फेंगशुई : किस दिशा में किस रंग की मोमबत्ती जलाएं

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फेंगशुई में 'यिन' और 'यांग' के बीच समुचित संतुलन पर बल दिया गया है, क्योंकि ये दोनों न केवल एक-दूसरे पर आश्रित हैं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक भी हैं। यिन को स्त्री तथा यांग को पुरुष का प्रतीक माना जाता है। 
यिन अंधकारमय एवं निष्क्रिय शक्ति है। दोनों के बीच संतुलन होने से ही समरसता की प्राप्ति हो सकती है। इस दृष्टि से फेंगशुई में मोमबत्तियों का महत्व काफी बढ़ जाता है, जो न केवल क्षेत्र विशेष को 'ची' यानी सकारात्मक ऊर्जा से संपन्न बनाते हैं, बल्कि अत्यधिक 'ची' शक्ति के दुष्प्रभाव की काट कभी करते हैं।

मजेदार बात यह है कि मोमबत्ती नहीं बल्कि उसके जलने से उत्पन्न होने वाली लौ 'ची' को आकृष्ट करती है। घर या कमरे में मोम‍बत्तियों को रखे जाने के उपयुक्त स्थान उत्तर-पूर्व, मध्य-भाग, दक्षिण-पश्चिम और दक्षिण हैं। जब तक कमरे में रहें, मोमबत्ती को जलने दें, क्योंकि यह आसपास के वातावरण को सक्रिय और ऊर्जायुक्त बनाती है। 

इसका किसी जातक पर अच्‍छा एवं सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अलग-अलग मोमबत्तियों को रखने के लिए अलग-अलग दिशाओं का प्रावधान है, क्योंकि दिशाएं और रंग भी तत्व संयोजन तथा 'ची' के प्रवाह को प्रभावित करते हैं।

इस क्रम में लाल और हरे रंग की मोमबत्तियों को दक्षिण में, पीली और लाल को दक्षिण-पश्चिम में, हरी और नीली को पूर्व और दक्षिण-पूर्व में, पीली और सफेद को उत्तर में तथा पीली को उत्तर-पश्चिम और पश्चिम में रखा जा सकता है। 

ऐसा माना जाता है कि अंधेरे कमरे में 'शा ची' यानी निष्क्रिय यिन शक्ति का संग्रह होने लगता है, जो अशुभ प्रभाव उत्पन्न करता है। ऐसे कमरों के दक्षिणी कोने में मोमबत्तियां जलाकर 'शा ची' के दुष्प्रभाव को नष्ट किया जा सकता है। 
 
इस काम के लिए अपनी पसंद की खुशबू वाली मोमबत्ती का इस्तेमाल किया जा सकता है।

मोमबत्ती रखने के लिए प्रयोग किए जाने वाले स्टैंड का भी अपना अलग महत्व है।
 
ढलवा लोहे से बना लंबा स्टैंड वृक्ष, मिट्टी और धातुई 'ची' से संबद्ध होता है। हरे रंग की लकड़ी वाले स्टैंड में वृक्ष की ऊर्जा मौजूद होती है जबकि सफेद चीनी मिट्टी के स्टैंड में मिट्टी की ऊर्जा समाहित होती है। घुमावदार डिजाइन वाली लंबी मोमबत्तियों को डायनिंग टेबल पर देखना काफी सुखकर लगता है।
एकाग्रता की दृष्टि से भी मोमबत्तियों को फेंगशुई में महत्वपूर्ण माना गया है। इसके लिए एक मोमबत्ती जलाकर उसकी लौ के सर्वाधिक प्रकाशित हिस्से पर ध्यान अवस्थित करना पड़ता है। 
 
इसकी वजह से मन में उठने वाले तरह-तरह के विचार नष्ट हो जाते हैं और कोई जातक एक ही विचार की गहराइयों में प्रवेश कर जाता है। इससे न सिर्फ मस्तिष्क क्रियाशील बनता है, बल्कि तनाव भी समाप्त हो जाता है।

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