पूर्वांचल होगा उत्तरप्रदेश के भाग्य का निर्णायक

उमेश चतुर्वेदी
उत्तरप्रदेश में अब सिर्फ दो दौर का मतदान बाकी रह गया है। अब सिर्फ 102 सीटों का मतदान बाकी है। अब तक हुए मतदान ने भारतीय जनता पार्टी का उत्साह बढ़ा दिया है। इसका असर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के चेहरे पर नजर भी आने लगा है। 
आखिर क्या वजह है कि चुनाव की शुरुआत में जो भारतीय जनता पार्टी पस्त दिख रही थी, वह अपना उत्साह अब छिपा नहीं पा रही है और जिस अखिलेश-राहुल गठबंधन को राष्ट्रीय मीडिया ने जबर्दस्त बढ़त में दिखाया था, वह अब थकता नजर आने लगा है? हालांकि उत्तरप्रदेश की राजनीति में तीसरा कोण बना रहीं मायावती अब भी लड़ रही हैं लेकिन लगता है कि उन्हें भी अपनी गलतियों और उससे होने वाले नुकसान का अंदाज हो गया है इसलिए अब वे पहले जैसी आक्रामक नजर नहीं आ रहीं।
 
पूर्वी उत्तरप्रदेश में अपने अखबार के लिए कवर कर रहे एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार के संवाददाता कहते हैं कि अव्वल तो खुलकर अपनी पहल पर कम ही वोटर अपने समर्थन की बात कर रहे हैं लेकिन ज्यादा कुरेदो तो ज्यादातर का जवाब भारतीय जनता पार्टी के समर्थन में ही होता है। लगता है कि भारतीय जनता पार्टी का पिछड़ा कार्ड और उज्ज्वला जैसी योजनाएं उसके लिए समर्थक आधार जुटाने का बेहतर हथियार बन गई हैं। उज्ज्वला योजना की शुरुआत उत्तरप्रदेश के बलिया जिले से ही 1 मई 2016 को शुरू की गई थी। 
 
केंद्र सरकार ने 1 साल के अंदर कमजोर तबके की महिलाओं को डेढ़ करोड़ गैस कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा था। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के मुताबिक 1 मार्च तक यह आंकड़ा 1 करोड़ 75 लाख तक पहुंच गया है। इसमें भी 40 फीसदी यानी करीब 70 लाख कनेक्शन अन्य पिछड़ा वर्ग, दलित और आदिवासी समुदाय को मिला है। 
 
इसमें उत्तरप्रदेश की महिलाएं कितनी हैं, इसके तो आंकड़े ही सामने नहीं आए हैं, लेकिन यह माना जा रहा है कि अच्छी-खासी संख्या यहां की महिलाओं की भी है। गांवों तक महिलाएं इस योजना के लिए मोदी का समर्थन करती नजर आ रही हैं। अगर यह समर्थन आधार भी जाति और धर्म की दीवार तोड़कर भारतीय जनता पार्टी के साथ जा रहा है तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। 
 
पिछड़े वर्ग में यादवों को छोड़कर ज्यादातर जातियां, कोइरी, कोंहार, कुर्मी, राजभर, नोनिया आदि भारतीय जनता पार्टी के समर्थन में खुलकर आ गई हैं। राजभर जाति के मक्खन प्रसाद का कहना है कि मोदी का हाथ मजबूत करने के लिए वे लोग उनके साथ हैं। मोदी का हाथ मजबूत क्यों करना है? तो उनका जवाब है कि यह आदमी बेईमान नहीं है। अगड़े वर्ग के लोग वैसे ही भारतीय जनता पार्टी के साथ हैं। वैसे भी जिन सीटों पर समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार कमजोर है और बहुजन समाज पार्टी टक्कर दे रही है, यादव वर्ग के मतदाता भी भारतीय जनता पार्टी के साथ जाने को तैयार हैं। 
 
वजह यह है कि पिछले 15 सालों में उत्तरप्रदेश में सत्ता की जो राजनीति विकसित हुई है, उसमें जैसे ही समाजवादी पार्टी की सरकार आती है, यादव बिरादरी के लोगों की दबंगई बढ़ जाती है और जैसे ही बहुजन समाज पार्टी की सरकार आती है तो उसके निशाने पर यही वर्ग होता है। चूंकि भारतीय जनता पार्टी से ऐसा खतरा नहीं है इसलिए यादव वर्ग के मतदाता भी बीएसपी को हराने के लिए भाजपा के साथ रणनीतिक रूप से जाता दिख रहा है।
 
मुस्लिम समर्थन जुटाने को लेकर पूर्वी उत्तरप्रदेश के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी को मायावती ने अपने साथ मिला लिया। उनकी पार्टी कौमी एकता दल का बीएसपी में विलय हो गया। इसका सांकेतिक अर्थ जो भी हो, पूर्वी उत्तरप्रदेश में कम से कम बीएसपी के संदर्भ में उलटा ही असर नजर आ रहा है। मुख्तार परिवार के नाम पर स्थानीय स्तर पर रंगदारी करने वाले मुस्लिम दबंगों की वजह से बीएसपी के खिलाफ गाजीपुर, आजमगढ़ और मऊ जिलों की कई सीटों पर गोलबंदी भी नजर आ रही है। मुख्तार या बीएसपी को हराने के लिए लोग जाति भुलाकर एक हो गए हैं। इसका भी फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है।
 
पिछले 2 विधानसभा चुनावों से पूर्वी उत्तरप्रदेश की 170 सीटों की बड़ी भूमिका रही है। पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी को इनमें से 87 सीटों पर जीत मिली थी। लेकिन पत्रकार और स्वराज अभियान से जुड़े असरार खान कहते हैं कि इस बार समाजवादी गठबंधन को 17 सीटें भी मिलना मुश्किल है। वजह यह है कि जातीय गोलबंदी, बेअसर नोटबंदी, सपा-बसपा शासन के दौरान पूर्वांचल की उपेक्षा जैसे कई मुद्दों के चलते पूर्वांचल का मतदाता तकरीबन एकतरफा हो गया है, हालांकि कई लोग इससे सहमत भी नजर नहीं आते। 
 
वैसे भी असल तस्वीर तो 11 मार्च को ही उभर पाएगी!
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