जनक पलटा मगिलिगन, सोलर ऊर्जा से रोशन कर रही हैं कई जिंदगियां

स्मृति आदित्य
जनक पलटा मगिलिगन : एक रोशनी जो धरती पर सूर्य का प्रतिनिधित्व कर रही है....
इंदौर शहर की जानी-मानी महिला शक्ति स्तंभ-समाज सेविका श्रीमती जनक पलटा मगिलिगन, जितनी वे स्वयं सरल, सहज और सौम्य हैं उनका परिचय देना उतना ही कठिन है।
 
करिश्माई व्यक्तित्व की धनी जनक दीदी को आप एक रेखा में खड़े होकर परिभाषित कर ही नहीं सकते। उनके बेमिसाल व्यक्तित्व में छुपे विविध पक्षों पर कुछ लिखने के लिए हर अयन में जाकर देर तक निहारना होगा। प्रकृति ने जैसे उन पर अपना हर रहस्य उजागर करने की ठान रखी है।
 
अपने दैनिक जीवन में वे हर बात, हर काम को प्राकृतिक अंदाज में संपन्न करती है। इंदौर के पास ग्राम सनावदिया की सुरम्य पहाड़ी के बीच, आसपास फैले खेतों में जैसे ही उनके निवास 'गिरी-दर्शन' में आप प्रवेश करते हैं चारों तरफ से उठती औषधीय मसालों, सब्जियों और सुकुमार फूलों की नशीली सुगंध मदमस्त कर देती है।
 
सूर्य और सौर ऊर्जा से उनका रिश्ता....
 
प्रकृति के प्रथम प्रतीक सूर्य से उनका करीबी रिश्ता है। सौर ऊर्जा से उनके घर की रसोई चलती है। उनके घर में प्लास्टिक प्रतिबंधित है। बाजार से कोई सामान उनके यहां नहीं आता...सूर्य की ऊर्जा और प्रकृति के सहारे चलती उनकी स्वस्थ जीवनशैली ऐसी है जो कई अरबपतियों को भी नसीब नहीं होती...  
 
कम से कम संसाधनों से निर्मित आकर्षक सौर ऊर्जा उपकरण उनके स्वर्गीय पति जिम्मी मगिलिगन ने अपने हाथों से बनाए हैं। वे उनका नाम इतने प्यार से लेती है जैसे जिम्मी यहीं कहीं आसपास हैं और सौर ऊर्जा से संचालित उपकरणों को समझाने में उनकी मदद करेंगे लेकिन एक दुखद हादसे का शिकार होकर जिम्मी जनक दीदी को छोड़कर चले गए।
 
लेकिन जनक दीदी ने अपने आप से उन्हें कभी दूर नहीं होने दिया। उनकी हर याद, हर निशानी, हर सपने को आत्मसात कर वे समाज सेवा में लगी हैं।
 
उम्र उनकी बढ़ रही हैं पर दिल एकदम बच्चों की तरह है। अपने हर सृजन पर वे चहक उठती हैं, अपने हर निर्माण पर वे खिल जाती हैं। यही पहचान है जनक मगिलिगन पलटा की। गांव से लेकर शहर तक वे जनक दीदी के नाम से मशहूर हैं।
 
सितार में विषारद, सकारात्मक विचारों से लबरेज, मुस्कान की रंगीन बूंद होठों पर सजाए अपने निवास 'गिरी-दर्शन' में वे आने वाले हर अतिथि का स्वागत करती है।
 
15 साल की उम्र में दीदी की ओपन हार्ट सर्जरी हुई। अपनी अदम्य जिजीविषा से वे इस दर्द से उबर कर सामने आई। उन्होंने तब ही ठान लिया था कि यह जो वक्त मिला है ईश्वर ने उन्हें बोनस में दिया है इसलिए अपने हर काम को वह ईश्वर को समर्पित करती चली गई। ईश्वर ने कदम-दर-कदम उनकी परीक्षा लेना तब भी नहीं छोड़ा। असाध्य रोग कैंसर से लड़कर वे कैंसर विजेता बनी। जिस सड़क दुर्घटना में उनके पति जिम्मी चले गए जनक दीदी भी उनके साथ थीं। वे सुरक्षित रहीं और जिम्मी चले गए।
 
