अपने जन्म से ही उत्सवों के इंद्रधनुष के रंग मैं साथ लिए आती हूं। कितने ही रंग और कितने ही रूप..। बेटी, बहन, पत्नी, मां, दादी, चाची, ताई और दोस्त से लेकर किसी मल्टीनेशनल में काम कर रही सहयोगी या बॉस तक...कई सारी भूमिकाओं में रत हूं..।
चटख रंगों का बचपन चीं..चीं..चीं...की आवाज के साथ आंगन में फुदकती चिड़िया की चहचहाहट को सुनकर, मां की कलाई में सजी चूड़ियों के खिलौने से मन बहला रही दस महीने की गुड़िया के रूप में कींईईईई की खुशी भरी किलकारी के साथ ही, तेजी से घुटने-घुटने चलकर आंगन में पहुंचने वाली मैं ही तो हूं। सुबह की धूप के साथ ही आंगन में बिखर जाते हैं इंद्रधनुषी रंग भी..., जिनमें मेरे और चिड़िया के साथ ही बाकी का परिवार भी सराबोर हो जाता है।
वैसे तो चीं...चीं...चीं.. करती वो चिड़िया भी मैं ही हूं... बस उसके पंख दिखते हैं और मेरी उड़ान को महसूस किया जा सकता है...। मां की लाल साड़ी से लेकर नानी की लाल बिंदी और दीदी की खूब सारे रंग के फूलों वाली फ्रॉक मुझे खुश कर देती है। मैं कह तो नहीं पाती, लेकिन पता है... सब मेरी बात समझ जाते हैं..। खासतौर पर मां... और फिर मां झट से अपनी चटख लाल साड़ी का आंचल मेरे सर पर फैलाकर मुझे लाड़ी बहू बना देती है..। मेरे इस रूप पर तो सब फिदा हैं।
रंगों भरा जहान जब स्कूल में अव्वल आने या किसी भाषण प्रतियोगिता में जोश के साथ अपनी बात रखने पर तालियां बजते सुनती हूं तो रंग आंखों में ही नहीं, कानों में भी उतरने लगते हैं। आसमान मुझे अपने सामने बांहे पसारे खड़ा दिखता है...। अपनी आंखों की चमक को जब मैं मां, पापा और दादी की आंखों में उतरता देखती हूं तो लगता है जैसे सपनों के चमकीले रंग और भी पक्के हो गए हैं। मुझे दुनिया का हर रंग हसीन लगता है। ऐसा लगता है जैसे कोई रंगों का बड़ा सा तालाब बना दे और मैं उसमें डूबती-उतरती रहूं। कितने सुंदर लगेंगे न... हरे रंग के चेहरे पर पीली छींट-सी बूंदें और नारंगी से बालों में सजे चंपा के सफेद फूल...?
मेरे कैनवास पर इंद्रधनुष है मेरी सोच में भी कई सारे रंग भरे हैं... बिलकुल ताजे और खिले-खिले से। इतने सारे रास्ते..., जो मेरा भविष्य तय करेंगे... सोच-समझकर चुनती हूं एक रास्ता..और चल पड़ती हूं उस पर साहस, लगन और मेहनत के रंग लेकर...। अपनी क्षमता पर मुझे विश्वास है और पूरी दुनिया भी अब तो इस बात को मानने लगी है...। स्पेस साइंस हो या इंजीनियरिंग, मेडिसीन हो या मैनेजमेंट... सुनहरे रंग से अपने जैसे कई नामों को चमकते मैंने देखा है, हर जगह..। और हां जो मील के पत्थर मैं तय करूंगी ना..उन पर अलग-अलग रंग लगाऊंगी... ये क्या कि हर बार काला-सफेद पोत दिया...!
