क्या होता है और कैसे बनता है ‘बजट’, ये रोचक तथ्‍य आप नहीं जानते होंगे, जान लीजिए?

नवीन रांगियाल
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज बजट पेश कर रहीं हैं। इस साल का बजट ऐसे समय में आ रहा है जब देश कोरोना की तीसरी लहर से जूझ रहा है, ऐसे में देश के नागरिकों की इससे कुछ ज्‍यादा ही उम्‍मीदें हैं।

दरअसल, बजट ही है जो आपके जीवन से जुडी हर चीज को प्रभावित करता है। आपके घर के बजट से लेकर, नौकरी, आमदानी, रोजगार, महंगाई सबकुछ बजट से ही तय होता है।

ऐसे ही बजट से जुडे कुछ बेहद रोचक तथ्‍य शायद आप नहीं जानते होंगे। समझते हैं कि आखिर क्या होता है बजट?

क्या होता है बजट?
भारतीय संविधान के आर्टिकल 112 के अनुसार, केंद्रीय बजट देश का सालाना फाइनेंशियल लेखा-जोखा होता है। केंद्रीय बजट किसी खास वर्ष के लिए सरकार की कमाई और खर्च का अनुमानित विवरण होता है। सरकार बजट के जरिए विशेष वित्तीय वर्ष के लिए अपनी अनुमानित कमाई और खर्च का विवरण पेश करती है।

कुल मिलाकर किसी साल के लिए केंद्र सरकार के वित्तीय ब्योरे को केंद्रीय बजट कहा जाता है। सरकार को हर वित्त वर्ष की शुरुआत में बजट पेश करना होता है।

भारत में वित्त वर्ष का पीरियड 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है। देश का केंद्रीय बजट इसी अवधि के लिए पेश किया जाता है।

GDP पर आधारित होता है बजट
देश में किसी साल उत्पादित प्रोडक्ट या सर्विसेज के मौजूदा बाजार मूल्य को GDP कहते हैं। GDP यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट। देश का बजट इसी पर आधारित होता है। बिना GDP के बजट पेश करना मुमकीन नहीं है। क्‍योंकि GDP को जाने बगैर सरकार यह तय नहीं कर सकती कि उसे राजकोषीय घाटा कितना रखना है।

साथ ही GDP के बिना सरकार ये भी नहीं जान पाएगी कि आने वाले साल में सरकार की कितनी कमाई होगी। कमाई का अंदाजा लगाए बिना सरकार के लिए ये तय करना भी मुश्किल होगा कि उसे कौन सी योजना में कितना खर्च करना है।

बजट के लिए राजकोषीय घाटे का भी लक्ष्य तय करना जरूरी

किसी साल के बजट के लिए GDP के अलावा राजकोषीय घाटे का लक्ष्य तय करना भी जरूरी होता है। राजकोषीय घाटा GDP के अनुपात में तय किया जाता है। राजकोषीय घाटे के तय लेवल के अनुसार ही सरकार उस साल कर्ज लेती है। अगर GDP ज्यादा होगी तो सरकार खर्च के लिए मार्केट से ज्यादा लोन ले पाएगी।

क्‍या होता है बजट में खास?
सीधे शब्दों में कहें तो सरकार का आम बजट उसकी कमाई और खर्च का ब्योरा होता है। सरकार के प्रमुख खर्चों में नागरिकों की कल्याण योजनाओं पर खर्च, आयात पर खर्च, डिफेंस पर खर्च और वेतन और कर्ज पर दिया जाने वाला ब्याज हैं।

वहीं सरकार को होने वाली कमाई के हिस्से में टैक्स, सार्वजनिक कंपनियों की कमाई और बॉन्ड जारी करने से होने वाली कमाई शामिल हैं।

केंद्रीय बजट दो हिस्सों में होता है, रेवेन्यू बजट और कैपिटल बजट:

रेवेन्यू बजट: ये बजट सरकार की कमाई और खर्च का लेखा-जोखा होता है। इसमें सरकार को मिलने वाला रेवेन्यू प्राप्ति या कमाई और रेवेन्यू खर्च शामिल होते हैं।

कैपिटल बजट बजट: इसमें में सरकार की कैपिटल रिसीट या पूंजीगत प्राप्तियां और उसकी ओर से किए गए भुगतान शामिल होते हैं।

6 महीने पहले हो जाती है तैयारी
  1. बजट बनाने की तैयारी करीब 6 महीने पहले, यानी आमतौर पर सिंतबर में ही शुरू हो जाती है।
  2. सितंबर में मंत्रालयों, विभागों, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सर्कुलर जारी कर आने वाले वित्तीय वर्ष के लिए उनके खर्चों का अनुमान लगाते हुए उसके लिए जरूरी फंड का डेटा देने को कहा जाता है।
  3. बजट बनाने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद वित्त मंत्री, वित्त सचिव, राजस्व सचिव और व्यय सचिव की हर दिन बैठक होती है।
  4. बजट बनाने वाली टीम को पूरी प्रक्रिया के दौरान प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष के इनपुट लगातार मिलते रहे हैं। बजट टीम में अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल होते हैं।
  5. 2020 से ही देश में पेपरलेस बजट पेश किया जा रहा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 2020 और 2021 में पेपरलेस बजट पेश कर चुकी हैं।

1 अप्रैल से लागू होता है बजट
बजट पेश होने के बाद इसे संसद के दोनों सदनों, यानी लोकसभा और राज्यसभा, से पास कराना जरूरी होता है। दोनों सदनों से पास होने के बाद बजट आगामी वित्त वर्ष के पहले दिन, यानी 1 अप्रैल, से लागू हो जाता है। देश में मौजूदा वित्त वर्ष की अवधि 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होती है।

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