वे कहती है ' अगर मैं इतने भयावह हादसों से निकल कर भी जिंदा हूं तो अवश्य ही भगवान की कोई खास मंशा है मुझसे कुछ खास करवाने की। अब तो यही चाहती हूं कि जो भी हुनर, कला और कौशल मेरे पास है वह सब अपनी आने वाली ओजस्वी युवा पीढ़ी को हस्तांतरित कर दूं।
 
चाहे वह प्रकृति से जुटाए रंग हो, पेपर के बने कंडे हो या सोलर एनर्जी से बनी ढेर सामग्री। वह अपनी हर दिव्य रचनात्मकता को बांट देना चाहती हैं और बांट रही हैं।
 
हर दिन, हर त्योहार पर जनक दीदी इंदौर शहर में चर्चा में रहती हैं। होली पर उनके द्वारा बनाए खूबसूरत प्राकृतिक रंग उन्हें प्रकृति प्रेमी जनता का प्रिय बना देते हैं।। वे अपनी ही बगिया से चुनचुन कर कोमल संसाधन( सब्जी, फूल और फल) जुटाती हैं और उबाल कर-सुखाकर बनाती हैं होली के शोख रंग।
 
उनके आशियाने में कहीं संतरा के छिलकों को पीसे जाने की सौंधी महक उठती है, तो कहीं उनकी सहयोगी नंदा के हाथ सुंदर गुलाबी रंगों से सने मिलते हैं पोई और चुकंदर के रस से।
 
वे कहती हैं बरसों से सबको पता है पोई का रंग, टमाटर का रंग और चुकंदर का रंग। हम बस उसका अमलीकरण कर रहे हैं। दूर-दूर से विद्यार्थी और संस्था संचालक आते हैं इन विलक्षण और सुंदर रंगों को बनाना सीखने के लिए। वे खुद खुशी के रंग में सराबोर हो जाती हैं, जब उनके द्वार पर उनसे मिलने के लिए कोई जिज्ञासु की मोहक आहट आती है। वे तुरंत ही उन्हें बताने लगती है अपने इन रंगों के लाभ और लिए चलती हैं अपने घरौंदे में सजे रचनात्मकता के कई-कई बेमिसाल रंग दिखाने के लिए।
 
आप क्षण-प्रति-क्षण मुग्ध होते चले जाते हैं उनकी मीठी वाणी और सकारात्मक विचारों से। वे सचमुच अपने सुंदर रंगों से पहले मस्तिष्क की सौम्य और सकारात्मक तरंगों से हमारे दिल में एक खास जगह बना लेती हैं।
 
चाहे पर्यावरण सप्ताह हो या महिला दिवस, चाहे दिवाली हो या अन्य कोई त्योहार... अगर वह जनक दीदी के प्रकृति की गोद में बसे खूबसूरत घर में मन रहा है तो निश्चित रूप से अलग हटकर होगा... कचराविहीन होगा और प्रकृति के करीब होगा।
 
अनूठा व्यक्तित्व
1948 में पंजाब की माटी में पैदा हुईं जनक दीदी के व्यक्तित्व में संघर्ष कूट-कूटकर भरा है।
 
जीवन में कई बार विषम परिस्थितियां भी आईं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और समाज के पिछड़े तबके खासकर महिलाओं को आगे लाने के लिए सतत कार्य करती रहीं। सैकड़ों महिलाओं को उन्होंने निरक्षरता से मुक्ति दिलाकर आजादी के नए मायने दिए।  इस उम्र में भी वे इंदौर के समीप ग्राम सनावदिया में पूरी ऊर्जा के साथ समाजसेवा के कामों में सतत संलग्न हैं।
 
