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गहरा संबंध है वास्तुशास्त्र और खुशबू में

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मानव समाज आदिकाल से ही अपने आसपास के वातावरण को खुशनुमा बनाने के लिए  विभिन्न प्रकार की खुशबुओं का इस्तेमाल करता रहा है। वास्तुशास्त्र में भी इनके इस्तेमाल का  विशेष महत्व बताया गया है।


 
इस मामले में प्रकृति ने भी हमारी खूब मदद की है और हमें विभिन्न प्रकार के सुगंधित  पेड़-पौधे, जड़ी-बूटियां, फल-फूल उपहार में दिए हैं और इनके माध्यम से तरह-तरह की सुगंधियां  प्रदान की हैं। इनमें से कुछ विशिष्ट सुगंधियों का उपयोग विश्व की लगभग सभी संस्कृतियों में  अलग-अलग आयोजनों पर होता रहा है।
 
प्राचीनकाल में राजा-महाराजाओं द्वारा अपने महल, वस्त्रों, विभिन्न कक्षों, मुख्य द्वार आदि पर  अलग-अलग अवसरों के अनुरूप इत्र एवं सुगंधित तेलों के प्रयोग का वर्णन मिलता है। इसमें  कोई संदेह नहीं कि किसी खुशबू विशेष का प्रयोग कर आप अपने आसपास के वातावरण को  सजीव बना सकते हैं।
 
वास्तुशास्त्र के अनुसार गेंदा, पियोनिया या अन्य पीले फूलों को विवाहयोग्य कन्याओं के कक्ष के  सामने सजाने से उनके विवाह के अच्‍छे प्रस्ताव आते हैं। इसी प्रकार अमन, शांति व प्रेम का  प्रतीक गुलाब अपनी मादक सुगंध से मलीनता को दूर करता है, स्वभाव में मिठास घोलता है  एवं अपनेपन का अहसास दिलाता है।
 
घर या परिसर में विभिन्न प्रकार की खुशबुओं का इस्तेमाल कर उसके ऊर्जा स्तर में वृद्धि की  जा सकती है और उस घर में नकारात्मक ऊर्जा की उपस्थिति, मात्रा व हानिकारक प्रभाव को  नियंत्रित व परिवर्तित किया जा सकता है।
 
इसी प्रकार व्यावसायिक भवनों में हानिकारक ऊर्जा के मार्ग को बदलकर उसके स्थान पर नई व  मनोवांछित ऊर्जा को बनाए रखने में भी विभिन्न प्रकार की खुशबुओं का अपना महत्वपूर्ण  स्थान है, जैसे सुबह की पूजा-अर्चना के लिए चंदन-गुलाब आदि की भीनी-भीनी खुशबू वाली धूप  व अगरबत्ती का प्रयोग ज्यादा अच्‍छा रहता है।

घर के अंदर देसी घी के दीये जलाने से भी सात्विक व नैसर्गिक ऊर्जा मिलती है, जो वहां रहने वालों के लिए अनूठी होती है।
 
सुबह की पूजा के समय मोगरे व लैवेंडर की तीखी खुशबू वाली धूप-अगरबत्तियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि मोगरे की तेज खुशबू में मस्त करने वाला प्रभाव होता है इसीलिए दुल्हनों  का गजरा मोगरे के फूलों का बनाया जाता है। 

सुबह की पूजा में जब आप मोगरे या लैवेंडर की खुशबू वाली धूप-अगरबत्तियों का प्रयोग करेंगे तो उसके प्रभाव से आपकी इच्छा करने आराम करने की हो सकती है। इस खुशबू का रोजाना इस्तेमाल आपको आलस्य व निद्रा का अहसास दिला सकता है अत: किसी भवन, खासकर औद्योगिक इकाई में, जहां कई लोग एकसाथ मशीनों आदि पर कार्य करते हों, वहां इन खुशबुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सायंकालीन पूजा में इनका प्रयोग किया जा सकता है। 


 
 
 
इसी प्रकार किसी घर के सदस्य यदि किसी कारणवश तनाव या डिप्रेशन अनुभव करते हों, तो  घर में हर हफ्ते में कम से कम एक बार हवन सामग्री को जलाने व घर से सभी हिस्सों में  धूनी देने से राहत मिलती है। हवन सामग्री के विकल्प के रूप में लोहबान या गुग्गल का  उपयोग किया जा सकता है। घर में यदि कोई जगह ऐसी हो, जहां धूप न पहुंचती हो तो उस  स्‍थान को कपूर की टिकिया रखकर सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण किया जा सकता है।
 
