तकनीक के नाम पर भाषा को हानि न पहुंचाएं : बालेन्दु दाधीच

Webdunia
वरिष्ठ पत्रकार और सुपरिचित तकनीकविद् बालेन्दु शर्मा दाधीच ने हिन्दी में काम करने के लिए रोमन को अपनाए जाने के लेखक चेतन भगत के सुझाव को अव्यावहारिक और अनावश्यक बताते हुए इसकी आलोचना की है। हिन्दी पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम के संपादक श्री दाधीच ने दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेला के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि चेतन भगत का यह कहना निराधार है कि देवनागरी लिपि में काम करना तकनीकी दृष्टि से मुश्किल है। 

यह लगभग उतना ही आसान है, जितना कि रोमन में। उन्होंने कहा कि श्री भगत को तथाकथित तकनीकी बाधाओं के नाम पर ऐसे बयान नहीं देने चाहिए जो देवनागरी लिपि और हिन्दी भाषा को दूरगामी नुकसान पहुंचा सकते हैं। तकनीकी युक्तियों पर देवनागरी में काम करने से संबंधित कोई समस्या है तो वह है जागरूकता की कमी। तकनीकी क्षेत्र में हिन्दी उपेक्षित या निष्क्रिय भाषा नहीं है और देवनागरी लिपि अपनी ध्वन्यात्मकता के कारण कंप्यूटर विज्ञान के लिए भी अधिक अनुकूल है।
 
 कार्यक्रम का आयोजन केंद्रीय हिन्दी संस्थान ने किया था। इस मौके पर संस्थान के उपाध्यक्ष और प्रख्यात लेखक प्रो. कमल किशोर गोयनका, विख्यात कवि अशोक चक्रधर और संस्थान की क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गीता शर्मा मौजूद थे। अध्यक्षता प्रसिद्ध तकनीकविद् और युनिकोड कंसोर्शियम में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके प्रो. ओम विकास ने की।
 
बालेन्दु दाधीच ने बीज वक्तव्य दिया। बालेन्दु हिन्दी के प्रति तकनीकी योगदान के लिए माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी दिग्गज तकनीकी कंपनियों द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं। बालेन्दु कई हिन्दी सॉफ्टवेयरों तथा वैब सेवाओं के विकासकर्ता और तकनीक पर आधारित पुस्तकों के लेखक हैं। 
 
उन्होंने चेतन भगत की इस टिप्पणी से सहमति जताई कि एसएमएस और व्हाट्सऐप आदि पर हिन्दी शब्दों को लिखने के लिए रोमन का प्रचुरता से प्रयोग हो रहा है, लेकिन कहा कि इसके कारण और प्रभाव वैसे नहीं हैं जैसे श्री भगत सोचते हैं। एसएमएस संदेश और व्हाट्सऐप में किसी लिपि के प्रयोग के मायने बहुत सीमित हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि यह प्रवृत्ति सर्वव्यापी बनकर सामान्य जनजीवन में, जहां बहुत बड़े पैमाने पर देवनागरी का प्रयोग होता है, भी हिन्दी में काम करने के तौर-तरीके बदल सकती है। उन्होंने कहा कि शिक्षण, साहित्य और मीडिया जैसे क्षेत्रों में हिन्दी को रोमन लिपि में लिखने और पढ़ने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आखिर क्या कारण है कि श्री भगत के हिन्दी उपन्यास भी देवनागरी लिपि में ही छपते हैं?
 
श्री दाधीच ने अपनी प्रस्तुति में चेतन भगत के तर्कों का बिंदुवार खंडन करते हुए तकनीकी माध्यमों पर हिन्दी और देवनागरी के अनेक अनुप्रयोगों का प्रदर्शन किया। चेतन भगत ने टिप्पणी की है कि हिन्दी की शुद्धतावादी छवि बरकरार रखने के हिमायती लोग आधुनिक तकनीकों और रुझानों से अनभिज्ञ हैं। 
 
