आजकल वास्तुशास्त्र का बोलबाला है। एक सामान्य से घर को वास्तु के इतने जटिल नियमों में बाँध दिया जाता है कि जिन्हें पढ़कर मनुष्य न केवल भ्रमित हो जाता है वरन जिनके घर पूर्णत: वास्तु अनुसार नहीं होते, वे शंकाओं के घेरे में आ जाते हैं। ऐसे मनुष्य या तो अपना घर बदलना चाहते हैं या शंकित मन से घर में निवास करते हैं।
वास्तु विज्ञान का स्पष्ट अर्थ है चारों दिशाओं से मिलने वाली ऊर्जा तरंगों का संतुलन...। यदि ये तरंगें संतुलित रूप से आपको प्राप्त हो रही हैं, तो घर में स्वास्थ्य व शांति बनी रहेगी। अत: ढेरों वर्जनाओं में बँधने के बजाय दिशाओं को संतुलित करें तो लाभ मिल सकता है। निम्न निर्देशों का ध्यान रखें-
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1. किचन दक्षिण-पूर्व में, मास्टर बैडरूम दक्षिण-पश्चिम में, बच्चों का बैडरूम उत्तर-पश्चिम में और शौचालय आदि दक्षिण में हों। 2. पानी की निकासी उत्तर में हो, ईशान (उत्तर-पूर्व) खुला हो, दक्षिण-पश्चिम दिशा में भारी सामान हो। 3. मुख्य दरवाजा अन्य दरवाजों से बड़ा और भारी हो। 4. खिड़कियाँ व दरवाजे सम संख्या में हों व पूर्व या उत्तर में खुलें। 5. तीन दरवाजे एक सीध में न हों, दरवाजे बंद करते या खोलते समय आवाज न हो। 6. पूजा के लिए ईशान कोण हो या भगवान का मुख ईशान में हो। 7. उत्तर या पूर्व में तुलसी का पौधा लगाएँ। 8. पूर्वजों के फोटो पूजाघर में न रखें, दक्षिण की दीवार पर लगाएँ। 9. शाम को घर में सांध्यदीप जलाएँ। आरती करें। 10. इष्टदेव का ध्यान और पूजन अवश्य करें। 11. भोजन के बाद जूठी थाली लेकर अधिक देर तक न बैठें। न ही जूठे बर्तन देर तक सिंक में रखें। 12. अपनी आय का एक हिस्सा इष्टदेव के नाम पर अलग रखें। घर में हमेशा समृद्धि बनी रहेगी।
घर का मुख्य द्वार किस दिशा में हो, यह भी चिंता का विषय रहता है। अधिकतर दक्षिण व पश्चिम द्वार को शुभ नहीं माना जाता मगर यह तय करने के लिए जन्म पत्रिका का अध्ययन जरूरी है। कुछ राशियों के लोगों के लिए ये द्वार बेहद शुभ फल देते हैं विशेषकर जिन लोगों की कुंडली में शनि-मंगल शुभ कारक ग्रह होते हैं। अत: हर दृष्टि से विचार करके वास्तु संबंधी बातें तय की जाएँ तो घर में सर्वत्र सुख-शांति का वास रह सकता है।