महिला दिवस : महिलाएं चुप ना बैठें

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महिला दिवस को मनाए जाने के पूर्व वेबदुनिया टीम ने हर आम और खास महिला से भारत में नारी सुरक्षा को लेकर कुछ सवाल किए। हमें मेल द्वारा इन सवालों के सैकड़ों की संख्या में जवाब मिल रहे हैं। हमारी कोशिश है कि अधिकांश विचारों को स्थान मिल सके। प्रस्तुत हैं वेबदुनिया के सवाल और उन पर मिली मिश्रित प्रतिक्रियाएं....



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प्रस्तुत है चंडीगढ़ से रेडियो जॉकी एकता शर्मा वर्मा के विचार

भारत में महिलाओं को सुरक्षित महसूस करवाने का कोई एक तरीका तो निश्चित नहीं हो सकता। लेकिन हर स्तर पर थोड़ी- थोड़ी कोशिश करके हम नारी को सुरक्षित बना सकते हैं। सबसे पहले अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है। चाहे आप बेटे हैं, पिता हैं, पति हैं यह समझ लें कि जब तक भारत में महिला सुरक्षित महसूस नहीं करती समाज आगे नही बढ़ सकता।

दूसरा तरीका है महिलाएं चुप ना बैठें। चाहे वह एक छोटा सा कॉमेंट ही क्यूं ना हो इसके बारे में ज़रूर कुछ करें। चुप ना बैठें । हर छेड़ छाड़ किसी पुरुष के लिए छोटी हो सकती है लेकिन महिला के लिए नहीं। अंग्रेज़ी में ब्रोकन विंडो थ्योरी कहती है कि रोजमर्रा हो रहे छोटे-मोटे अपराधों को रोकने के लिए बड़ी आवाज का उठना ज़रूरी है। अन्याय को झेलें नही समय पर आवाज़ ऊंची करें.

भारतीय महिलाओं का सही मायनों में सशक्तिकरण तभी हो सकता है जब उन्हें निर्णय लेने का हक दिया जाए आज भी भारतीय परिवारों मे एक महिला कितनी भी पढ़ लिख जाए उनके जीवन का फैसला घर का कोई पुरुष ही लेता है। इससे समझ यही आता है कि पहले घर की महिलाओं को ही स्वतंत्र महसूस करवाने की ज़रूरत है।

सिर्फ़ एक ही बात का रॅट्टा लगाते रहना ‍कि आज की नारी पुरुष से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है महज एक दिखावा ही है। जहां तक बॉलीवुड की बालाओं का भारत की ग्रामीण बालिकाओं पर नकारात्मक असर पड़ने की बात है तो यह तो शहरों में भी देखा जा रहा है। बात वहीं घूम फिरकर आ जाती है। सही शिक्षा देना बेहद ज़रूरी है। यहां माता-पिता की अहम ज़िम्मेदारी है। बॉलीवुड को पूरी तरह ज़िम्मेदार ठहराना गलत होगा। अपनी बेटी को सही शिक्षा दीजिए और बचपन से ही सही ग़लत में अंतर जानना भी उतना ही ज़रूरी है। पुरुषों को समझना होगा कि यह बॉलीवुड नहीं, टीवी नही, शराब नहीं बल्कि आपका अपना रवैया और व्यवहार है। आख़िर कितने लड़के कॉलेज के दिनों में ही अपने दोस्तों को किसी लड़की पर कोई अपमानजनक कॉमेंट देने पर टोकते हैं? शायद बहुत कम। यह कदम शुरुआती दिनों से ही उठना होगा।

निश्चित ही महिलाएं विदेशों में ज़्यादा सुरक्षित महसूस करती होंगी और वहां उनकी स्थिति बेहतर भी होगी। जहां भारत में पुरुषों को आज भी किसी महिला बॉस के मार्गदर्शन में काम करने मे संकोच होता है वहीं विदेशों मे ये स्थिति कहीं बेहतर है। हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार प्रेज़ेन्स ऑफ विमन डाइरेक्टर्स इन कंपनीज़ में भारत आज भी 28 वें स्थान पर है।

भारत से कहीं अ‍च्छी स्थिति स्वीडन, फिनलैंड और दक्षिण अफ्रीका की है। सवाल सुरक्षा का भी है। विदेशों में भारत के मुक़ाबले कई बड़े क़ानून महिलाओं की सुरक्षा में बनाए गऐ हैं जबकि भारत आज़ादी के इतने सालों बाद भी घरेलू हिंसा व बलात्कार जैसे अपराधों से जूझ रहा है। सोच को बदलने में ना जाने कितनी महिलाएं और कुर्बान होंगी। तरीका सिर्फ़ एक है महिलाएं अपनी सुरक्षा खुद सीखें और चतुराई से काम लें। इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी नारी को खुद को साबित करना और सुरक्षित रहना एक बड़ा मुद्दा है। स्कूल्स और कॉलेज में महिलाओं को आत्मसुरक्षा की ट्रैनिंग दी जाए और विमन हेल्पलाइन जैसे कई और नंबर्स बनाए जाएं जिससे महिलाएं हर ओर से खुद को सुरक्षित बना सकें।

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