कब सुधरेगा महिलाओं के प्रति पुरुषों का नजरिया

राजश्री कासलीवाल
सिर्फ एक दिन का हो सम्मान... ?
विश्व भर को महिला दिवस मनाने की आवश्यकता ही नहीं है। ऐसा नहीं है कि हमारे देश में देवी की पूजा नहीं होती है। हमारा देश देवी को पूजता भी है और हमारे सम्माननीय नारियों और देवियों के लिए नतमस्तक भी है। लेकिन फिर भी हमें महिला दिवस नहीं मनाना चाहिए, क्योंकि जहां मां, पुत्री, बेटी, लड़की, महिला या स्त्री के शील धर्म की रक्षा नहीं की जा सकती, वहां ‍‍महज एक दिन महिलाओं के प्रति वफादारी दिखाने का क्या औचित्य है?



सिर्फ एक दिन के लिए महिलाओं का गुनगान करके उन्हें सम्मान देना और दूसरी और उनको छलना, उनके साथ कपट भाव रखना, रास्ते चलते छेड़छाड़ करना, स्त्री को लज्जित करना, शराब पीकर महिलाओं के साथ मारपीट करना ...यह सब हमारे पुरुष वर्ग को शोभा नहीं देता। 
 
इससे अच्छा यही होगा कि हम महिला दिवस मनाना ही भूल जाएं। अगर सच में महिलाओं के प्रति हमारे मन में आदर और सम्मान है तो सबसे पहले हमें चाहिए कि हम उन मां, बहन, बेटियों, बहुओं और उन मासूम बच्चियों के प्रति पहले ते अपना नजरिया बदलें और उन्हें हीन दृष्टि से देखना बंद करें। पराए घर की किसी महिला या लड़की को हम हमारी घर की बेटी समझ कर उन्हें भी उसी नजरिए देखें, जो नजर‍िया हम अपनी मां और बहनों के लिए रखते करते हैं। 
 
महिला दिवस मनाने का केवल यह मतलब नहीं है कि एक दिन तो बहुत ऊंचे स्थान पर बैठाकर मान-सम्मान दे दिया जाए और दूसरे ही दिन राह चलती लड़कियों से छेड़खानी शुरू कर दी जाए। यहां युवा तो युवा, बुजुर्ग भी इन मामलों में पीछे नहीं है। रास्ते चलते महिलाओं-लड़कियों पर फब्ति‍यां कसना इनकी आदत शुमार में है और सबसे ज्यादा शर्मनाक बात तो तब हो जाती है जब हैवानों का दल 3-5 साल की मासूम बच्चियों को भी अपना निशाना बनाने में नहीं चूकते और मौका देखते ही उनका शीलहरण करके उन्हें नारकीय जीवन में पहुंचा देते है। 
 
कभी टॉफी का लालच देकर तो कभी अन्य बहानों से बहला-फुसलाकर अपने गंदे नापाक ‍इरादों को उन मासूमों पर थोप दिया जाता है। उन्हें इस कदर रौंद दि‍या जाताहै कि वे ना जीने लायक बचती है ना समाज में अपना मुंह किसी को दिखाने लायक। हमारे प्रोफेशनल समाज को चाहिए कि वह इस तरह दरिंदगी का शिकार हुई बच्चियों और महिलाओं के प्रति अपना नजरिया बदलें और उन्हें अपने घरों में बेट‍ी या बहूओं का स्थान देने की पहल करे। 
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