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कॉकपिट में क्यों होता है ब्लैक बॉक्स? कैसे खोलता है ये विमान हादसे के पीछे का राज

WD Feature Desk
शुक्रवार, 13 जून 2025 (12:08 IST)
Ahmedabad plane crash: 12 जून 2025 को अहमदाबाद से लंदन जा रही एयर इंडिया फ्लाइट AI‑171 के क्रैश ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। टेकऑफ के बस कुछ ही सेकंड बाद विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसके बाद से इनफार्मेशन रिपोर्ट में ही ब्लैक बॉक्स रिकवरी को सबसे अहम बताया गया। लेकिन आखिर यह ब्लैक बॉक्स होता क्या है? कॉकपिट में क्यों मौजूद रहता है? और इसका विमान दुर्घटना से क्या नाता है? आइए जानें...
 
ब्लैक बॉक्स क्या होता है?
ब्लैक बॉक्स, जिसे आमतौर पर फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) कहा जाता है, एक ऐसा खास डिवाइस होता है जो विमान की उड़ान से जुड़ी जरूरी जानकारी और पायलटों की बातचीत को रिकॉर्ड करता है। किसी विमान हादसे के बाद यह डिवाइस जांच में बहुत मदद करता है क्योंकि इसकी रिकॉर्डिंग से यह पता चलता है कि आखिर विमान के साथ क्या गलत हुआ।
 
हालांकि इसे "ब्लैक बॉक्स" कहा जाता है, लेकिन असल में इसका रंग नारंगी होता है, जिसे "इंटरनेशनल ऑरेंज" कहा जाता है। इसका चमकीला रंग इसलिए होता है ताकि अगर प्लेन दुर्घटनाग्रस्त हो जाए, तो मलबे में इसे आसानी से ढूंढा जा सके।
 
क्रैश के बाद ब्लैक बॉक्स से क्या डिटेल मिलती है?
जब विमान क्रैश होता है और पायलट या रोड़/रनवे डेटा उपलब्ध नहीं होता, तब ही ब्लैक बॉक्स वह आखिरी गवाही बन जाता है:
 
FDR से पता चलता है कि फ्लाइंग पैरामीटर्स कब गड़बड़ा गए।
 
CVR से स्पष्ट होता है कि पायलट ने क्या कहा, किस चेतावनी पर कैसे प्रतिक्रिया दी और पायलट के एएम्नाडर की भावना क्या थी।
 
कैसे खोलता है ब्लैक बॉक्स विमान हादसे के पीछे का राज
जब कोई प्लेन क्रैश होता है, तो जांच एजेंसियों की सबसे पहली कोशिश होती है ब्लैक बॉक्स को ढूंढ़ना, क्योंकि इसी में उस फ्लाइट से जुड़ी सबसे जरूरी जानकारी छुपी होती है। ब्लैक बॉक्स दो हिस्सों में काम करता है। पहला हिस्सा होता है CVR यानी कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर, जो पायलटों की आपसी बातचीत और कॉकपिट में आने वाली हर आवाज़ को रिकॉर्ड करता है। दूसरा हिस्सा होता है FDR यानी फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर, जो प्लेन की रफ्तार, ऊंचाई, दिशा, इंजन की स्थिति जैसी तकनीकी जानकारी को सेव करता है।
 
ब्लैक बॉक्स इतनी मजबूत चीज होती है कि भले ही विमान जल जाए, गिर जाए या पानी में चला जाए, इसकी जानकारी सुरक्षित रहती है। इसमें एक खास तरह का लोकेटर डिवाइस भी होता है, जो अगर प्लेन पानी में गिर जाए, तो 30 दिन तक सिग्नल भेजता रहता है जिससे जांच टीम इसे खोज सके।
 
जब यह ब्लैक बॉक्स जांच टीम के हाथ लगता है, तो उसमें मौजूद डाटा को स्पेशल सॉफ्टवेयर और कंप्यूटर सिस्टम की मदद से पढ़ा जाता है। इसमें रिकॉर्ड हुई पायलटों की आखिरी बातचीत, किसी अलार्म की आवाज, या फ्लाइट सिस्टम में गड़बड़ी की डिटेल से ये पता लगाया जाता है कि हादसा कैसे और क्यों हुआ।
 
इससे यह साफ होता है कि दुर्घटना के पीछे कोई तकनीकी खराबी थी, मौसम ने असर डाला था, या फिर किसी इंसानी गलती की वजह से हादसा हुआ। इस तरह ब्लैक बॉक्स हर एयरक्रैश के रहस्य को सुलझाने में बेहद जरूरी सबूत बन जाता है। 


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