श्री दाधीच ने कटाक्ष किया कि वास्तव में अनभिज्ञता कहां है, इस पर विचार करने की श्री भगत जैसे लोगों को भी जरूरत है। इस समय दुनिया में स्थानीयकरण (लोकलाइजेशन) का दौर चल रहा है और गूगल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट और ऐप्पल सहित दुनिया की दिग्गज तकनीकी कंपनियों का ज़ोर स्थानीय भाषाओं को अपनाने पर है। इस संदर्भ में उन्होंने गूगल के ताज़ातरीन 'भारतीय भाषा इंटरनेट गठजोड़' और फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट का उदाहरण दिया, जिनका खास फोकस हिन्दी और दूसरी भारतीय भाषाएं हैं। 
 
श्री दाधीच ने चेतन भगत की इस टिप्पणी का भी जिक्र किया कि हिन्दीवादी 'भाषा और लिपि के भेद को समझने में असमर्थ हैं' और वे लिपि को छोड़ने का अर्थ हिन्दी भाषा को छोड़ने से लगा रहे हैं। बालेन्दु दाधीच ने कहा कि कंप्यूटर और दूसरी तकनीकी युक्तियों के लिए किसी भाषा के साथ संपर्क का प्रधान माध्यम लिपि ही है, क्योंकि ध्वनि और दूसरे इनपुट माध्यमों की भूमिका बेहद सीमित है। वैकल्पिक इनपुट माध्यमों को भी अंततः उपयोक्ता के साथ संवाद के लिए अधिकांशतः लिपि की शरण में जाना होता है। कंप्यूटर और स्मार्टफोन के लिए प्रधानतः लिपि ही भाषा की प्रतीक है। ये युक्तियां किसी भी लिपि को आसानी से अपना सकती हैं क्योंकि बुनियादी रूप से कंप्यूटर के भीतर होने वाली गणनाएं, भंडारण, संकेतों का आदान प्रदान आदि डिजिट्स के जरिए होती हैं, रोमन या किसी भी अन्य लिपि के माध्यम से नहीं। सभी लिपियों के साथ इंटरऐक्टिविटी के लिए एनकोडिंग प्रणालियों जैसे माध्यमों की जरूरत पड़ती है जो अंग्रेजी के साथ-साथ किसी भी अन्य लिपि के लिए बनाई जा सकती हैं और युनिकोड के आने के बाद आधुनिक तकनीकी युक्तियों पर लगभग सभी लिपियों के लिए समर्थन पहले ही उपलब्ध है। 
 
श्री दाधीच ने कहा कि अगर उपयोक्ता स्मार्टफोन और कंप्यूटर पर रोमन लिपि का प्रयोग कर रहे हैं तो इसका अर्थ रोमन की मजबूती या प्रयोग में सहजता नहीं है। इसकी वजह यह है कि भारत में कंप्यूटर और स्मार्टफोनों के कीबोर्ड पर देवनागरी के चिह्न अंकित नहीं हैं। दूसरे, तकनीकी युक्तियों में पहले से भारतीय भाषाओं के लिए समर्थन मौजूद तथा सक्रिय होने की बाध्यता नहीं है। तीसरे, जागरूकता के अभाव में लोग देवनागरी में टाइप करने के लिए भारतीय भाषाओं के लिए निश्चित मानक और वैज्ञानिक कीबोर्ड प्रणाली (इनस्क्रिप्ट) की जगह पर रोमन के माध्यम से हिन्दी में टाइप करने की वैकल्पिक प्रणाली (ट्रांसलिटरेशन) का प्रयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह अनेक लोग इसे हिन्दी की कमजोरी के रूप में पेश कर रहे हैं उसे देखते हुए हिन्दी भाषियों की आंखें खुल जानी चाहिए और उन्हें थोड़ा समय निकाल कर हिन्दी में मानक ढंग से टाइप करना सीखना चाहिए। उन्होंने कहा कि अपनी भाषा में काम करने के लिए किसी दूसरी भाषा या लिपि का सहारा लेना पड़े, वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होती है। जब तक कि किसी वजह से ऐसा करना अनिवार्य न हो, हमें हिन्दी भाषा में हिन्दी के ही तरीके से काम करना चाहिए। इनस्क्रिप्ट भारतीय भाषाओं में टैक्स्ट इनपुट करने का आधिकारिक मानक है, जिसे भारत सरकार और भारतीय मानक ब्यूरो के साथ-साथ युनिकोड कंसोर्शियम और सभी आईटी कंपनियों का भी समर्थन हासिल है। इसे भारतीय भाषाओं की विशेषताओं और ध्वन्यात्मकता को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है इसलिए एक बार प्रवीणता हासिल कर लेने के बाद यह बेहद तेजी और परिशुद्धता के साथ हिन्दी टैक्स्ट इनपुट संभव बनाता है। 
 
