नोटबंदी बनाम उत्तरप्रदेश का वोटर

संदीप श्रीवास्तव
मंगलवार, 31 जनवरी 2017 (17:41 IST)
देश के पांच राज्यों में नई सरकार के गठन के लिए चुनावी शंखनाद हो चुका है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश के 403 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव सात चरणों में संपन्न होगा। मतगणना 11 मार्च 2017 को होगी। राज्य के 14.12 करोड़ मतदाता बताएंगे कि किसने कोरे वादे व झूठे आश्वासन दिए या फिर विकास के कार्यों को गति दी, क्षेत्र में विकास को आगे बढ़ाया। सबका लेखाजोखा मतदाता के पास है। उसका फैसला 11 मार्च को सामने आया है। इसके बाद पता चलेगा कि राजनीतिक दलों के दावों में कितना दम है। 
इस विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी चुनौती भाजपा सामने है, उत्तरप्रदेश की शासन सत्ता से गत 14 वर्षों का वनवास के दौर से गुजरने के बाद इस 17वीं विधानसभा चुनाव में अपना परचम फहराने में सफलता हासिल करने में लोहे के चने चबाने से कम नहीं है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गत 8 नंवबर 2016 को लिए गए नोटबंदी के विशाल फैसले के बाद यह पहला चुनाव है जिस पर नोटबंदी का असर जरूर दिखेगा, क्योंकि मोदी के इस फैसले के बाद पूरा देश हिल गया था और देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुई थी, किंतु इसका सीधा असर आम आदमी पर पड़ा, लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि नोटबंदी से उप्र के कितने प्रतिशत मतदाता प्रभावित हुए है, किंतु इतना तो स्पष्ट है कि नोटबंदी से प्रभावित मतदाताओं का रुख भाजपा के लिए स्पष्ट नहीं होगा हो सकता है। 
 
इनका प्रतिशत बहुत अधिक न हो या फिर समय के बीतते वे भूल भी जाएं, लेकिन कैसे  भाजपा के सभी विपक्षी दलों को नोटबंदी जैसा बड़ा मुद्दा ब्रह्मास्त्र के रूप में अचूक शस्त्र मिल गया जिसे समय-समय पर मतदाताओं के बीच चलने में पीछे नहीं है। यह बात अलग है कि कितने निशाने पर लगते हैं और कितने खुद निशाना बनते हैं। भाजपा पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी गलत नीतियों के चलते प्रदेश में तीसरे स्थान पर चली गई थी व मात्र 47 सीटें ही हासिल कर पाई थीं। 
 
अब इस बार एक तो पार्टी को नोटबंदी के असर का सामना करना पड़ेगा। दूसरे पार्टी द्वारा दिए गए विधानसभा टिकट का क्षेत्रों से लेकर प्रदेश तक विरोध, इन सबका सामना करते हुए पार्टी को अपने जीत की चुनावी बिसात बिछना है, किंतु यह भी याद रहे कि 'ये जो पब्लिक है सब जानती है, जानने के बाद सबको बताती है।

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