प्रवेश द्वार के शुभ-अशुभ प्रभाव जानिए...

पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे
घर, घरौंदा, आशियाना, आवास, निवास, निकेतन हम किसी भी नाम से पुकारें लेकिन अहसास के स्तर पर जो ख्याल आता है वह है जहां शांति हो, प्यार हो, सम्मान, हो, खुशियां हो और जहां हम बेफिक्र होकर रह सके। लेकिन कई बार वास्तु दोष की वजह से हमें अपने ही घर में अजीब सी बेचैनी होती है।


 

यूं तो वास्तु दोष के कई प्रकार हैं और घर के हर कोने का विशेष महत्व है लेकिन इनमें भी मुख्य द्वार यानी प्रवेश द्वार का महत्व सबसे ज्यादा होता है।
 
गृह निर्माण में यह बात विशेष महत्व रखती है कि हमारे घर का मुख्य द्वार किस दिशा में है, उसका हमको क्या लाभ मिलेगा। 
 
 

मुख्य द्वार 4 दिशाओं (पूर्व, दक्षिण, पश्चिम व उत्तर) में से किसी भी दिशा में हो, उसको 8 भागों में बांट दिया जाता है।



 
प्लॉट के साइज को ध्यान में रखते हुए मुख्य द्वार का निर्माण होता है, जैसे आपके प्लॉट की चौड़ाई 32 एवं लंबाई 60 फुट है, हम 32 फुट को 8 भागों में बांटते हैं तो 1 भाग 4 फुट का होता है। 
 
हर दिशा के 8 भाग आपके लिए शुभ होंगे या अशुभ? जानिए...
 
 

पूर्व दिशा (ईशान से अग्नि कोण तक)


 
भाग 1 हानि देगा, भाग 2. निर्धनता, भाग 3. धनलाभ, भाग 4. राज सम्मान, भाग 5. अधिक धन, भाग 6. चोर भय, भाग 7. अतिक्रोध एवं 8वां भाग भय पैदा करेगा। 
 
दक्षिण दिशा (अग्नि से नैऋत्य कोण तक)
 
पहला भाग मरण, मृत्यु या मृत्यु के समान कष्ट देगा, भाग 2. बंधन, भाग 3. भय, भाग 4. धनलाभ, भाग 5. धनवृद्धि, भाग 6. निर्भयता, भाग 7. व्याधि भय एवं 8वां भाग निर्बलता देता है। 
 
पश्चिम दिशा (नैऋत्य से वायव्य कोण तक)
 
पहला भाग पुत्र हानि, भाग 2. शत्रु वृद्धि, भाग 3. लक्ष्मी प्राप्ति, भाग 4. धनलाभ, भाग 5. सौभाग्य वृद्धि, भाग 6. दुर्भाग्य, भाग 7. दुःख एवं 8वां भाग शोक देता है। 
 
उत्तर-दिशा (वायव्य से ईशान कोण तक)
 
पहला भाग स्त्री हानि, भाग 2. निर्बलता, भाग 3. हानि, भाग 4. धान्य लाभ, भाग 5. धनागम, भाग 6. संपत्ति वृद्धि, भाग 7. भय एवं 8वां भाग रोग देता है।
 
गृह निर्माण के समय उपरोक्त दिशा का महत्व और आठों भागों से लाभ-हानि का ध्यान रखकर ही मुख्य द्वार का निर्माण करें। 

 
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