कविता - मां मेरे कत्ल की हां क्यूं भरे

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शकुंतला सरुपरिया
 
मां मेरे कत्ल की तू हां क्यूं भरे? 
खि‍लने से पहले इक कली क्यूं झरे ?
 
मेरे बाबुल बता, मेरी क्या खता? 
मेरे मरने की बददुआ क्यूं करे ?
कौन कहता है, रब की सूरत तू? 
कोई रब यूं किसी का खून क्यूं करे ?
 
तेरे कदमों में मां जो जन्नत है, 
उसे  कत्लगाह क्यूं करे? 
 
झांक के कोख में मशीनों से,
मुझे साजिश से परे क्यूं करे ?
 
कोख का तू किराया लेना वसूल,
कत्ल का पाप तेरे सर क्यूं धरे?
 
मुझसे क्या खतरा-खौफ तू बता ?
तेरी मूरत हूं, मुझसे तू क्यूं डरे ?
 
ये तो सच है कि मां तू पत्थर है, 
मुझपे पत्थर कोई, रहम क्यूं करे ?
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