कौन थीं उषा मेहता? भारत छोड़ो आंदोलन के समय चलाया सीक्रेट कांग्रेस रेडियो

Usha Mehta
Webdunia
शनिवार, 25 मार्च 2023 (17:06 IST)
- ईशु शर्मा
 
महात्मा गांधी जी के नतृत्व वाले भारत छोड़ो आंदोलन में कई लोग शामिल हुए और इसकी शुरुआत दूसरे विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त 1942 की गई। आपने भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में कई लेख पढ़े होंगे पर क्या आपने कभी उषा मेहता के बारे में पढ़ा है? उषा मेहता ने भारत छोड़ो आंदोलन में काफी अनोखे तरीके से भाग लिया था, जिसे जानकार आप भी प्रेरित हो उठेंगे तो चलिए जानते हैं उषा मेहता की इस रोचक कहानी के बारे में-
 
कौन थीं उषा मेहता?
उषा मेहता ने भारत छोड़ो आंदोलन के समय ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक सीक्रेट कांग्रेस रेडियो शुरू किया था। उषा मेहता का जन्म 25 मार्च 1920 में हुआ था और वो सूरत के पास के गांव सरस में रहती थीं। उषा मेहता 5 साल की उम्र से ही महात्मा गांधी के अहिंसा के मार्ग को फॉलो करती थी और 8 साल की उम्र में 1928 में उन्होंने पहली बार साइमन आयोग के खिलाफ विद्रोह में भाग लिया था।
 
उषा मेहता के पिता थे उनके खिलाफ
साथ ही उषा ठाकुर ने नमक सत्याग्रह में भी समुद्र का पानी अपने घर लाकर नमक का उत्पादन किया था पर उनके पिता उनके इस तरह की प्रतिभागिता की आलोचना करते थे क्योंकि वो ब्रिटिश राज के अंतर्गत जज थे।
 
खुफ़िआ रेडियो प्रसारण का विचार कैसे आया?
9 अगस्त 1992 के आल इंडिया कांग्रेस समिति के एक सेशन के दौरान ये तय किया जा रहा था कि भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में लोगों को कैसे बताया जाए क्योंकि उस समय अख़बार पर ब्रिटिश राज का कंट्रोल था। इस सेशन में उषा मेहता शामिल थीं जिन्हें रेडियो की समझ थी और उन्होंने एक खुफिया रेडियो चलाने का फैसला किया। 
 
14 अगस्त 1942 को उषा मेहता ने कांग्रेस रेडियो पर अपनी पहली घोषणा की जिसमें वो इंग्लिश एवं हिंदी दोनों भाषाओँ में बुलेटिन खबर बताती थीं। उनका कार्यक्रम 'हिंदुस्तान हमारा' गाने से शुरू होता था और 'वंदे मातरम' से ख़तम होता था। उषा मेहता के साथ बाबूभाई ठक्कर, विट्ठलदास झवेरी और नरीमन अबराबाद प्रिंटर थे जिसमें अबराबाद प्रिंटर इंग्लैंड से रेडियो की टेकनोलॉजी सीखकर आए थे।
 
उषा मेहता ने ब्रिटिश सरकार से ख़ुफ़िया रहने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान करीब 7-8 रेडियो स्टेशन बदले पर 12 नवंबर 1942 को उषा मेहता को एक रेडियो कार्यक्रम करते समय गिरफ्तार कर लिया गया जिसमें उन्हें 4 साल की जेल हुई। सज़ा के दौरान उषा मेहता से कई बार उनके साथियों के बारे में पूछा गया और इस सूचना के बदले उन्हें विदेश में पढ़ाई करने का प्रस्ताव भी दिया गया, पर उषा मेहता ने किसी भी तरह कि सूचना नहीं दी। इसके बाद 1946 में उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया।

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