वास्तुशास्त्र के अनुसार आवासीय या व्यावसायिक भवन बनाने के लिए भूखंड का चयन करते  समय इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए कि उस पर बनने वाला भवन पूर्व या  उत्तरमुखी हों, क्योंकि इस स्थिति में भवन व उसमें रहने वाले सभी प्राणियों को पूर्व व उत्तर  से आने वाली सकारात्मक ब्रह्मांडीय ऊर्जा की प्राप्ति होगी तथा उनका जीवन सुखमय रहेगा।
 
आपका घर यदि पूर्व या उत्तरमुखी न हो तो इस दिशा में खाली छोड़ी गई जगह पर तुलसी के  पौधे लगाएं ताकि दोनों सकारात्मक दिशाओं को और अधिक शुद्ध ऊर्जा प्राप्त हो सके। इस  स्थान पर श्यामा (काली) तुलसी का प्रयोग बेहतर रहता है।
 
यह एक वैज्ञानिक तथ्‍य है कि वायु जब औष‍धीय पौधों के बीच से होकर गुजरती है तो उसके  जीवनदायिनी ऊर्जा के प्रभाव में वृद्धि हो जाती है। यह शोधित व सुगंधित वायु जब घर के  आंगन, ड्योढ़ी, लॉबी आदि स्थानों तक पहुंचती है, तो वहां रहने वालों का स्वास्थ्य उत्तम रहता  है। 
 
तुलसी के पौधों में मरकरी या पारा नामक सूक्ष्म तत्व पर्याप्त मात्रा में विद्यमान रहता है, जो  इस सृष्टि का सबसे भारी तत्व है और इसमें नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करने की अद्भुत  क्षमता होती है।
 
पारे के शिवलिंग, पिरामिड, माला, अंगूठी आदि दुष्ट ग्रह-नक्षत्रों के प्राणघातक व नकारात्मक  प्रवाह को समाप्त कर सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करते हैं। यही पारा तुलसी के पौधे का एक  मूलभूत सूक्ष्म तत्व है।
 
मिट्टी की प्राकृतिक खुशबू ने सृष्टि में कुछ उपयोगी गुण प्रदान किए हैं। हमारे आसपास  नैसर्गिक खुशबुओं की कमी नहीं है, जैसे मिट्टी पर बारिश की बूंदों से उत्पन्न भीनी-भीनी खुशबू  हर प्रकार के तनाव को दूर करने का अद्भुत गुण रखती है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी नकसीर  फूटने पर मिट्टी को पानी में भिगोकर सुंघाया जाता है। ओस पड़ने के बाद सुबह के समय खेतों  से उठने वाली प्राकृतिक खुशबू आंखों की रोशनी बढ़ाने व शिथिलता दूर करने में सक्षम है। 
 
विभिन्न प्रकार की खुशबुओं व उनके उपयोग पर शोध कर चुके ब्रिटिश शरीरक्रिया-विज्ञानी डॉ.  एडवर्ड बैच के अनुसार फूलों की खुशबू में वह गुण है, जो एक प्राकृतिक औषधि की तरह  नुकसान पहुंचाए बिना हर प्रकार के रोगों को ठीक करने में सक्षम है। 
 
भारतीय परंपरा में प्राचीनकाल से ही प्रियजनों को पुष्प-गुच्छ भेंट करना, बुके के रूप में  फूलों-पत्तियों को सजाकर देना, किसी अतिविशिष्ट व्यक्ति को सम्मानस्वरूप फूलों का गुच्छा  भेंट करना आदि प्रचलित रहा है। 
 
वास्तुशास्त्र की शब्दावली में केवल उन सुगंधों की ही सिफारिश की जाती है, जो प्रथम प्रभाव में  आपके मन को अच्‍छी लगें। जिस सुगंध से आपको एलर्जी हो या जो आपके मन को न भाती  हो, उससे दूर ही रहें। हो सके तो तीव्र खुशबुओं का प्रयोग करने से बचें और भीनी-भीनी सुगंधों  का प्रयोग करें।
 
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