कहीं कांग्रेस के लिए 'स्पीडब्रेकर' न बन जाए सपा के साथ गठबंधन

संदीप श्रीवास्तव
बुधवार, 15 फ़रवरी 2017 (23:11 IST)
क्या कोई सोचा सकता है कि भारत में आजादी के बाद किसी राजनीतिक पार्टी ने अगर सबसे ज्यादा देश की सत्ता में रही, तो वो केवल कांग्रेस पार्टी है, जिसने सबसे ज्यादा राजनीति की व देश पर राज किया। कांग्रेस ने लगभग छः दशक तक केंद्र व देश के अधिकांश प्रदेशों जिसमें भी उत्तरप्रदेश शामिल है, में भी राज किया, किंतु समय बदला वर्ष 1989 से। उत्तरप्रदेश की राजनीति में जो बदलाव हुआ उसे कांग्रेस ने कभी सोचा नहीं होगा। इसी वर्ष से कांग्रेस के जनाधार में गिरावट शुरू हुई जो कांग्रेस को उप्र की सत्ता से दूर करती गई। 
इसी बीच मंडल की लहर ने प्रदेश में जातिगत राजनीति को जन्म दिया, जिसके बाद क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां भी पैदा हुईं व उनकी सक्रियता भी बढ़ी। इसने राष्ट्रीय पार्टियों की जड़ हिला दी और यही से कांग्रेस के गठबंधन का बीज बोया गया। पहली बार उप्र में बनी जनता दल सरकार को कांग्रेस ने समर्थन क्या दिया उसकी उलटी गिनती शुरू हो गई, जिसका खामियाजा उठाते हुए उसी वर्ष हुए चुनाव में पार्टी को प्रदेश में 94 सीटें मिलीं, जो कि 1991 में शुरू हुई धर्म की राजनीति में घटकर 46 पर पहुंच गईं और वोटों का प्रतिशत भी घटकर मात्र 17.59 प्रतिशत हो गया। इसके बाद वर्ष 1993 में सीटें और घटकर 28 हो गईं व वोट का प्रतिशत 15.11 रह गया। इसके बाद 1996 में बहुजन समाज पार्टी के साथ हुए गठबंधन में कांग्रेस को कोई खास सफलता तो नहीं मिली। सीटें जरूर 28 से बढ़ कर 33 हुईं। बसपा को जरूर फायदा पहुंचा। उसे 67 सीटें मिलीं। 
 
1996 में प्रबल हिन्दू राजनीति का उद्भव हुआ जिसमें भाजपा के कल्याण सिंह ने बसपा व कांग्रेस को तोड़कर नई सरकार का गठन किया। इसमें कांग्रेस पूरी तरह से खोखली हो गई। कांग्रेस के जो मुस्लिम वोटर थे, वह अयोध्या में हुए बाबरी विध्वंस के बाद सपा के समर्थक हो गए एवं दलित वोटर कांग्रेस के समर्थन के बाद वजूद में आई बसपा के समर्थक हो गए जिसका खामियाजा भी कांग्रेस को 2002 में भुगतना पड़ा। इस चुनाव में उसे मात्र 25 सीटें ही मिलीं व वोटों का प्रतिशत 8.99 हो गया, जो कि 2007 के चुनाव में 22 सीटों पर आकर गिरी। वोट प्रतिशत 8.84 हो गया इसके बाद भी कांग्रेस ने गठबंधन की आदत नहीं छोड़ी और 2012 में फिर से राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन कर प्रदेश में चुनाव लड़ा। इसमें उसे 28 सीटें मिलीं व वोटों का प्रतिशत 13.26 हुआ। 
 
बीते 27 वर्षों से लगातार सत्ता पाने के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस पार्टी के सामने मज़बूरी भी है कि उसे अपने वजूद को बनाए रखने के लिए गठबंधन करना, किन्तु इतिहास के जरोखे में देखें तो शायद कांग्रेस के पतन का कारण गठबंधन तो नहीं किंतु फिर 2017 के विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया व 105 सीटें समझौते में मिलीं, लेकिन शायद गठबंधन की गांठ लगता है कि मजबूत नहीं है। इसी कारण से कई सीटों पर समझौते के बाद भी दोनों पार्टियों के प्रत्याशी आमने-सामने हैं। इस चुनाव में कांग्रेस का हाथ सपा के साथ का क्या फायदा पार्टी को होता है, इंतजार सबको है।

Show comments

जरूर पढ़ें

देश जैसा चाहता है, वैसा होकर रहेगा, राजनाथ सिंह की पाकिस्तान को खुली चेतावनी

कांग्रेस ने कई गलतियां कीं... राहुल गांधी ने क्यों कहा ऐसा?

पश्चिम बंगाल में कैसे चुनौती बन रहा है कट्टरपंथ, राज्यपाल ने मुर्शिदाबाद दंगों को लेकर गृह मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट, क्या दिए सुझाव

Pakistan Ranger : गिरफ्त में पाकिस्तानी रेंजर, क्या था मकसद, BSF को मिले नए ऑर्डर

Pahalgam Attack के बाद अब तक 39 लोग गिरफ्तार, असम में कर रहे थे पाकिस्तान का समर्थन

सभी देखें

नवीनतम

देश में कड़ी सुरक्षा के बीच 5,400 से अधिक केंद्रों पर आयोजित हुई NEET-UG

एजाज खान पर महिला ने लगाया बलात्कार का आरोप, दर्ज हुआ मामला

विदेश मंत्री जयशंकर की यूरोप को दो टूक, भारत को दोस्त चाहिए, ज्ञान देने वाले नहीं

ओडिशा में ट्रैक्‍टर पलटने से एक ही परिवार के 3 लोगों की मौत

छत्तीसगढ़ के CM साय बोले- नक्सलवाद का होगा खात्मा, बस्तर बनेगा सबसे विकसित क्षेत्र

अगला लेख