फिल्म 'India's daughter' को लेकर फेमिनिस्ट कार्यकर्ताएं बहुत हाइपर हो रही हैं ! मैंने पूरी फिल्म देखी ! ऐसा कुछ भी नहीं है इस फिल्म में जो बलात्कारियों के लिए हमारे मन में दया या करुणा उपजाये या उनका महिमा मंडन करे ! मुकेश नामक अपराधी के सख्त और संवेदनहीन चेहरे को देख कर हिकारत और गुस्सा ही उपजता है ! वह एक बे पढ़ा लिखा अपराधी है जो जेल की सलाखों के पीछे है ! जो पढ़े लिखे, कानून विद् सलाखों से बाहर रहकर उसी की भाषा बोल रहे हैं, वे ज़्यादा खतरनाक हैं ! सजा तय करने वाले खुद सज़ा पाने के लायक हैं ! उनका कब नोटिस लिया जायेगा और उनकी मानसिकता बदलने के लिए क्या किया जाना चाहिए , यह सोचने की ज़रूरत है !
1972 में 14 वर्षीय लड़की मथुरा का लॉक अप में पुलिसकर्मियों द्वारा रेप हुआ तब भी मथुरा के ही चरित्रहीन होने की दलीलें देकर गनपत और तुकाराम छूट गए थे ! आज 43 साल बाद भी जिस लड़की ने रेप का प्रतिवाद किया, उसके किसी लड़के के साथ फिल्म देख कर रात को देर से (रात के आठ बजे) लौटने को उसकी गलती बताया जा रहा है !
ए पी सिंह और एम एल शर्मा जैसे न्यायविद लड़कियों के लिए जैसी भाषा इस्तेमाल कर रहे हैं, सज़ा तो उन्हें मिलनी चाहिए ! ये दोनों अकेले नहीं हैं ! ऐसे जस्टिस और वकील भरे पड़े हैं ! तीन साल पहले महिला दिवस पर जब सुबह के अखबार में मध्य प्रदेश के एक गाँव में एक आठ वर्षीय बच्ची से उसके नाना द्वारा बलात्कार कर उसकी क्षत विक्षत देह को दो हिस्सों में काट कर जंगल में फेंक देने की खबर आई (उस नाना की पीठ पर गोदना था - 'मैं मर्द हूँ '), भोपाल में आयोजित महिला दिवस के कार्यक्रम में मंच पर जस्टिस गुलाब शर्मा (भूल नहीं रही तो यही नाम था) लड़कियों की पोशाक की खिल्ली उड़ाते हुए उन्हें ही दोषी ठहराने लगे !
सभागार में शोर होने के बाद उन्होंने बीच में ही अपनी गलती महसूस की और माफ़ी मांगी ! दो साल पहले शक्ति मिल कम्पाउंड में हुए एक फोटो जर्नलिस्ट के रेप पर मुंबई महिला आयोग की एक सदस्य दूरदर्शन पर लड़कियों को शाम के बाद घर रहने की सलाह देने लगीं ! फ्लेविया एग्नेस ने हाईकोर्ट के एक जज का बयान उद्धृत किया जिन्होंने कहा - 'शादी के बाद लड़कियां माँ बाप के घर में मेहमान की तरह होती हैं ! ससुराल ही उनका घर है !' ऐसे बयानों की एक लंबी लिस्ट है जिन्हें न्यायालय के प्रतिष्ठित ओहदों पर आसीन इन जज और वकीलों का बाकायदा नाम लेकर बताया जा सकता है !
ए पी सिंह और एम एल शर्मा की जड़ सोच और मानसिकता के बरक्स ज्योति सिंह के माँ और पिता हैं जो उसी दकियानूसी परंपरा से आये हैं पर बदलाव को समझ पा रहे हैं . जो सवाल कर रहे हैं कि उनकी बेटी का रात को आठ बजे लौटना इतना बड़ा गुनाह हो गया और उन लड़कों का कोई दोष नहीं जिनकी हैवानियत जहाँ तक पहुंची उसकी कल्पना भी भयानक है। उसे बताते हुए एक बलात्कारी इतना निर्लिप्त और इतना निर्भीक कैसे हो गया ? उसके सख्त और आश्वस्त चेहरे के पीछे की दुरभिसंधियों को पहचानने की ज़रूरत है !