प्रेम का जादुई रंग उफ् ..! ये तो किसी अलग से ही जहान की परीकथा सी लगती है। जब कोई बहुत खास मेरी जिंदगी का सबसे खास बनने लगता है। ऐसा लगता है जैसे हल्के नीले और सफेद.. रुई के गुच्छों से फूले बादलों पर तैर रही हूं। आजकल हवा भी मुझे गुलाबी-सी रंगी दिखाई देती है...कभी-कभी तो ये गुलाबी रंग बहककर चेहरे पर चढ़ जाता है और आंखों से छलकने लगता है... दिन में कई बार अब मैं मां के शादी के जोड़े वाले लाल आंचल से सजकर लाड़ी बहू बन जाती हूं और खुद को शीशे में निहारा करती हूं।
ये रंग कुछ खास हैं पता नहीं क्यों... पर एक रंग बड़ा अनोखा और खास है... जो मुझे लगता है कि ईश्वर ने मुझे और मेरी जैसियों को विशेषतौर से इफरात में बांटा है। पापा और दद्दू इसे बहू-बेटियों का प्रेम-स्नेह कहते हैं अक्सर... भाई और छुटकी की डिक्शनरी में ये केयर है..जीजाजी कई बार इसे दीदी की ओवर पज़ेसिवनेस कहकर चिढ़ते भी हैं..., लेकिन इसके बिना भी बेचैन हो जाते हैं और मेरी वॉकेबलरी के हिसाब से देखा जाए तो... अं..अं..अं.. बस ऐसा लगता है जैसे मैं अपने हर आत्मीय पर सारी खुशियां उड़ेल डालूं... मेरा ये रंग हमेशा आंखों के जरिए झलक आता है...। जब पापा से महीनों बाद मिलती हूं तब भी... और जब राखी बांधने के बदले में भइया कोई गिफ्ट देता है तब भी..। दीदी को बुखार होने पर जब जीजू माथे पर पट्टी रखते हैं तब दीदी के चेहरे पर इस रंग का कतरा ढुलकते देखती हूं। यही वह रंग है, जिसे मैं छोटी-छोटी सी बात पर मां की आंखों में भी भरता हुआ देखती हूं।
सृजन के ब्रश पर सवार रंग सृजन का तो मुझे प्राकृतिक तोहफा मिला है..। वैसे मेरा अपना, सबसे सुकूनदायक सृजन तो मेरे आंचल में कुनमुन-कुनमुन करती वो नन्हीं सी आकृति है.. वो जब अपनी नन्हीं हथेली को कसकर मेरी ऊंगली के इर्द-गिर्द लपेटती है तो लगता है जैसे दुनिया की हर खुशी पहलू में समा गई है। उसकी हथेली को हौले से थपथपा कर मैं खुद को हमेशा उसके साथ बनाए रखने का आश्वासन देती हूं। यह सृजन मुझे संपूर्ण करता है। इसके अलावा अपनी बनाई तस्वीर से लेकर हलवे तक के जरिए जब किसी को तृप्त होते देखती हूं तब मन में कई-कई दीप जल जाते हैं। मेरी ऊर्जा द्विगुणित हो जाती है और मैं अपने सृजन में और तन्मय हो जाती हूं।
तीखा, तेज रंग भी रखना ध्यान अपनी जिंदगी के इन रंगों को मैं हर पल जीती हूं और इस जीवंत ऊर्जा द्वारा खुद से जुड़े हर व्यक्ति को खुशी के रंगों से भरने की कोशिश करती हूं , लेकिन जब कभी मुझसे मेरा सृजन का अधिकार छीनकर तो कभी मेरी भावनाओं का अपमान कर... कभी मेरे वजूद पर हमला बोलकर तो कभी मेरी सरलता का मजाक बनाकर.. कोई मुझे आहत करने की कोशिश करता है.. तो उभरता है, तेज, तीखा रंग। जो मेरी आंतरिक ऊर्जा से जुड़ा है। इस रंग की ताकत दुनिया मिटाने की क्षमता भी रखती है। मुझसे छल, बल, झूठ और फरेब के रंगों को दूर ही रखना वरना इस तीखे रंग की ऐसी बौछार होगी कि तुम्हारा अस्तित्व ही बदरंग हो जाएगा। इसलिए खिलने दो, घुलने दो और महकने दो मेरे इंद्रधनुष को... आखिर इसके रंग तुम्हारे जीवन को भी तो सुंदर ही बनाएंगे।