Financial Literacy क्या है, क्यों आम आदमी को फाइनेंशियल लिटरेट होना चाहिए?

नृपेंद्र गुप्ता
गुरुवार, 4 अप्रैल 2024 (06:53 IST)
Financial Literacy : वित्त जगत में रोज नए नए प्रोडक्ट्स बाजार में आ रहे हैं। आप सेविंग का प्लान कर रहे हो या इन्वेस्टमेंट की योजना बना रहे हों। जैसे ही आप इंटरनेट पर सर्च शुरू करते हैं। आपके मोबाइल नंबर पर अनवांटेड कॉल्स की बाढ़ सी आ जाती है। इससे आप भ्रमित हो जाते हैं, आपको समझ ही नहीं आता कि कौन सा प्रोडक्ट आपके लिए बेहतर और कहां निवेश आपके लिए घाटे का सौदा हो सकता है। इस समय लगता है कि हमें वित्तीय मामलों की कितनी कम समझ हैं।
 
हमने इस संबंध में बात की अर्थशास्त्री, लेखक और NSDL के पूर्व कार्यकारी उपाध्यक्ष चंद्रशेखर तिलक से। उन्होंने फाइनेंशियल लिटरेसी अर्थात वित्तीय साक्षरता को सरल भाषा में समझाते हुए कहा कि जब भी हम बाजार में किसी वस्तु को खरीदने के लिए जाते हैं। हमें पता होता है कि किस वजह से कौन सी वस्तु हम ले रहे हैं। उसके लिए हमारे पास कितना बजट है और कितने समय तक हम उसका इस्तेमाल करना चाहते हैं। यही तरीका हम किसी फाइनेंशियल प्रोडक्ट के लिए भी लगाए।

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वित्त जगत से जुड़े किसी भी उत्पाद को खरीदने से पहले उसके बारे में जानकारी लेना जरूरी है। यह वन टाइम प्रोसेस नहीं है। जैसे जैसे दिन बदलते हैं, सिस्टम बदलता है। सिस्टम के साथ साथ प्रोडक्ट का स्वरूप भी बदलता है। बदलते सिस्टम के साथ प्रोडक्ट के बदलते स्वरूप की जानकारी रखना ही फाइनेंशियल लिटरेसी है।
 
उन्होंने कहा कि फाइनेंशियल लिटरेसी हर किसी के लिए बेहद जरूरी है। प्रोडक्ट वही होता है लेकिन उसे देखने के 2 लोगों के नजरिए में फर्क हो सकता है। यह फर्क आयु से, आय से, जरूरत से और यहां तक कि उस प्रोडक्ट से रिटर्न की उम्मीद से भी आ सकता है।
 
तिलक ने अपनी बात को समझाने के लिए खांसी की दवा का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि अगर किसी को खांसी भी हो जाए तो उसके लिए प्रिस्क्राइब्ड मेडिसिन है। उस दवा से भले ही उसे एलर्जी नहीं हो लेकिन किसी और को हो सकती है। 

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उन्होंने कहा कि जैसे जैसे किसी प्रोडक्ट को देखने का नजरिया बदलता है, उद्देश्य बदलते हैं। उसमें नए-नए प्रयोग किए जाते हैं। एक्सपेरिमेंट केवल यूजर ही नहीं करता है। बल्कि प्रोडक्ट लांच करने वाला भी बदलते हालात को देखते हुए प्रोडक्ट अपडेट करता है। ऑलमोस्ट वोलेटाइल या एवरी डे वोलेटाइल चीज को देखने लिए, इसके नए प्रावधान की ओर रेग्युलेटर का खेल देखना पड़ता है, सरकार का खेल देखना पड़ना है। इतने सारे वेरिएबल एक साथ रहेंगे तो इसे समझने के लिए लिटरेसी आवश्यक है।
 
तिलक ने बताया कि पिछले 20 से 25 सालों में भारतीय शेयर बाजार उभरते हुए नजरिए देखा जाता है। मगर उसमें आज भी कई निवेशक ऐसे है जिन्होंने बाजार में निवेश की शुरुआत 70 के दशक में, 80 के दशक में या 90 के दशक में की। उनका देखने का नजरिया अलग है। कोरोना के बाद निवेश करने वाले लोगों के देखने का नजरिया अलग है। इन सब वजहों से भी सभी को फाइनेंशियली लिटरेट होना आवश्यक है।

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