक व्यक्ति, अब उच्च या गम्भीर जल दबाव में जी रहा है। कुछ क्षेत्रों में जल दबाव 75 प्रतिशत से भी अधिक पहुंच गया है।
मगर, एक अच्छी ख़बर ये की इस चुनौती का सामना करने के लिए कुछ प्रगति भी हुई है। वर्ष 2015 से 2024 के बीच, सुरक्षित पेयजल तक पहुँच रखने वाली विश्व की आबादी की संख्या, 68 प्रतिशत से बढ़कर 74 प्रतिशत हो गई है।
क्यों ज़रूरी है जल और स्वच्छता? : सुरक्षित पानी, साफ-सफ़ाई और स्वच्छता सेवाओं तक पहुंच हर व्यक्ति का एक मौलिक मानव अधिकार है। यही कारण है कि इसे सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) में सबसे अहम माना गया है। पानी केवल स्वास्थ्य के लिए ही आवश्यक नहीं है, बल्कि यह निर्धनता उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा, शान्ति और मानवाधिकार, पारिस्थितिकी तंत्र व शिक्षा के लिए भी आधारभूत भूमिका निभाता है।
इसके बावजूद, दुनिया के अनेक देश गम्भीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। पानी की कमी, जल प्रदूषण, जल-सम्बन्धित पारिस्थितिक तंत्रों का क्षरण और सीमा-पार जल संसाधनों के प्रबन्धन को लेकर सहयोग की कमी, वैश्विक प्रगति को धीमा कर रही है।
आंकड़े बताते हैं भयावह वास्तविकता : साल 2022 में, दुनिया की लगभग आधी आबादी ने, वर्ष के किसी न किसी हिस्से में गम्भीर जल संकट का सामना किया। वहीं, हर चौथा व्यक्ति अत्यधिक जल दबाव वाली स्थिति में जीवन जी रहा था। जलवायु परिवर्तन ने इस समस्या को और गम्भीर कर दिया है।
पृथ्वी पर मौजूद कुल पानी में से केवल 0.5 प्रतिशत ही, ताज़ा और उपयोग योग्य है। यही वजह है कि जल संसाधनों का सतत प्रबन्धन अत्यन्त आवश्यक है। अनुमान है कि 2016 में जहां वैश्विक शहरी आबादी का 93 करोड़ हिस्सा जल संकट से जूझ रहा था, वहीं 2050 तक यह संख्या बढ़कर 2 अरब 40 करोड़ अरब तक पहुंच सकती है।
साल 2024 तक भी दुनिया में 2 करोड़ 20 करोड़ लोग सुरक्षित पेयजल सेवाओं से, 3 अरब 40 करोड़ लोग सुरक्षित स्वच्छता सेवाओं से और 1 अरब 70 करोड़ लोग बुनियादी स्वच्छता सुविधाओं से वंचित रहे हैं। इसके अलावा, जल प्रदूषण भी, अनेक देशों में मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गम्भीर चुनौती बना हुआ है।
क्या जल और जलवायु परिवर्तन जुड़े हैं? : दुनिया के कई हिस्सों में अब यह अनुमान लगाना मुश्किल हो गया है कि पानी कब और कितनी मात्रा में उपलब्ध होगा। कहीं लम्बे समय तक सूखे की स्थिति, तो कहीं असमान वर्षा के रुझान ने, जल संकट को और गम्भीर बना दिया है।
यह कमी न केवल लोगों के स्वास्थ्य और उत्पादकता पर नकारात्मक असर डाल रही है, बल्कि सतत विकास और वैश्विक जैवविविधता के लिए भी बड़ा ख़तरा बन गई है। सभी के लिए सतत जल और स्वच्छता सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना, आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन से निपटने की एक महत्वपूर्ण रणनीति है। जल संकट से निपटने के लिए केवल सरकारों की पहल ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि नागरिक समाज संगठनों की भी अहम भूमिका है।
सतत समाधान ज़रूरी : सभी के लिए सुरक्षित और किफ़ायती पेयजल सुनिश्चित करने के लिए, बुनियादी ढाँचे और स्वच्छता सुविधाओं में निवेश, जल-सम्बन्धित पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण जैसे कई ज़रूरी कदम उठाना आवश्यक हैं। अगर बेहतर बुनियादी ढाँचे और प्रबन्धन को प्राथमिकता नहीं दी गई, तो हर साल लाखों लोग मलेरिया और डायरिया जैसी पानी से जुड़ी बीमारियों के कारण अपनी जान गँवाते रहेंगे।
वर्तमान गति से, दुनिया कम से कम 2049 तक सतत जल प्रबन्धन हासिल नहीं कर पाएगी। स्कूलों में जल, स्वच्छता और स्वच्छता (WASH) सेवाओं की सार्वभौमिक उपलब्धता 2030 तक सुनिश्चित करने के लिए, वर्तमान प्रगति की दर को दोगुना करना होगा। यदि हम जल संसाधनों का सतत और ज़िम्मेदार प्रबन्धन करें, तो न केवल सभी को स्वच्छ पानी और स्वच्छता उपलब्ध कराना सम्भव होगा, बल्कि भोजन और ऊर्जा के उत्पादन को बेहतर ढंग से सम्भाला जा सकेगा। इसके साथ ही गरिमापूर्ण कामकाज और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।