शायरी का शौक़ रोज़-ब-रोज़ बढ़ता जा रहा है। आम तौर से लोग ज़ुबान ठीक से समझते भी नहीं हैं और उसमें शायरी करने लगते हैं। ज़ुबान सीख लेने के बाद भी यह समझना ग़लत है कि हमने शायरी भी सीख ली है। ज़ुबान सीख लेने के बाद शायरी का शौक है तो उसकी बारीकियाँ भी सीखना पड़ती हैं।
यह बात अलग है कि अगर आपका ज़ेहन मौज़ू है और आपका शौक़ काफी बढ़ा हुआ है। दूसरे अच्छे शायरों के सैकड़ों अशआर आपको ज़ुबानी याद हैं तो आप भी सही शे'र कहने लगें। यहाँ भी आपको आपकी गलतियाँ खुद दिखाई नहीं देंगी, जब तक कोई दूसरा आपको न बताए।
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शायरी के फ़न को समझकर शायरी करने वाले शायरों की तादाद बहुत कम है। अब तो ऐसे शायर भी अक्सर मिल जाते हैं जिन्हें उर्दू लिखना-पढ़ना भी नहीं आता। ऐसे माहौल में किताब 'शायरी का फ़न' का शाए होना और वह भी देवनागरी लिपि में, एक बहुत बड़ी ज़रूरत को पूरा करता है।
जिन्हें शायरी का शौक है, जो शायरी करना चाहते हैं या जो शायरी कर रहे हैं, सबके पास इस किताब का होना जरूरी है। किताब पास रख लेने से भी बात नहीं बनेगी। इस किताब को बार-बार पढ़कर समझना होगा तब कहीं जाकर बेहरों के वज्न का कुछ इल्म हो सकेगा।
इस किताब की एक बड़ी ख़ुसूसियत यह है कि शायरी के फ़न को हिन्दी विधि पिंगल के गण, लघु-गुरु के माध्यम से भी बेहरों और उनके औज़ान को समझाया गया है।
शायरी का फ़न जिसे इल्म ए अरूज़ भी कहते हैं, उसकी शुरुआत से लेकर आज तक के हालात से इस किताब में अच्छी बहस की गई है। अशआर की तक़तीय कैसे की जाती है, इल्म ए अरूज़ की बुनियाद क्या है, कुल कितनी बेहरें हैं। इन बेहरों की शक्ल कैसे बदली। आजकल कुल कितनी बेहरें आम हैं। लोगों और शायरों की पसंदीदा बहरें कौन सी हैं वग़ैरा-वग़ैरा।
मुकम्मल जानकारी इस किताब में मोहय्या कराई गई है। हर बेहर के अशआर को लेकर उनकी तक़तीय की गई है और फिर दीगर अशआर देकर महारत भी करवाई गई है। अगर किताब को पढ़ने वाले मुसन्निफ़ को राहनुमा मानकर उसके साथ-साथ आगे बढ़ने की कोशिश करें तो इसमें कोई शक नहीं िक वह ख़ुद शायरी को समझने लगेंगे और अशआर की तक़तीय भी करने लगेंगे।
इस किताब की एक और ख़ूबी यह है कि इसमें जितने भी अशआर शामिल किए गए हैं, वे सब मेयारी और लोगों को पसंद आने वाले अशआर हैं। अशआर के इन्तिख़ाब में जहाँ मीर, मोमिन, गालिब, जिगर को याद रखा गया है, वहीं मौजूदा दौर के मकबूल शोअरा के अशआर भी इसमें शामिल किए गए हैं।
शायरी और उसके फ़न में दिलचस्पी रखने वालों को यह किताब अपने पास ज़रूर रखना चाहिए। सुबहान अंजुम मुबारकबाद के मुस्तहिक़ हैं कि उन्होंने शायरी की दुनिया की एक बहुत बड़ी ज़रूरत को पूरा किया।
किताब : शायरी का फन लेखक : सुबहान अंजुम मूल्य : सिर्फ सौ रुपए