भविष्य लड़कियों का है। ऐसे में नारी का अवमूल्यन करना समूची मनुष्य जाति का अवमूल्यन करना है। मां का भी यह कर्त्तव्य है कि वह समाज के दबाव में आकर लड़की-लड़के का फर्क न करें। दोनों को समान भाव दें, दोनों के विकास में बराबर दिलचस्पी लें। बालिका-बालक दोनों प्यार के अधिकारी हैं। इनमें किसी भी प्रकार का भेद परमात्मा की इस सृष्टि के साथ खिलवाड़ है।
राजस्थान में बहुत सारी लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की आयु से पूर्व ही हो जाता है। वे कम उम्र में गर्भवती हो जाती हैं। इतनी कम उम्र में महिलाएं बच्चों को जन्म देने के लिये न तो शारीरिक रूप से विकसित होती हैं न ही वो इसके लिए सक्षम होती हैं। हमारे देश में बेटे के मोह के चलते हर साल लाखों बच्चियों की इस दुनिया में आने से पहले ही हत्या कर दी जाती है।
लड़कियों की इतनी अवहेलना, इतना तिरस्कार चिंताजनक और अमानवीय है। जिस देश में स्त्री की सेवा, त्याग और ममता की दुहाई दी जाती हो, उसी देश में एक कन्या के आगमन पर पूरे परिवार में मायूसी और शोक छा जाना बहुत बड़ी विडंबना है। हमें कोशिश करनी चाहिए कि लड़कियों के प्रति इस नजरिए को बदलें। लोगों को जागरूक करें।