श्री दाधीच ने कहा कि चेतन भगत ने कुछ भाषाओं द्वारा रोमन को अपनाए जाने की बात कही है, लेकिन यह देवनागरी पर लागू नहीं होता जिसे सर्वाधिक विज्ञानसम्मत और सशक्त लिपि के रूप में दुनिया भर में सराहा गया है। देवनागरी सिर्फ भारतीय भाषाओं ही नहीं बल्कि विश्व की अधिकांश भाषाओं को काफी हद तक शुद्धता के साथ तथा स्पैलिंग की जटिलताओं के बिना अंकित करने में सक्षम है। एशियाई भाषाओं के लिए तो वह बेहद अनुकूल है। उन्होंने कहा कि इसका अर्थ यह नहीं है कि हिन्दी और देवनागरी में कोई कमी ही नहीं है, लेकिन ये कमियां ऐसी कतई नहीं हैं जिनके नाम पर हिन्दी को उसकी मूलभूत लिपि से ही वंचित कर दिया जाए। उन्होंने तकनीकी जरियों से हिन्दी में आए नए शब्दों, भाषा पर तकनीक के प्रभाव, उसके सामने उपजी चुनौतियों और नए अवसरों की भी उदाहरण सहित व्याख्या की और भाषाई तकनीक के कई दिलचस्प और प्रभावशाली अनुप्रयोगों का प्रदर्शन किया।
 
कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. ओम विकास ने कहा कि जो कुछ अंग्रेजी में किया जा सकता है, वही हिन्दी में भी संभव है। उन्होंने कहा कि हिन्दी में तकनीकी शिक्षण और जागरूकता के प्रसार पर विशेष रूप से ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इसके बिना हिन्दी और देवनागरी का उस अंदाज में विकास और प्रसार नहीं हो सकता, जिसकी वह स्वाभाविक रूप से हकदार है। उन्होंने कहा कि तकनीकी माध्यमों पर हिन्दी टेक्स्ट इनपुट के लिए इनस्क्रिप्ट मानक का प्रयोग करना ज़रूरी है। केंद्र सरकार ने इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं लेकिन इससे पहले कि देर हो जाए, सरकारी विभागों, शिक्षण संस्थानों, निजी संस्थानों और आम तकनीकी उपयोक्ताओं को भी इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

चलती गाड़ी में क्यों आती है नींद? जानें इसके पीछे क्या है वैज्ञानिक कारण

सर्दियों में नाखूनों के रूखेपन से बचें, अपनाएं ये 6 आसान DIY टिप्स

क्या IVF ट्रीटमेंट में नॉर्मल डिलीवरी है संभव या C - सेक्शन ही है विकल्प

कमर पर पेटीकोट के निशान से शुरू होकर कैंसर तक पहुंच सकती है यह समस्या, जानें कारण और बचाव का आसान तरीका

3 से 4 महीने के बच्चे में ये विकास हैं ज़रूरी, इनकी कमी से हो सकती हैं समस्याएं

सभी देखें

नवीनतम

नैचुरल ब्यूटी हैक्स : बंद स्किन पोर्स को खोलने के ये आसान घरेलू नुस्खे जरूर ट्राई करें

Winter Skincare : रूखे और फटते हाथों के लिए घर पर अभी ट्राई करें ये घरेलू नुस्खा

Kaal Bhairav Jayanti 2024: काल भैरव जयंती पर लगाएं इन चीजों का भोग, अभी नोट करें

चाहे आपका चेहरा हो या बाल, यह ट्रीटमेंट करता है घर पर ही आपके बोटोक्स का काम

डायबिटीज के लिए फायदेमंद सर्दियों की 5 हरी सब्जियां ब्लड शुगर को तेजी से कम करने में मददगार