वहां वे युवाओं और महिलाओं को विभिन्न रोजगारमूलक प्रशिक्षण देती हैं। दीदी बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह के वचनों को अपने जीवन का ध्येय वाक्य मानती हैं- 'हृदय आत्मा संग तू, कर संघर्ष महान, कर्म ही तेरे देंगे तुझे, एक अलग पहचान।' ...और वाकई उन्होंने अपने कर्मों से इन पंक्तियों को सार्थक भी कर दिया।
 
कर्म ही जीवन है
डॉ. पलटा ने वर्ष 1985 में ग्रामीण एवं औद्योगिक विकास अनुसंधान केन्द्र, चंडीगढ़ में शोध-फैलो पद से त्यागपत्र देकर इंदौर में बरली ग्रामीण महिला विकास संस्थान स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहां 26 वर्ष की सेवा के दौरान 6000 से ज्यादा आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं को प्रेरित करके उन्हें सबल बनाया है, जिनमें से अधिकांश मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और भारत के अन्य राज्यों के 500 गांवों से सर्वाधिक निरक्षर तथा सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े परिवेश से आती हैं।
 
इतना ही नहीं जनक दीदी ने नारू (गिनी वर्म) से प्रभावित झाबुआ जिले के 302 गांवों से नारू के सफल उन्मूलन में अपना योगदान दिया तथा वर्ष 1987-88 में उन गांवों में 302 दिनों तक रहकर स्थानीय लोगों को इस रोग से मुक्त होने का प्रशिक्षण भी दिया। इसी के परिणामस्वरूप 1992 में रिओ डि जेनेरियो में पृथ्वी सम्मेलन के दौरान बरली संस्थान को 'ग्लोबल 500 रॉल ऑफ ऑनर' से सम्मानित किया गया।
 
सम्मान एवं पुरस्कार : वर्ष 2001 में आपको उत्कृष्ट महिला सामाजिक कार्यकर्ता पुरस्कार, राष्ट्रीय अम्बेडकर साहित्य सम्मान और ग्रामीण एवं जनजातीय महिला सशक्तिकरण पुरस्कार, वर्ष 2005 में महिला समाज सेवी सम्मान तथा वर्ष 2006 में जनजातीय महिला सेवा पुरस्कार प्राप्त हुआ। वर्ष 2008 में मध्यप्रदेश सरकार ने 'राजमाता विजयराजे सिंधिया समाजसेवा पुरस्कार' से सम्मानित किया। 2010 में लक्ष्मी मेनन साक्षरता पुरस्कार, 2011 में नवोन्मुखी सामाजिक शिक्षक पुरस्कार, 2012 में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड तथा 2013 में सौहार्दता पुरस्कार के साथ साथ वूमन ऑफ सब्सटेंस अवॉर्ड भी मिला। हाल ही में उन्हें विश्वभर के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में इंटरनेशनल सोलर एनर्जी पॉयनियर की सूची में शामिल किया गया है। सम्मान और पुरस्कारों की यह सूची अंतहीन है लेकिन दीदी का व्यक्तित्व इन सम्मानों से कहीं अधिक भव्य है।
 
उनके पुण्य कर्म उन्हें जो विशिष्टता देते हैं वह शब्दों से परे है।
 
विशेष : कोरोनाकाल में दीदी ने निरंतर अपने वीडियो संदेशों, वेबिनार और ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस के माध्यम से शहर की जनता को जागरूक करने का काम किया है। बचे साफ कपड़ों से अपने मास्क खुद सिले हैं, अपना प्राकृतिक सेनेटाइजर स्वयं बनाया है और प्रशिक्षण भी दिया है। कोरोनाकाल में उनके घर पर होने वाले प्रशिक्षण भी वर्चुअल रहे हैं। 
 
हर जन्मदिन पर वे उतने ही पौधे रोपित करती हैं जितने साल उनको इस धरा पर हो गए हैं.......इंदौर के स्वच्छ्ता अभियान में जनक दीदी का योगदान प्रशंसनीय रहा है...
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