Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: लैंगिक समानता के लिए करने होंगे प्रभावी प्रयास

Advertiesment
हमें फॉलो करें अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: लैंगिक समानता के लिए करने होंगे प्रभावी प्रयास

WD Feature Desk

, शुक्रवार, 7 मार्च 2025 (18:44 IST)
- डॉ. उमेश कुमार (एसोसिएट प्रोफेसर, जनसंचार एवं नवीन मीडिया विभाग, जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय)
 
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं की समानता और सशक्तिकरण की दिशा में तेजी लाने का संदेश देती है। इस वर्ष का महिला दिवस का मुख्य विषय कार्यवाही में तेजी लाना है। इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर लैंगिक समानता को प्राप्त करना है। विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, प्रगति की वर्तमान दर पर, पूर्ण लैंगिक समानता प्राप्त करने में 2158 तक का समय लगेगा। यही कारण है कि इस वर्ष का मुख्य विषय कार्यवाही में तेजी लाना निर्धारित किया गया है जिससे जल्दी ही लैंगिक समानता को प्राप्त किया जा सके। लैंगिक असमानता के कारणों में सांस्कृतिक मान्यताएं, शिक्षा की कमी और कार्यस्थल पर भेदभाव को  शामिल किया जा सकता है।ALSO READ: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: जनजातीय महिलाओं की शक्ति को नई उड़ान दे रही सरकार
 
भारत में लैंगिक समानता की स्थिति का अवलोकन करने पर स्थिति में सुधार लगातार नजर आ रहा है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट अनुसार वर्ष 2022 में जहां भारत 146 देशों में से 135 वें स्थान पर था वहीं 2024 में भारत 129वें स्थान पर है। वर्ष 2024 में ग्लोबल जेंडर गैप स्कोर 68.5 प्रतिशत है और प्रगति की वर्तमान दर पर पूर्ण लैंगिक समानता हासिल करने में 134 वर्ष लगेंगे, जो यह दर्शाता है कि प्रगति की समग्र दर काफी धीमी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि स्वास्थ्य और जीवन रक्षा में भारत का स्कोर 0.951 है। शैक्षिक उपलब्धि में 96.4 प्रतिशत अंतर कम हो गया है। इसके साथ ही साथ आर्थिक भागीदारी में भारत का स्कोर 39.8 प्रतिशत है। राजनीतिक भागीदारी में लैंगिक अंतर को 25.1 प्रतिशत तक कम कर दिया गया है।
 
वैश्विक स्तर पर लैंगिक समानता की स्थिति का अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2024 के अनुसार आइसलैंड लगातार 15वें वर्ष विश्व का सबसे अधिक लैंगिक समानता वाला देश बना हुआ है। इसके बाद शीर्ष 5 रैंकिंग में फिनलैंड, नॉर्वे, न्यूजीलैंड तथा स्वीडन का स्थान है। वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2024  में शीर्ष 10 देशों में से सात यूरोपीय देश आइसलैंड, फिनलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, जर्मनी, आयरलैंड, स्पेन शामिल हैं। अन्य क्षेत्रों में पूर्वी एशिया और प्रशांत के अंतर्गत न्यूजीलैंड चौथे स्थान पर, लैटिन अमेरिका तथा कैरिबियन देश निकारागुआ छठे स्थान पर और उप-सहारा अफ्रीकी देश नामीबिया 8वें स्थान पर हैं। स्पेन और आयरलैंड ने वर्ष 2023 की तुलना में क्रमशः 8 तथा 2 रैंक की वृद्धि हासिल कर वर्ष 2024 में शीर्ष 10 में उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है।ALSO READ: महिलाएं धर्म के बारे में क्या सोचती हैं? पढ़िए देश की जानी-मानी महिलाओं के विचार
 
भारत सरकार ने लैंगिक अंतराल को कम करने के लिए ठोस कदम भी उठाने शुरू कर दिया है।  सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में लैंगिक अंतराल को कम करने हेतु भारत सरकार ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, महिला शक्ति केंद्र, मिशन शक्ति, महिला पुलिस स्वयंसेवक, राष्ट्रीय महिला कोष, सुकन्या समृद्धि योजना, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय महिला विश्वविद्यालय जैसे कार्यक्रमों और योजनाओं को शुरू किया है। राजनीतिक क्षेत्र में लैंगिक अंतराल को कम करने के लिए सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की हैं। संविधान के 106 वाँ संशोधन अधिनियम, 2023 लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिये एक तिहाई सीट आरक्षित करता है, यह लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।
webdunia
उद्यमिता के क्षेत्र में भी लैंगिक अंतराल को कम करने का प्रयास शुरू कर दिया गया है। महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने स्टैंड-अप इंडिया और महिला ई-हाट - स्वयं सहायता समूह, गैर सरकारी संगठन को समर्थन देने हेतु ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म, उद्यमिता तथा कौशल विकास कार्यक्रम जैसे कार्यक्रम शुरू किये हैं।
 
