वास्तु के अनुसार घर में सुख-समृद्धि एवं शांति के लिए ईशान कोण करें पूजा स्थल का निर्माण

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जब भी आपका इरादा भवन निर्माण का हो, तो यह शुभ कार्य करने से पहले वास्तु शास्त्र के अनुसार, उसके सभी पहलुओं पर विचार करना उत्तम होता है। जैसे शिलान्यास के लिए मुहूर्त काल, स्थिति, लग्न, कोण आदि। उसके बाद मकान में निर्मित किए जाने वाले कक्षों की माप, पूजा घर, आंगन, रसोई घर, बैडरूम, कॉमन रूम, गुसलखाना, बॉलकनी आदि की स्थिति पर वास्तु के अनुरूप विचार करके ही भवन निर्माण करना चाहिए।
 
वास्तु शास्त्र मुहूर्त, चिंतामणि के अनुसार ईशान में पूजा स्थल, पूर्व व आग्नेय में रसोई घर, पश्चिम में भोजन कक्ष, वायव्य में भण्डार गृह अथवा स्टोर, दक्षिण और नैऋत्य के मध्य शौचालय, नैऋत्य में विश्राम गृह, दक्षिण में शयन-कक्ष, पूर्व एवं ईशान के मध्य स्वागत एवं सार्वजनिक कक्षों का निर्माण करना चाहिए।
 
घर में सुख-समृद्धि व शांति के लिए पूजा स्थल का निर्माण किया जाता है। पूजा स्थल किसी भी व्यक्ति के मन, आत्म व संस्कार का परिमार्जन करते हैं, विचारों को शुद्ध करते हैं तथा आत्मा को दिव्य प्रकाश से ओत-प्रोत करते हैं। कहां, किस दिशा में हो आपका पूजा स्थल? 
 
वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजन, भजन, कीर्तन सदैव ईशान कोण में होना चाहिए। जब आप पूजा करने जा रहे हैं, तो यह सुनिश्चित करें कि आपका मुंह पूर्व दिशा में हो। देवी-देवता की मूर्ति का मुंह पूर्व, पश्चिम व दक्षिण की ओर हो।
 
विद्यार्थियों को हमेशा पूजा गृह में उत्तर दिशा में बैठकर उत्तर की ओर मुंह करके पूजा करनी चाहिए, जबकि घर के दूसरे सदस्यों को पूर्व दिशा में पूर्व की ओर मुंह करके पूजा करनी चाहिए। ज्ञात हो कि विद्यार्थी प्रायः ज्ञान-अर्जन के लिए तथा गृह स्वामी धन-अर्जन की लिप्सा से पूजा करते हैं, उनके लिए उपरोक्त स्थिति निर्धारित की गई है।
 
वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन में सबसे पहले दीवारों की ओर ध्यान देना चाहिए। दीवारें सीधी और एक आकृति वाली होनी चाहिए। कहीं से मोटी और कहीं से पतली दीवार होने पर अशुभ हो सकता है। 
 
ये तो रही आवासीय घरों की बात, अब यह भी जान लेना आवश्यक है कि अगर भवन का निर्माण फैक्ट्री, मिल या उद्योग के लिए किया गया हो, तो उनमें पूजा घर कहां होना चाहिए। वास्तु के हिसाब से वहां भी पूजा घर ईशान कोण में ही स्थापित होना चाहिए।

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