प्यार के इजहार में जल्दबाजी कैसी

सोच-समझ कर करें प्यार का इजहार

Webdunia
- गुप्तेश्वर कुमार

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किसी से तुम प्यार करो तो फिर इजहार करो, कहीं न फिर देर हो जाए...। जी नहीं, इजहार करने से पहले यह जानने की कोशिश जरूर कर लें कि आपका दिल जिस पर मर मिटने को तैयार है उसके दिल में आपके लिए कहीं जगह है भी या नहीं। यह हमारा नहीं, बल्कि मनोचिकित्सकों का कहना है।

चिकित्सकों के अनुसार प्यार समर्पण का दूसरा नाम है और यदि ऐसा आप नहीं कर सकते हैं तो आगे न बढ़ें, क्योंकि दिल टूटने का असर सीधे दिमाग पर पड़ता है और हो सकता है कि आप मनोरोग से पीड़ित हो जाएँ।

मनोचिकित्सकों के अनुसार, इलाज के लिए आने वाले मनोरागियों में सबसे ज्यादा तादाद प्यार में दिल टूट जाने के बाद होने वाली मानसिक समस्याओं से निजात पाने वालों की है।

प्यार का मौसम है। इस मौसम में युवाओं के शरीर में कई रासायनिक बदलाव होते हैं और हार्मोन्स के साथ उनका लिंक होने के कारण दिमाग पर भी असर होता है जो युवाओं को विभिन्नों लिंगों की ओर आकर्षित भी करता है, लेकिन इस मौसम के सुरूर के चक्कर में कहीं लेने के देने न पड़ जाएँ। इसलिए स्वास्थ्य के लिहाज से भी सतर्क रहने की जरूरत है।

किसी ने सच ही कहा है कि ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजिए, एक आग का दरिया है और डूब के जाना है। मनोचिकित्सक तो इश्क के पहले ही लोगों को सावधान हो जाने की हिदायत दे रहे हैं। क्योंकि कई लोग तो ऐसे होते हैं कि वे दिल टूटने से डिप्रेशन में चले जाते हैं और उनमें शुरू हो जाते हैं मनोरोग विकार।

ऐसी नौबत न आए, इसके लिए पहले से ही तैयार रहें कि सामने वाले ने आपके प्यार को कबूल नहीं किया तो कोई समस्या नहीं होगी। क्योंकि प्यार में हमेशा ही दूसरे की खुशी को प्राथमिकता देनी चाहिए या फिर कोशिश करें कि यह पता कर लिया जाए कि जिसे अपना हाल-ए-दिल सुनाने वाले हैं, वह भी आपको उस नजर से देखता है या नहीं। उसके बाद ही कोई कदम उठाएँ।

फोर्टिस अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. समीर मल्होत्रा के अनुसार, प्यार के मायने आज कुछ और ही हैं, जबकि इसकी पहली प्राथमिकता आपके प्रेम में समर्पण व दूसरे की खुशी में है। युवा लगातार दिशाहीन व लक्ष्य से भटकने के कारण जल्दबाजी में इजहार-ए-इश्क कर बैठते हैं और इसके बाद कई मानसिक समस्याओं से ग्रसित भी हो जाते हैं।

उन्होंने बताया कि इलाज के दौरान यह देखा गया है कि पहले के मुताबिक 20-25 फीसदी तक मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ी है, जिसमें ज्यादातर मामले प्यार के ही आते हैं। डॉ. समीर मल्होत्रा ने बताया कि इजहार-ए-मोहब्बत में कामयाबी नहीं मिलने पर कभी-कभार तो लोग ऐसी स्थिति में भी चले जाते हैं जब सामने वाला कुछ नहीं कहता है और उसे बस 'हाँ' ही सुनाई पड़ती है।

वह सोचने लगता है कि सामने वाला भी उससे प्यार करता है। इस मानसिक रोग को यूरोपोमेनिया कहा जाता है। इसमें शरीर का टोपामीन रसायन बढ़ जाता है। वहीं बॉर्डर लाइन पर्सनेलिटी मनोरोग से ग्रसित हो जाने पर अकसर लोग नसें काटने व आत्महत्या तक करने की कोशिश करते हैं। इसलिए युवाओं को ऐसे दौर से नहीं गुजरना पड़े, इसके लिए वह अपने लक्ष्य पर ध्यान दें और करियर को अच्छा बनाएँ। अभिभावकों को भी अपने बच्चों को एक सही दिशा की ओर चलने के लिए लगातार प्रोत्साहित करना चाहिए।

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