मुझे ख़ुशी है कि बार काउंसिल ऑफ़ इण्डिया ( BCI ) ने आरोपी पक्ष के दोनों वकीलों - ए पी सिंह और एम एल शर्मा के खिलाफ गैर ज़िम्मेदार और अमर्यादित टिप्पणियाँ करने के लिए कल ''कारण बताओ नोटिस'' जारी कर दिया गया ! अब इंतज़ार है - इन दोनों बीमार सोच वाले वकीलों का लाइसेंस रद्द कर दिए जाने का ! अगर ऐसा होता है तो यह हमारे पक्ष में एक बड़ी जीत होगी !
ज्योति के एक परिचित छात्र ने बताया - कैसे एक बार ज्योति का पर्स किसी लड़के ने छीन लिया और पुलिस जब उस लड़के को पकड़ कर मारने लगी तो ज्योति ने पुलिस को रोक दिया और उस लड़के से बात की, उससे पूछा कि पर्स क्यों चुराया , क्या लेना चाहते थे और उसे वे सारी चीज़ें खरीद कर दीं जो वह पाना चाहता था ! बदले में उससे वायदा लिया कि अब वह ऐसा काम कभी नहीं करेगा ! यह थी ज्योति की मानवीयता और उसका संवेदनशील पक्ष !
ज्योति सिंह के आखिरी शब्द थे - सॉरी माँ, मैंने आपको बहुत परेशान किया ! प्रीति राठी जो बांद्रा टर्मिनस पर एसिड अटैक का शिकार हुई , अपने आखिरी होशो हवास तक इसकी चिंता करती रही कि उसके इलाज़ पर बहुत खर्च हो रहा है ! निम्न मध्यवर्गीय परिवारों की ये नयी लड़कियां हैं जो अपने परिवार को एक बेहतर जीवन दे पाने का जज़्बा लिए आगे आयीं और समाज की संकीर्ण मानसिकता की बलि चढ़ा दी गयीं !
फिल्म में एक बलात्कारी की पत्नी मांग भर सिन्दूर लगाये, गोद में एक मासूम सा बच्चा लिए अपने पति की रिहाई के लिए गुहार लगा रही है कि पति के बिना वह कैसे जी पायेगी. क्या यह सिर्फ एक अपढ़ हिंदुस्तानी पत्नी का पति प्रेम है ? इसे भी वैश्विक संदर्भों में देखा जाना चाहिए !
ब्रिटेन में एक कॉर्पोरेटर पर जब अनैतिक संबंध बनाने का आरोप लगा और उसके ओहदे पर बन आई तो उसकी कानूनी पत्नी जो जीवन भर उसकी करतूतों से त्रस्त रही थी , अचानक मंच पर प्रकट हो उसके हाथ में हाथ डाल कर उसके चरित्र को बेदाग़ बताते हुए उसकी वफ़ादारी के कशीदे पढ़ने लगी !
फिल्म अभिनेता शाइनी आहूजा पर, अपने घर में काम करने वाली 19 साल की लड़की से रेप का आरोप लगा तो उसे बेगुनाह साबित करने के लिए, उसकी पत्नी ने भी आगे बढ़ कर एक के बाद एक प्रेस आयोजन कर डाले ! दिल्ली रेप काण्ड के उस आरोपी की पत्नी और इन आधुनिक, आत्मनिर्भर पत्नियों में कितना फ़र्क़ है, सोच कर देखें ! इसके भी आकलन की ज़रूरत है !
फिल्म निर्माता को तिहाड़ जेल में जाने की अनुमति क्यों दी गयी जब मामला विचाराधीन था , वह एक अलग मुद्दा है ! इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाकर बहुत अक्लमंदी का परिचय नहीं दिया गया है !
फिल्म जिन सवालों को उठाती है, उन पर बगैर किसी पूर्वाग्रह के बात होनी चाहिए और बलात्कारियों को सही और ज़रूरी सज़ा दिलवाने के हथियार के रूप में ही इस फिल्म को देखा जाना चाहिए !