भारत एवं वैश्विक स्तर पर लैंगिक समानता के लिए प्रभावी प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन वर्तमान की गति को देखते हुए वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2024  में यह अनुमान लगाया गया है कि लैंगिक समानता की स्थिति को प्राप्त करने में अभी 134 वर्ष और लग जायेंगे। इसके लिए यह आवश्यक है कि गतिविधियों में तेजी लाई जाए और इसके लिए प्रभावी कदम उठाए जाए। लैंगिक समानता के लिए कानूनी और नीतिगत सुधार के तहत समान वेतन, प्रजनन अधिकार और लिंग आधारित हिंसा के विरुद्ध सुरक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मौजूदा कानूनों को पूरी तरह से लागू किया जाए और शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और कार्यबल जैसे प्रमुख क्षेत्रों में लिंग-संवेदनशीलता नीतियाँ लागू की जाएँ। इसके साथ ही साथ निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है। आर्थिक समानता को बढ़ावा देना के लिए समान कार्य के लिए समान वेतन महत्वपूर्ण है। वेतन समानता और पारदर्शिता लागू करके लिंग आधारित वेतन अंतर को ख़त्म करना महत्वपूर्ण है। परिवार की देखभाल में साझा जिम्मेदारियों को बढ़ावा देने के लिए मातृत्व और पितृत्व अवकाश का भुगतान किया जाना चाहिए। महिलाओं को वित्तीय संसाधनों तक पहुँच और उनका उपयोग करने की जानकारी प्रदान करना चाहिए। उदाहरण के लिए, ऋण, निवेश और व्यवसाय विकास सहायता सहित वित्तीय सेवाओं तक महिलाओं की पहुंच में सुधार करके महिला उद्यमिता को बढ़ाया जा सकता है।
 
लैंगिक असमानता को कम करने के लिए महिलाओं के लिए शिक्षा और कौशल विकास को सक्षम बनाना आवश्यक है। लड़कियों और महिलाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुंच प्रदान करके शिक्षा में लैंगिक पूर्वाग्रह को समाप्त किया जा सकता है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित  के क्षेत्र में इसको विशेष रूप से लागू किया जाना चाहिए। महिलाओं का नेतृत्व और प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना भी आवश्यक है। लैंगिक समानता के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व बहुत ही महत्वपूर्ण है। कोटा लागू करके, मार्गदर्शन कार्यक्रम और महिला उम्मीदवारों को समर्थन देकर राजनीति और नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाया जा सकता है। निर्णयन या उच्च पदों पर महिलाओं की बहुत ही ज्यादा कमी है। कॉर्पोरेट नेतृत्व में महिलाओं की उपस्थिति होनी चाहिए। लैंगिक लक्ष्य निर्धारित करके और कार्यकारी पदों पर महिलाओं के लिए मार्ग बनाकर कॉर्पोरेट नेतृत्व में लैंगिक विविधता को बढ़ावा देना चाहिए। इसके साथ ही साथ जमीनी स्तर पर महिला नेतृत्व का समर्थन करना चाहिए। सामुदायिक स्तर के संगठनों में महिलाओं को नेतृत्व प्रदान करना चाहिए जिससे स्थानीय निर्णय लेने में उनकी आवाज़ को बढ़ावा मिल सके।
 
लिंग आधारित हिंसा और भेदभाव को रोकने के लिए सामाजिक और सरकारी स्तर पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। ऐसे अभियान शुरू करने चाहिए जो लैंगिक रूढ़िवादिता और सामाजिक मानदंडों को चुनौती देते हैं। लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में पुरुषों और लड़कों को सहयोगी बनने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। लिंग आधारित हिंसा के पीड़ितों को कानूनी सहायता, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं और सुरक्षित स्थान सहित व्यापक सहायता प्रदान करने की व्यवस्था करना चाहिए। कार्यस्थल और सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न और भेदभाव को रोकने के लिए संस्थानों, व्यवसायों और सरकारों को जवाबदेह बनाए जाने की जरूरत है।
 
सूचना और संचार तकनीकी तक महिलाओं की पहुँच और समावेशन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना जरूरी है। ग्रामीण और कम आय वाले क्षेत्रों में महिलाओं को प्रौद्योगिकी और इंटरनेट तक समान पहुंच सुनिश्चित करके डिजिटल विभाजन को पाटना जरुरी है। महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए तकनीक का लाभ उठाएँ, चाहे वह सूचना, शिक्षा या ऐसे प्लेटफ़ॉर्म तक पहुँच के माध्यम से हो जो महिलाओं को वैश्विक स्तर पर जुड़ने और सहयोग करने में सक्षम बनाते हैं।
 
महिलाओं के लिए स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय स्तर के साथ ही साथ वैश्विक सहयोग और वकालत को बढ़ावा देना आवश्यक है। महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाले अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय गठबंधनों को मजबूत करना जरुरी है जिससे वैश्विक स्तर पर संसाधनों और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना आसान हो सके। इसके साथ ही साथ महिला संगठनों के लिए वित्तपोषण की व्यवस्था किया जाना चाहिए। असमानता से निपटने, टिकाऊ और दीर्घकालीन परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने वाले महिला-नेतृत्व वाले संगठनों के लिए वित्तीय सहायता बढ़ाया जाना चाहिए।
 
महिला और पुरुष देश और समाज के विकास की धुरी हैं। यह दो पहिये की तरह हैं। लैंगिक असमानता को ख़त्म करके देश और समाज का विकास ज्यादा तेज गति से किया जा सकता है।
 
(लेखक जनसंचार एवं नवीन मीडिया विभाग, जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है।) 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: जनजातीय महिलाओं की शक्ति को नई उड़ान दे रही सरकार